औरंगजेब बनाम छत्रपति शिवाजी: दुश्मनी की शुरुआत और गुरिल्ला युद्ध की जीत की कहानी
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प्रस्तावना
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब दो महाशक्तियों के बीच संघर्ष ने पूरे क्षेत्र की राजनीति को बदल कर रख दिया। भारत के इतिहास में मुगल सम्राट औरंगजेब और मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की दुश्मनी एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह केवल दो शासकों के बीच टकराव नहीं था, बल्कि एक विचारधारा की लड़ाई थी। छत्रपति शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध नीति ने इस संघर्ष में अहम भूमिका निभाई और आखिरकार, मराठाओं को विजयी बनाया।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
छत्रपति शिवाजी महाराज
छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर सल्तनत के एक सेनापति थे, जबकि उनकी माता जीजाबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और उन्होंने शिवाजी को हिन्दू संस्कृति और स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाया। शिवाजी की माता का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव था, जिससे उनमें स्वराज और स्वतंत्रता की भावना बचपन से ही जाग्रत हुई।
औरंगजेब
औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को हुआ था। वे मुगल सम्राट शाहजहाँ के पुत्र थे। औरंगजेब अपने भाईयों से सत्ता संघर्ष में विजयी होकर 1658 में मुगल सम्राट बने। वे कट्टर सुन्नी मुसलमान थे और अपने शासनकाल में इस्लामी कानून को सख्ती से लागू किया।
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दुश्मनी की शुरुआत
यह टकराव तब शुरू हुआ जब छत्रपति शिवाजी ने 1657-58 के दौरान बीजापुर सल्तनत के अधीनस्थ क्षेत्रों पर आक्रमण किए। उस समय बीजापुर सल्तनत मुगलों के साथ संघर्ष में थी, और शिवाजी ने इसका लाभ उठाते हुए कई किलों पर कब्जा कर लिया। शिवाजी की बढ़ती ताकत से चिंतित होकर औरंगजेब ने बीजापुर के सुल्तान से हाथ मिलाने की बजाय खुद छत्रपति शिवाजी से निपटने का फैसला किया।
1659 में अफजल खान को छत्रपति शिवाजी के खिलाफ भेजा गया, लेकिन शिवाजी ने चतुराई से उसे पराजित कर दिया। इसके बाद, 1660 में मुगल सेनापति शाइस्ता खान को दक्कन भेजा गया। हालांकि, 1663 में छत्रपति शिवाजी ने शाइस्ता खान के निवास पर हमला कर उसे पराजित कर दिया। इसके बाद, औरंगजेब के लिए शिवाजी को रोकना और भी जरूरी हो गया।
शिवाजी की युद्ध नीति
छत्रपति शिवाजी की युद्ध नीति उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को ‘गणिमी कावा’ कहा जाता था। यह युद्ध प्रणाली छोटे, तेज और आश्चर्यजनक हमलों पर आधारित थी।
1. भूगोल का उपयोग
छत्रपति शिवाजी ने महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों का पूरा फायदा उठाया। उनकी सेना कठिन पहाड़ियों और घने जंगलों से परिचित थी, जबकि मुगल सेना के लिए ये इलाके नई चुनौती थे।
2. आश्चर्यजनक हमले
छत्रपति शिवाजी की सेना अक्सर रात के समय हमले करती थी, जिससे मुगलों को संभलने का मौका नहीं मिलता था।
3. तेजी से हमले और पीछे हटना
छत्रपति शिवाजी कभी भी लंबे समय तक मैदान में युद्ध नहीं करते थे। उनकी सेना तेजी से हमला करती और तुरंत सुरक्षित स्थान पर लौट जाती थी।
4. छोटे सैनिक दलों का प्रयोग
शिवाजी ने अपनी सेना को छोटे-छोटे दलों में बाँटा, जिससे वे कई स्थानों पर एक साथ हमला कर सकते थे।
औरंगजेब की चालें और शिवाजी की प्रतिक्रिया
1665 में औरंगजेब ने राजा जय सिंह प्रथम के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी। छत्रपति शिवाजी को पुरंदर की संधि के तहत अपने कई किले मुगलों को सौंपने पड़े। लेकिन छत्रपति शिवाजी ने इसे अस्थायी रणनीति के रूप में लिया। 1666 में औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया और उन्हें कैद कर लिया, लेकिन छत्रपति शिवाजी अपनी चतुराई से वहां से भाग निकले।
इसके बाद, छत्रपति शिवाजी ने अपनी शक्ति पुनः संगठित की और 1674 में खुद को छत्रपति घोषित किया। उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी गुरिल्ला रणनीति को और मजबूत किया और लगातार हमले करते रहे।
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नतीजा: शिवाजी की जीत
औरंगजेब ने अपनी पूरी ताकत लगाकर भी शिवाजी को रोकने में सफलता नहीं पाई। 1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठाओं ने उनकी गुरिल्ला रणनीति को जारी रखा। अंततः, मराठाओं ने 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया।
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी और औरंगजेब की यह दुश्मनी केवल सैन्य संघर्ष नहीं थी, बल्कि यह एक बड़ी विचारधारा की लड़ाई थी। एक ओर, औरंगजेब का विस्तारवादी और कट्टरपंथी शासन था, तो दूसरी ओर, शिवाजी का स्वराज का सपना था। शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध नीति ने मुगलों को भारी नुकसान पहुँचाया और भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। इस संघर्ष का परिणाम यह रहा कि मराठाओं ने आने वाले वर्षों में मुगलों की शक्ति को पूरी तरह समाप्त कर दिया।