कार-टी सेल थेरेपी(CAR-T Cell Therapy): कैंसर के खिलाफ एक क्रांतिकारी हथियार, कितना है असरदार?

कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी मरीज और उनके परिवार को प्रभावित करती है। पिछले कुछ दशकों में चिकित्सा विज्ञान ने कैंसर के इलाज में कई नई तकनीकों को विकसित किया है, जिनमें से एक है कार-टी सेल थेरेपी (CAR-T Cell Therapy)। यह एक क्रांतिकारी इलाज है जो कैंसर के खिलाफ शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। लेकिन यह थेरेपी क्या है? यह कैसे काम करती है? और सबसे महत्वपूर्ण, यह कैंसर के इलाज में कितनी प्रभावी है? आइए, इस ब्लॉग में इन सवालों के जवाब विस्तार से जानते हैं।
कार-टी सेल थेरेपी क्या है?
CAR-T सेल थेरेपी का पूरा नाम Chimeric Antigen Receptor T-Cell Therapy है। यह एक प्रकार की इम्यूनोथेरेपी है, जिसमें मरीज की अपनी टी-कोशिकाओं (T-Cells) को प्रयोगशाला में संशोधित करके कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है। टी-कोशिकाएं हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, जो वायरस और अन्य हानिकारक तत्वों से लड़ती हैं। लेकिन कैंसर कोशिकाएं इतनी चालाक होती हैं कि ये प्रतिरक्षा प्रणाली से बच निकलती हैं। CAR-T थेरेपी इसी समस्या का समाधान करती है।
इस प्रक्रिया में मरीज के खून से टी-कोशिकाएं निकाली जाती हैं। फिर इन कोशिकाओं को जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए संशोधित किया जाता है ताकि वे एक खास प्रोटीन, जिसे काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) कहते हैं, को पहचान सकें। यह रिसेप्टर कैंसर कोशिकाओं की सतह पर मौजूद विशिष्ट प्रोटीन को लक्षित करता है। संशोधित टी-कोशिकाओं को फिर मरीज के शरीर में वापस डाला जाता है, जहां ये कैंसर कोशिकाओं को ढूंढकर नष्ट करती हैं।

कार-टी सेल थेरेपी की प्रक्रिया
इस थेरेपी को समझने के लिए इसकी प्रक्रिया को चरणों में देखते हैं:
- टी-कोशिकाओं का संग्रह: सबसे पहले मरीज के खून से टी-कोशिकाएं निकाली जाती हैं। यह प्रक्रिया ल्यूकाफेरेसिस (Leukapheresis) कहलाती है, जिसमें खून को एक मशीन से गुजारा जाता है जो टी-कोशिकाओं को अलग कर लेती है।
- जेनेटिक संशोधन: प्रयोगशाला में इन टी-कोशिकाओं में CAR जीन डाला जाता है। यह जीन टी-कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और हमला करने की क्षमता देता है। यह प्रक्रिया वायरल वेक्टर (जैसे रेट्रोवायरस) के जरिए की जाती है।
- कोशिकाओं का विस्तार: संशोधित टी-कोशिकाओं को लाखों-करोड़ों की संख्या में बढ़ाया जाता है ताकि ये शरीर में प्रभावी ढंग से काम कर सकें।
- मरीज में वापसी: तैयार CAR-T कोशिकाओं को मरीज के शरीर में इंजेक्शन के जरिए डाला जाता है। इसके पहले मरीज को कीमोथेरेपी दी जा सकती है ताकि उसकी मौजूदा प्रतिरक्षा कोशिकाएं कम हों और नई कोशिकाएं बेहतर काम कर सकें।
- कैंसर पर हमला: शरीर में पहुंचने के बाद ये CAR-T कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को ढूंढती हैं और उन्हें नष्ट करती हैं। ये कोशिकाएं लंबे समय तक शरीर में रह सकती हैं और कैंसर के दोबारा उभरने पर भी लड़ सकती हैं।
किन कैंसर में उपयोगी है?
CAR-T सेल थेरेपी अभी तक कुछ खास प्रकार के कैंसर के इलाज में सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुई है, खासकर खून से संबंधित कैंसर (ब्लड कैंसर) में। इनमें शामिल हैं:
- एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL): यह बच्चों और युवाओं में होने वाला एक आम ब्लड कैंसर है।
- डिफ्यूज लार्ज बी-सेल लिंफोमा (DLBCL): यह नॉन-हॉजकिन लिंफोमा का एक प्रकार है जो वयस्कों में देखा जाता है।
- मल्टीपल मायलोमा: यह एक ऐसा कैंसर है जो प्लाज्मा कोशिकाओं को प्रभावित करता है।
हालांकि, यह थेरेपी अभी ठोस ट्यूमर (Solid Tumors) जैसे फेफड़े, स्तन या पेट के कैंसर में उतनी प्रभावी नहीं रही है। वैज्ञानिक इस दिशा में शोध कर रहे हैं ताकि इसे अन्य कैंसर के लिए भी उपयोगी बनाया जा सके।

कितनी कारगर है यह थेरेपी?
CAR-T सेल थेरेपी ने कैंसर के इलाज में आशा की किरण दिखाई है, खासकर उन मरीजों के लिए जिनका इलाज कीमोथेरेपी या रेडिएशन से संभव नहीं हो पाया। क्लिनिकल ट्रायल्स और वास्तविक उपयोग में इसके परिणाम प्रभावशाली रहे हैं:
- उच्च सफलता दर: ALL और DLBCL जैसे कैंसर में 70-90% मरीजों में रोगमुक्ति (Remission) देखी गई है। कुछ मामलों में मरीज कई सालों तक कैंसर से मुक्त रहे।
- लंबे समय तक प्रभाव: CAR-T कोशिकाएं शरीर में रहकर कैंसर के दोबारा उभरने से रोक सकती हैं, जो इसे पारंपरिक इलाज से अलग बनाता है।
- आखिरी उम्मीद: जिन मरीजों का कोई इलाज काम नहीं करता, उनके लिए यह थेरेपी जीवन रक्षक साबित हुई है।
हालांकि, यह थेरेपी हर मरीज के लिए सफल नहीं होती। कुछ मामलों में कैंसर कोशिकाएं CAR-T कोशिकाओं से बचने के तरीके ढूंढ लेती हैं। इसके अलावा, यह इलाज बहुत महंगा है। भारत में इसकी लागत 3-4 करोड़ रुपये तक हो सकती है, जो इसे आम लोगों की पहुंच से बाहर रखता है।
जोखिम और साइड इफेक्ट्स
CAR-T थेरेपी जितनी प्रभावी है, उतनी ही जोखिम भरी भी हो सकती है। इसके कुछ प्रमुख साइड इफेक्ट्स हैं:
- साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS): यह एक गंभीर स्थिति है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाती है, जिससे बुखार, थकान, और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
- न्यूरोटॉक्सिसिटी: कुछ मरीजों में दौरे, भ्रम, या बोलने में दिक्कत जैसे लक्षण देखे गए हैं।
- संक्रमण का खतरा: कीमोथेरेपी और टी-कोशिकाओं के बदलाव के कारण मरीज का इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है।
इन जोखिमों के बावजूद, डॉक्टर इन साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित करने के लिए दवाइयों और निगरानी का सहारा लेते हैं।

भारत में CAR-T थेरेपी की स्थिति
भारत में CAR-T सेल थेरेपी अभी शुरुआती चरण में है। 2023 में भारत ने अपनी पहली स्वदेशी CAR-T थेरेपी, NexCAR19, को लॉन्च किया, जिसे टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल और IIT बॉम्बे ने मिलकर विकसित किया। यह थेरेपी विदेशी विकल्पों की तुलना में सस्ती (लगभग 40-50 लाख रुपये) है और ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए उपलब्ध है। हालांकि, इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए अभी इंफ्रास्ट्रक्चर और जागरूकता की कमी है।
भविष्य की संभावनाएं
वैज्ञानिक CAR-T थेरेपी को और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। भविष्य में यह संभव हो सकता है कि:
- इसे ठोस ट्यूमर के लिए प्रभावी बनाया जाए।
- लागत को कम करके इसे आम लोगों तक पहुंचाया जाए।
- साइड इफेक्ट्स को कम करने के नए तरीके खोजे जाएं।

निष्कर्ष
कार-टी सेल थेरेपी चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ लड़ाई में नई उम्मीद लेकर आई है। यह थेरेपी न केवल मरीज की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को हथियार बनाती है, बल्कि उन मामलों में भी राहत देती है जहां कीमोथेरेपी, रेडिएशन या सर्जरी जैसे पारंपरिक इलाज असफल हो जाते हैं।
खास तौर पर ब्लड कैंसर जैसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) और डिफ्यूज लार्ज बी-सेल लिंफोमा (DLBCL) में इसकी सफलता दर ने इसे एक गेम-चेंजर साबित किया है। 70-90% तक मरीजों में रोगमुक्ति के आंकड़े इसकी क्षमता को दर्शाते हैं, और यह तथ्य कि संशोधित टी-कोशिकाएं लंबे समय तक शरीर में कैंसर से लड़ने के लिए मौजूद रह सकती हैं, इसे और भी खास बनाता है।
हालांकि, CAR-T थेरेपी की राह आसान नहीं है। इसके साथ जुड़े जोखिम, जैसे साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS) और न्यूरोटॉक्सिसिटी, इसे हर मरीज के लिए उपयुक्त नहीं बनाते। इसके अलावा, इसकी बेहद ऊंची लागत – भारत में भी 40 लाख से 4 करोड़ रुपये तक – इसे आम लोगों की पहुंच से दूर रखती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि यह क्रांतिकारी इलाज अभी तक केवल privileged कुछ लोगों तक ही सीमित है।
भारत जैसे देश में, जहां हर साल लाखों लोग कैंसर का शिकार होते हैं, इस थेरेपी को सस्ता और सुलभ बनाना एक बड़ी चुनौती है। NexCAR19 जैसी स्वदेशी पहल इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए स्वास्थ्य ढांचे में सुधार, प्रशिक्षित विशेषज्ञों की उपलब्धता, और सरकारी सहायता की जरूरत है।
इस थेरेपी का भविष्य उज्ज्वल है, बशर्ते वैज्ञानिक और नीति निर्माता इसके सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने में सफल हों। ठोस ट्यूमर (Solid Tumors) के इलाज में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाना, साइड इफेक्ट्स को कम करना, और उत्पादन प्रक्रिया को सरल व किफायती बनाना आने वाले समय की प्राथमिकताएं हैं।
अगर ये लक्ष्य हासिल हो जाते हैं, तो CAR-T थेरेपी न केवल ब्लड कैंसर बल्कि फेफड़े, स्तन, और लीवर जैसे कैंसर के खिलाफ भी एक शक्तिशाली हथियार बन सकती है। भारत में इसके विकास के साथ-साथ जागरूकता फैलाना भी जरूरी है, ताकि मरीज और उनके परिवार इस विकल्प के बारे में जान सकें और समय रहते इसका लाभ उठा सकें।
आज, 16 मार्च 2025 को, हम एक ऐसे दौर में खड़े हैं जहां चिकित्सा विज्ञान असंभव को संभव बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। CAR-T सेल थेरेपी इस प्रगति का एक जीवंत उदाहरण है। लेकिन यह भी सच है कि तकनीक का असली मूल्य तभी है जब वह हर जरूरतमंद तक पहुंचे।
यह सिर्फ वैज्ञानिकों या डॉक्टरों की जिम्मेदारी नहीं है; सरकार, समाज, और हम सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे लोगों को नई जिंदगी का मौका मिले। CAR-T थेरेपी कैंसर के खिलाफ जंग में एक बड़ा कदम है, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई है। क्या हम इस उम्मीद को हर घर तक पहुंचा पाएंगे? यह सवाल भविष्य के लिए छोड़ता हूं, और आपसे भी विचार करने की अपील करता हूं कि इस क्रांति में हमारा योगदान क्या हो सकता है।