भाजपा को शहरों, तो इंडिया गठबंधन को गावों और कस्बों में मिला जनाधार
Table of Contents
एक सर्वेक्षण के अनुसार कसबों की तुलना में शहरी क्षेत्र के मतदाता भाजपा को ज्यादा समर्थन दे रहे हैं| शहरों के 38 फीसदी लोगों ने भाजपा को जबकि 23 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया है| इस साल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को गांवों में 20 फीसदी वोट मिले जबकि भाजपा को 36 फीसदी वोट मिले हैं|
पिछले चुनाव की तुलना में इस बार गांवों में कांग्रेस का वोट एक फीसदी बढ़ा जबकि भाजपा का एक फ़ीसदी घटा है| यह काफी मामूली घटोत्तरी और बढ़ोत्तरी है| कसबों में कांग्रेस को 25 फीसदी वोट मिले| पिछले चुनाव की तुलना में इसमें 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है| वहीं भाजपा को को 37 फीसदी वोट मिले और तीन फ़ीसदी का नुकसान उठाना पड़ा है| चुनाव से पहले सर्वेक्षण में 10 में से 3 लोगों का मानना था कि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने सिर्फ अमीरों के लिए काम किया है| वहीं 15 फ़ीसदी का मानना था कि बीते 5 वर्षों में विकास का कोई काम ही नहीं हुआ है|
यह भी पढ़ें: भारत 8.2% की विकास दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है
सर्वेक्षण के अनुसार जो लोग सरकार को लेकर नकारात्मक रूख रखते थे उन्होंने कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को वोट देने में दिलचस्पी दिखाइ| इसका असर चुनाव के नतीजे और पार्टियों पर देखने को मिला जिसमें इंडिया गठबंधन को 233 सीटें तो मिलीं पर वही अकेले बीजेपी पूरे इंडिया गठबंधन से ज्यादा सीटें ले आई| लगातार तीसरी बार कांग्रेस 100 का आंकड़ा फिरसे नहीं छू पाई| 10 सालों के बावजूद एनडीए ने सफलतापूर्वक लगातार तीसरी बार सरकार भी बनाई है|
वोट देने में पीएम उम्मीदवार की भूमिका रही अहम
सर्वेक्षण के अनुसार 10 में से 6 यानि 59 फीसदी मतदाताओं का मानना था कि उनके वोट देने के फैसले में प्रधानमंत्री उम्मीदवार की अहम भूमिका रही है| तीन चौथाई लोगों का मानना था कि इस आधार पर वोट देने के फैसले पर बड़ा प्रभाव दिखा है, वही 10 में से 3 मतदाताओं का मानना था कि मतदान से पहले वोट देने के फैसले में इस बिंदु की अहम भूमिका रही है|
वहीँ कांग्रेस और उसके घटक दलों को वोट देने वालों के मन में नेतृत्व के लिए कोई खास प्रभाव नहीं दिखा| कांग्रेस को वोट देने वाले आधे मतदाताओं का मानना था कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार ने उनके वोट देने के फैसले को प्रभावित किया लेकिन भाजपा की तुलना में यह काफी काम रहा है|
चुनाव के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को लेकर बहस होती रहती है| सत्तारूढ़ एनडीए सरकार सकल घरेलू उत्पाद और अर्थव्यवस्था को नए मुकाम पर पहुंचाने का दावा किया जबकि विपक्षी दलों का पूरा जोर सिर्फ बेरोजगारी और महंगाई पर ही पिछले 10 सालों से टिका हुआ है| कांग्रेस ने न्याय शब्द से देश के कमजोर वर्ग को साधने की कोशिश की लेकिन इस बार भी वे नाकाम रहे| इस चुनाव में लगभग 78 प्रतिशत मतदाताओं ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया है|
लोकसभा चुनाव में वोट देने से पहले लोगों ने अर्थव्यवस्था और अपनी आर्थिक स्थिति को भी महत्व दिया है| सर्वेक्षण के अनुसार जिन लोगों को आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ उनका वोट भी सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी दलों के बीच बट गया|वहीं जिन लोगों का यह मानना था कि उनकी आर्थिक स्थिति खराब हुई है उन्होंने अपना वोट विपक्षी दलों को दे दिया है| ऐसा मानने वाले आधे लोगों ने कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों को मत दिया है जबकी 23 फ़ीसदी लोगों ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों को अपना मत दिया है|
चुनाव के संपन्न होने के बाद लोगों से पूछा गया कि नरेंद्र मोदी भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं होते तो क्या वह अपने वोट देने के फैसले पर विचार करते? सवाल के जवाब में 25 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं होते तो वह वोट देने से पहले अपने फैसले पर विचार जरूर करते| सवाल के जवाब में 25 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि नरेंद्र मोदी अगर प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं होते तो वह वोट देने से पहले अपने फैसले पर विचार जरूर करते|
एनडीए और भाजपा को मोदी मैजिक पर भरोसा बरक़रार
आम चुनाव में भाजपा और एनडीए ने चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी के चेहरे के तौर पर पेश किया| एनडीए उम्मीदवारों ने जनता से कहा कि उन्हें उनका वोट नहीं चाहिए, वोट देश को सशक्त बनाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए देना है| इस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने अपने उम्मीदवारों के लिए नहीं बल्कि अपने गठबंधन के लिए प्रचार प्रसार किया| वहीं विपक्ष प्रधानमंत्री उम्मीदवार के मसले पर फैसला लेने में सुरक्षित मुद्रा में रहा| सर्वेक्षण से पता चला कि लोगों ने उम्मीदवार के मुद्दे पर ज्यादा भरोसा दिखाया है|