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सुकमा के जंगलों में सुरक्षा बलों की बड़ी कार्रवाई: 16 नक्सली ढेर

सुकमा के जंगलों में सुरक्षा बलों की बड़ी कार्रवाई: 16 नक्सली ढेर

सुकमा

आज, 29 मार्च 2025 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के घने जंगलों और पहाड़ों में एक बड़ी घटना सामने आई है। भारतीय सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ एक निर्णायक ऑपरेशन चलाया, जिसमें 16 नक्सलियों को ढेर कर दिया गया। यह मुठभेड़ सुकमा-दंतेवाड़ा सीमा पर उपमपल्ली केरलापाल क्षेत्र के जंगल में हुई, जो नक्सल प्रभावित इलाकों में से एक माना जाता है। इस ऑपरेशन में दो डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के जवान भी घायल हुए हैं, जिनका इलाज चल रहा है। यह घटना न केवल सुरक्षा बलों की तैयारी और साहस को दर्शाती है, बल्कि छत्तीसगढ़ में सुकमा नक्सलवाद के खिलाफ चल रही जंग में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हो सकती है।

मुठभेड़ की पृष्ठभूमि

सुकमा जिला लंबे समय से नक्सलियों का गढ़ सुकमा रहा है। यह क्षेत्र अपनी दुर्गम भौगोलिक स्थिति और घने जंगलों के कारण नक्सलियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों ने इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाई है और नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाए हैं। आज की मुठभेड़ भी इसी रणनीति का हिस्सा थी। सुकमा के पुलिस अधीक्षक किरण गंगाराम चव्हाण के अनुसार, खुफिया जानकारी मिली थी कि इस इलाके में 26 से 30 नक्सलियों का एक बड़ा समूह मौजूद है। इस सूचना के आधार पर डीआरजी और सीआरपीएफ की 159वीं बटालियन ने संयुक्त रूप से ऑपरेशन शुरू किया।

सुरक्षा बलों ने सुबह के शुरुआती घंटों में जंगल में घुसपैठ की और नक्सलियों के ठिकाने सुकमा पर हमला बोला। जैसे ही नक्सलियों ने जवानों को देखा, उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने भी पूरी ताकत झोंक दी। घंटों तक चली इस मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए, जबकि बाकी भागने में सफल रहे। मौके से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए, जिसमें एके-47, एसएलआर, और इंसास राइफलें शामिल हैं। यह बरामदगी इस बात का संकेत है कि नक्सली इस इलाके में किसी बड़ी साजिश की तैयारी में थे।

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सुरक्षा बलों का साहस और रणनीति

इस ऑपरेशन में शामिल डीआरजी और सीआरपीएफ के जवानों ने जिस साहस और समन्वय का परिचय दिया, वह काबिल-ए-तारीफ है। डीआरजी, जो स्थानीय पुलिस बलों का एक विशेष दस्ता है, इस तरह के अभियानों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती है। ये जवान न केवल इलाके की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हैं, बल्कि नक्सलियों की रणनीति को भी अच्छी तरह समझते हैं। दूसरी ओर, सीआरपीएफ की 159वीं बटालियन ने अपने अनुभव और प्रशिक्षण के दम पर इस ऑपरेशन को सफल बनाया।

मुठभेड़ के दौरान दो जवानों के घायल होने की खबर आई, लेकिन उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई आसान नहीं है। हर ऑपरेशन में जवान अपनी जान जोखिम में डालते हैं, ताकि आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इस मुठभेड़ के बाद सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है, क्योंकि सुरक्षा बलों को शक है कि इलाके में और नक्सली छिपे हो सकते हैं।

नक्सलवाद का बदलता चेहरा

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक जटिल समस्या रही है, जो दशकों से राज्य के विकास और शांति में बाधा डालती आ रही है। यह आंदोलन, जो कभी गरीबी और सामाजिक असमानता के खिलाफ एक वैचारिक लड़ाई के रूप में शुरू हुआ था, अब हिंसा और आतंक का पर्याय बन चुका है। हाल के वर्षों में नक्सलियों की ताकत में कमी आई है, जिसका श्रेय सुरक्षा बलों की बढ़ती सक्रियता और सरकार की नीतियों को जाता है। फिर भी, सुकमा जैसे इलाकों में उनकी मौजूदगी यह दिखाती है कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।

आज की मुठभेड़ इस बात का संकेत है कि नक्सली अब भी संगठित रूप से हमले करने की क्षमता रखते हैं। एके-47 और इंसास जैसे आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल इस बात की ओर इशारा करता है कि उनके पास अब भी संसाधनों की कमी नहीं है। हालांकि, सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाइयों ने उनके मनोबल को तोड़ा है और उनके ठिकानों को कमजोर किया है। यह ऑपरेशन नक्सलियों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि 16 नक्सलियों का एक साथ मारा जाना उनके संगठन को कमजोर कर सकता है।

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सरकार और समाज की भूमिका

नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें सरकार और समाज की भी अहम भूमिका है। छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास कार्यों को तेज किया है। सड़कें, स्कूल, अस्पताल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं को इन दुर्गम इलाकों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इसका मकसद स्थानीय लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना और नक्सलियों के प्रभाव को कम करना है।

हालांकि, यह प्रयास अभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। कई गांवों में लोग अब भी नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच फंसे हुए हैं। नक्सली अक्सर विकास कार्यों में बाधा डालते हैं और स्थानीय लोगों को डराने की कोशिश करते हैं। ऐसे में सरकार को न केवल सैन्य रणनीति, बल्कि सामाजिक और आर्थिक नीतियों पर भी ध्यान देना होगा। स्थानीय लोगों का भरोसा जीतना इस लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार हो सकता है।

भविष्य की राह

सुकमा की यह मुठभेड़ नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ी जीत है, लेकिन यह अंत नहीं है। सुरक्षा बलों को अपनी रणनीति को और मजबूत करना होगा, ताकि नक्सलियों को पूरी तरह खत्म किया जा सके। साथ ही, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस तरह के ऑपरेशनों में जवानों की सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान दिया जाए। घायल जवानों के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ, हमें उनके बलिदान को सम्मान देना चाहिए।

दूसरी ओर, सरकार को यह समझना होगा कि नक्सलवाद को खत्म करने के लिए केवल बंदूकें ही काफी नहीं हैं। शिक्षा, रोजगार और विकास के जरिए ही इस समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सकता है। सुकमा के पहाड़ों में आज जो हुआ, वह एक कदम आगे की ओर है, लेकिन अभी लंबा सफर बाकी है।

छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुई इस मुठभेड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि हमारे सुरक्षा बल किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं। 16 नक्सलियों को ढेर करना एक बड़ी उपलब्धि है, जो नक्सलियों के मनोबल को तोड़ने में मदद करेगी। लेकिन यह जीत तब तक अधूरी है, जब तक इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि पूरी तरह स्थापित नहीं हो जाती। नक्सलवाद के खिलाफ यह लड़ाई लंबी और जटिल है, लेकिन सही दिशा में उठाए गए कदम हमें मंजिल तक जरूर पहुंचाएंगे। सुकमा के पहाड़ आज खून से लाल हो गए, लेकिन उम्मीद है कि आने वाला कल शांति और खुशहाली का संदेश लेकर आएगा।

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