अमर सिंह चमकीला: समाज का चमकीला पहलू
एक चरित्र ‘चमकीला’ की पंजाब में बहुत चर्चा है क्या एक चमकीला हम सबके भीतर रहता है? सालों पहले मुंबई में एक लावणी प्रस्तुत के दौरान एक मित्र मराठी गीत के बोल मुझे हिंदी में अनुवाद करके बता रहे थे| कह रही थी कि यह प्रसिद्ध मराठी लोकगीत है | उन्होंने बचपन में अपने मोहल्ले की औरतों को गाते सुना था – उसे गीत का मतलब है इतरा के फाहे तुम मेरे लिए ले आना, बाहर की आग से ज्यादा मेरे अंदर है आग | तुम अपनी चंदन सी छाया मुझे उड़ा देना |
पिछले साप्ताह ओटीटी पर पंजाब के लोकप्रिय लोग गायक अमर सिंह चमकीला की जिंदगी पर बनी फिल्म देखते हुए मुझे उसे लावणी गीत कोई बेताहाशा याद आई | चमकीला पंजाबी में एक ऐसे ही गाने लिखते और गाते थे|
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प्रारंभिक जीवन
वह कहते थे, बचपन में मैंने यही सब देखा है गाने की बोल उन्होंने अपने आस-पास की जिंदगी से उठाए हैं | ऐसी जिंदगी, जो गांव देहात और कस्बो में आम लोग जीते थे | 1960 में पंजाब के एक छोटे से गांव दुगरी के दलित सिख परिवार में जन्मे धन्नी सिंह का बस एक छोटा सपना था इलेक्ट्रीशियन बनने का | धन्नी सिंह को तुमबी बजाने का शौक था | लुधियाना के एक कपड़ा मिल में काम करते हुए धन्नी को लगा कि उन्हें अपने मन का कुछ करना चाहिए | वह अपने मन से गीत बनाने लगे | ऐसे बोल, जो उसे समय पसंद किए जाते थे | उन बलों में खिलंदनापन था, बदमाशी, छेड़छाड़ भी थी और प्रेम वा अश्लीलता भी थी |
रातों- रात अमर सिंह चमकीला पंजाबी का सितारा बन गए थे | उनके लिए एक खिताब भी गढा गया – पंजाब का एलविस प्रेसले चमकीला को सुनने व गांव देहात की महिलाएं भी आती थी, जो उनको सुनाने के लिए घरों की छत पर जमा हो जाती थी | 1980 के दशक में उनके गीतों की कैसेट में रिकॉर्ड बिकते थे |
लेखक निर्देशक इम्तियाज अली ने अमर सिंह चमकीला को भूमिका में पंजाब हुआ बॉलीवुड के एक चिर परचित् चेहरा दलजीत दोसांझ को लिया है | यह फिल्म का एक दौर का दस्तावेज भर नहीं है | हालांकि, फिल्में चमकीला की जाति को लेकर न्यूनतम जिक्र हुआ था, लेकिन उनके निधन के 36 साल बाद आज भी यूट्यूब और दूसरे चैनलों पर उनके एक करोड़ से अधिक श्रोता है|
प्रसिद्ध संगीतज्ञ और लेखक गिव स्क्रफेर ने अपनी किताब में चमकीली और अमरजीत को ‘कमर्शियल फोक’ गायक कहा था | उन्होंने लिखा है उनका मकसद लोगों का मनोरंजन करना था | कोई अचरज नहीं, चमकीला पर फिल्म आने के बाद अचानक गूगल यूट्यूब स्पॉटीफी और अन्य सोशल मीडिया के लोग उनके बारे में जाने को उत्सुक हो गए हैं |एक लोक गायक बड़े सामाजिक विमर्श की वजह बन गया है | प्रश्न यह है कि क्या चमकीला आज भी प्रासंगिक है? क्या उन पर जो आरोप चार दशक पहले लगे थे, वे सही थे? क्या फिल्म बनाकर एक ‘अश्लील’ गायक को महिमा मंडित किया जाता है?
सज्जन व्यक्ति चमकीला
वैसे अश्लीलता की परिभाषा बहुत महीन है और कीजिए हमारे देश में नाना लोक संस्कृतियों में दुअर्थी गाने सदिओं से गुथे हुए हैं| उत्तर ने दक्षिण पर पूर्व से पश्चिम तक | यहां सब शुरू हुआ होगा, तब मनोरंजन और प्रसन्न के लिए कोई आधुनिक माध्यम नहीं था | सामाजिक परिवेश में अलग था | त्योहार और मेल मिलाप के दौरान मस्ती के माहौल में कुछ रियासतें ले ली जाती थी | प्रेम, यौनिक ठीथोली छेड़छाड़ और वर्जित विषयों पर चुट्टिकियां लेना आम बात थी |
अगर आप देखे, तो शादी ब्याह में गाली वाले प्रश्न, गीत, महाराष्ट्र में लावणी, हिमाचल की सीमा में के आस-पास मनाया जाने वाला पर्व हुलास, औरंगाबाद का देव उत्सव, होली में फगुआ के दौरान वही पुरानी परम्परा और गाने देखने सुनने को को मिलते रहे है | भोजपुरी और मगही, बुंदेली और मैथिली के लोकगीतों में मानव भावनाओं का अपेक्षाकृत सायाह, मगर चमकीला सा पल्लू बार-बार उभर आता है | ऐसे गीतों का हमारे समाज में हमेशा से विशेष स्थान रहा है|
ऐसे गीत गुजरात में भी गए जाते थे और कन्नड़ में भी | दुनिया के मशहूर लेखक में सुमार सहादत हसन मंटू और इस्मत चुगताई पर सालों तक अश्लील लेखन का तमग़ा लगा रहाऔर उन्होंने आदलतों में भी घसीटा गया | मुख्य धारा के साहित्य से भी कभी अश्लीलता को दूर नहीं किया जा सकता, अक्सर विमर्श को इस दिशा में मोड़ लिया गया की अश्लीलता देखने और सुनने वाले की निगाह या मन में है | तर्क यह तो भी पुराना है कि लोग सुनते हैं, इसलिए गीत बनते हैं | दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना या समान होगा, जहां थोड़ी मात्रा में रचनात्मक हासिल करना होगी|
तमिल फिल्मों के शीर्ष में निर्देशक मणि रत्नम ने भी तकरीबन अपनी में दुअर्थी और भदेस गीतों का इस्तेमाल किया है | रोजा फिल्म के गीत रुक्मणी, शादी के बाद क्या-क्या हुआ गीत के सन्दर्भ में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, मैंने बचपन से यही देखा है | मोहल्ले में किसी की भी शादी हो ,हर कोई आनंद में डूबने लगता है, संवाद की शैली बदलने लगती है, बूढ़े बूढ़े को छेड़ना ढके शब्दों में यौन संबंधों की बातें करना, यह सब बहुत सामान्य हो जाता है | लगभग सबको इसमें मजा आता है | हम इसे केवल अश्लील कह कर दबा नहीं सकते|