व्यापार युद्ध का नया मोड़: चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 125% तक बढ़ाया

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व्यापार युद्ध का नया मोड़: चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 125% तक बढ़ाया

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वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर दो महाशक्तियों—संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन—के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के नए दौर की गवाह बन रही है। 12 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होने वाली एक महत्वपूर्ण घोषणा में, चीन ने सभी अमेरिकी आयातों पर टैरिफ को 84% से बढ़ाकर 125% करने का फैसला किया है। यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर पहले से लागू 145% टैरिफ के जवाब में देखा जा रहा है। दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण व्यापारिक रिश्तों में यह नवीनतम वृद्धि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, उपभोक्ता कीमतों और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस निर्णय के कारणों, इसके संभावित परिणामों और वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि

चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयातों पर टैरिफ लगाने की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना, बौद्धिक संपदा की चोरी को रोकना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना था। जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ लगाए, जिससे दोनों देशों के बीच टैरिफ की होड़ शुरू हो गई।

2025 तक, यह व्यापार युद्ध और अधिक जटिल हो चुका है। अमेरिका ने हाल ही में चीनी टेक्नोलॉजी, स्टील, और अन्य सामानों पर 145% टैरिफ लागू किए, जिसे चीन ने “अनुचित व्यापार नीति” करार दिया। इसके जवाब में, चीन ने अपनी नवीनतम टैरिफ वृद्धि की घोषणा की, जिसके तहत अमेरिकी कृषि उत्पादों, ऑटोमोबाइल, और तकनीकी उपकरणों सहित सभी आयातों पर 125% टैरिफ लागू होगा। यह कदम दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नया तनावपूर्ण अध्याय शुरू करता है।

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चीन के टैरिफ बढ़ाने के कारण

चीन का यह निर्णय कई कारकों का परिणाम है:

  1. जवाबी कार्रवाई: अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाने को चीन ने अपने घरेलू उद्योगों के लिए खतरा माना है। 125% टैरिफ का कदम अमेरिका को यह संदेश देता है कि चीन भी अपने हितों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठा सकता है।
  2. घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: चीन की अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पादन और नवाचार को बढ़ावा देना एक प्रमुख प्राथमिकता रही है। उच्च टैरिफ से अमेरिकी उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे चीनी उपभोक्ता स्थानीय विकल्पों की ओर आकर्षित होंगे।
  3. राजनीतिक संदेश: यह कदम केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। चीन वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है और यह दिखाना चाहता है कि वह अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
  4. आर्थिक दबाव: वैश्विक मंदी और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों के बीच, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए कदम उठा रहा है। टैरिफ से होने वाली आय का उपयोग घरेलू उद्योगों को सब्सिडी देने और बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए किया जा सकता है।

वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

चीन के इस फैसले का वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। निम्नलिखित कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहां इसका असर दिख सकता है:

1. आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान

चीन और अमेरिका वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के दो सबसे बड़े केंद्र हैं। उच्च टैरिफ से दोनों देशों के बीच व्यापार कम होगा, जिससे कंपनियों को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ेगी। उदाहरण के लिए, अमेरिकी कंपनियां जो चीनी बाजार पर निर्भर हैं, जैसे कि Apple या Tesla, को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है।

2. उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि

टैरिफ का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। अमेरिकी उत्पादों पर 125% टैरिफ से चीन में इनकी कीमतें बढ़ेंगी, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक खर्च करना पड़ेगा। इसी तरह, अमेरिका में चीनी उत्पादों पर उच्च टैरिफ के कारण वहां भी कीमतें बढ़ेंगी। इससे दोनों देशों में मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा है।

3. अन्य देशों पर प्रभाव

यह व्यापार युद्ध केवल चीन और अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा। अन्य देश जो इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर हैं, जैसे कि भारत, जापान, और यूरोपीय संघ, भी प्रभावित होंगे। उदाहरण के लिए, भारत जैसे देशों को अपने निर्यात को फिर से संरेखित करने और नए व्यापार समझौतों पर विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।

4. वैश्विक आर्थिक मंदी का जोखिम

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पहले ही चेतावनी दी है कि व्यापार युद्ध वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव निवेशकों के विश्वास को कम कर सकता है, जिससे शेयर बाजारों में अस्थिरता और पूंजी प्रवाह में कमी आ सकती है।

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उद्योग-विशिष्ट प्रभाव

1. कृषि

अमेरिकी कृषि उत्पाद, जैसे सोयाबीन, मक्का, और पोर्क, चीन के लिए महत्वपूर्ण निर्यात हैं। 125% टैरिफ से इन उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे चीनी आयातक ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं। इससे अमेरिकी किसानों को भारी नुकसान होगा।

2. प्रौद्योगिकी

प्रौद्योगिकी क्षेत्र भी इस व्यापार युद्ध से अछूता नहीं रहेगा। अमेरिकी चिप निर्माता जैसे NVIDIA और Intel, जो चीनी बाजार पर निर्भर हैं, को अपनी बिक्री में कमी का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, चीन अपनी स्वदेशी चिप निर्माण क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है, जो लंबे समय में वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा को बदल सकता है।

3. ऑटोमोबाइल

अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनियां जैसे Ford और General Motors चीन में बड़े पैमाने पर बिक्री करती हैं। उच्च टैरिफ से इन वाहनों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।

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भविष्य की संभावनाएं

चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध का यह नया दौर कई दिशाओं में जा सकता है। कुछ संभावित परिदृश्य निम्नलिखित हैं:

  1. बातचीत और समझौता: दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए व्यापार वार्ताएं फिर से शुरू हो सकती हैं। हालांकि, वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह मुश्किल लगता है।
  2. क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉक का उदय: उच्च टैरिफ से दोनों देश क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर अधिक ध्यान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, चीन RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) के माध्यम से एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर सकता है, जबकि अमेरिका CPTPP (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership) में शामिल होने पर विचार कर सकता है।
  3. आर्थिक अलगाव: सबसे खराब स्थिति में, दोनों देश एक-दूसरे से आर्थिक रूप से अलग हो सकते हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था दो खेमों में बंट सकती है। यह दीर्घकालिक स्थिरता के लिए हानिकारक होगा।

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चीन द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ को 125% तक बढ़ाने का निर्णय वैश्विक व्यापार युद्ध में एक नया और खतरनाक मोड़ है। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, उपभोक्ता कीमतों, और आर्थिक स्थिरता पर भी गहरा असर डालेगा। इस स्थिति में, अन्य देशों को सावधानीपूर्वक अपनी नीतियों को संरेखित करना होगा ताकि वे इस अस्थिरता का सामना कर सकें।

आने वाले महीनों में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या दोनों देश तनाव कम करने के लिए बातचीत की मेज पर लौटते हैं या यह व्यापार युद्ध और गहरा होता है। एक बात निश्चित है—वैश्विक अर्थव्यवस्था इस युद्ध के परिणामों से अछूती नहीं रहेगी। क्या आप इस व्यापार युद्ध के प्रभावों को लेकर चिंतित हैं? अपने विचार कमेंट में साझा करें!

ट्रम्प के टैरिफ़ विराम से बाज़ार में हेरफेर के दावे उभरे: एक गहरा विश्लेषण

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ट्रम्प के टैरिफ़ विराम से बाज़ार में हेरफेर के दावे उभरे: एक गहरा विश्लेषण

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10 अप्रैल 2025 को, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर सुर्खियों में जगह बनाई। इस बार मामला उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर की गई एक पोस्ट और उसके बाद की गई एक बड़ी नीतिगत घोषणा से जुड़ा है। बुधवार को, ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल पर लिखा कि निवेशकों के लिए यह “खरीदारी करने का एक बढ़िया समय” है। उनकी यह पोस्ट अपने आप में सामान्य लग सकती थी, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उन्होंने उच्च टैरिफ़ पर 90 दिनों के विराम की घोषणा की।

इस घोषणा का असर तत्काल देखने को मिला—शेयर बाज़ार में उल्लेखनीय तेजी आई। लेकिन इस तेजी के साथ ही विवाद भी शुरू हो गया। आलोचकों, जिनमें कुछ डेमोक्रेटिक नेता भी शामिल हैं, ने ट्रम्प पर बाज़ार में हेरफेर और संभावित अंदरूनी व्यापार (इनसाइडर ट्रेडिंग) का आरोप लगाया। इन आरोपों ने न केवल ट्रम्प की मंशा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि इस मामले की गहन जांच की मांग को भी तेज कर दिया है। आइए, इस घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।

ट्रम्प की पोस्ट और टैरिफ़ विराम की घोषणा

ट्रम्प का ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करना कोई नई बात नहीं है। वह अक्सर इस मंच का उपयोग अपने विचारों, नीतियों और समर्थकों से संवाद करने के लिए करते हैं। बुधवार को उनकी पोस्ट में निवेशकों को शेयर बाज़ार में खरीदारी करने की सलाह दी गई थी। यह संदेश अपने आप में अस्पष्ट था—इसमें कोई विशिष्ट स्टॉक या सेक्टर का उल्लेख नहीं था। लेकिन कुछ ही घंटों बाद, ट्रम्प ने घोषणा की कि वह उच्च टैरिफ़, जो वैश्विक व्यापार और बाज़ारों पर दबाव डाल रहे थे, को 90 दिनों के लिए स्थगित कर रहे हैं। यह घोषणा अप्रत्याशित थी, क्योंकि हाल के महीनों में ट्रम्प अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत टैरिफ़ को बढ़ाने की वकालत करते रहे थे।

इस घोषणा का असर तुरंत शेयर बाज़ार पर दिखा। अमेरिकी बाज़ारों में तेजी आई, और कई प्रमुख सूचकांकों ने दिन के अंत तक उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। निवेशकों ने इस कदम को सकारात्मक माना, क्योंकि टैरिफ़ का स्थगन वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता को कम करने वाला कदम था। लेकिन इस तेजी के पीछे की कहानी इतनी साधारण नहीं थी।

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बाज़ार में हेरफेर और अंदरूनी व्यापार के आरोप

ट्रम्प की पोस्ट और टैरिफ़ विराम की घोषणा के बीच का समय अंतर—महज कुछ घंटे—आलोचकों के लिए संदेह का मुख्य कारण बना। उनका तर्क है कि ट्रम्प ने अपनी पोस्ट के जरिए निवेशकों को एक संकेत दिया, जिसके बाद उनकी घोषणा ने बाज़ार को ऊपर की ओर धकेल दिया। कुछ आलोचकों ने इसे बाज़ार में हेरफेर का एक स्पष्ट उदाहरण बताया। डेमोक्रेटिक नेताओं और वित्तीय विश्लेषकों के एक वर्ग ने दावा किया कि यह संभव है कि ट्रम्प या उनके करीबी सहयोगियों ने इस जानकारी का उपयोग निजी लाभ के लिए किया हो।

अंदरूनी व्यापार का आरोप गंभीर है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें कोई व्यक्ति गोपनीय, गैर-सार्वजनिक जानकारी का उपयोग करके शेयर बाज़ार में व्यापार करता है। यदि ट्रम्प या उनके सहयोगियों ने टैरिफ़ विराम की घोषणा से पहले स्टॉक खरीदे और फिर घोषणा के बाद उन्हें बेचकर मुनाफा कमाया, तो यह कानूनी रूप से अंदरूनी व्यापार माना जा सकता है। हालांकि, अभी तक इस तरह का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है। फिर भी, सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने दावा किया कि ट्रम्प के करीबी कॉर्पोरेट दोस्तों ने इस छोटे समय अंतराल में लाखों गुना मुनाफा कमाया। ये दावे अभी सत्यापित नहीं हुए हैं, लेकिन इनसे विवाद और गहरा गया है।

शेयर बाज़ार पर प्रभाव

टैरिफ़ नीतियों का शेयर बाज़ार पर सीधा असर पड़ता है। पिछले कुछ महीनों में, ट्रम्प की आक्रामक टैरिफ़ नीतियों ने वैश्विक बाज़ारों में अस्थिरता पैदा की थी। एशियाई और यूरोपीय बाज़ारों में गिरावट देखी गई थी, और अमेरिकी बाज़ार भी दबाव में थे। लेकिन 90 दिनों के टैरिफ़ विराम की घोषणा ने इस माहौल को अचानक बदल दिया। निवेशकों ने राहत की सांस ली, और स्टॉक की कीमतों में तेजी देखी गई। विशेष रूप से उन कंपनियों के शेयरों में उछाल आया जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भर हैं, जैसे कि टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल सेक्टर।

हालांकि, यह तेजी सभी के लिए सकारात्मक नहीं थी। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह एक अस्थायी उछाल हो सकता है। टैरिफ़ नीति में बार-बार बदलाव बाज़ार में अनिश्चितता को बढ़ा सकता है, और निवेशकों का भरोसा लंबे समय तक बना रहना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, यदि अंदरूनी व्यापार के आरोपों की जांच शुरू होती है, तो यह बाज़ार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा सकता है।

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आलोचकों का पक्ष

आलोचकों का कहना है कि ट्रम्प का यह कदम उनकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है—अप्रत्याशित बयानों और नीतियों के जरिए बाज़ार और जनता का ध्यान अपनी ओर खींचना। डेमोक्रेटिक नेताओं ने इसे “अनैतिक और संभावित रूप से अवैध” करार दिया। एक वरिष्ठ डेमोक्रेटिक सांसद ने कहा, “ट्रम्प ने पहले भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है, और यह उसी का एक और उदाहरण है। हमें इसकी जांच करनी चाहिए कि क्या उन्होंने या उनके सहयोगियों ने इस घोषणा से पहले बाज़ार में कोई असामान्य गतिविधि की।” कुछ स्वतंत्र विश्लेषकों ने भी इस बात पर सहमति जताई कि समय संदिग्ध है और इसकी पारदर्शी जांच जरूरी है।

ट्रम्प का मौन

इन सभी आरोपों के बावजूद, ट्रम्प ने अभी तक इस मामले पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। यह उनके लिए असामान्य नहीं है—वह अक्सर विवादों के बीच चुप्पी साध लेते हैं और बाद में अपने समर्थकों के बीच अपनी बात रखते हैं। उनके समर्थकों का मानना है कि यह आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और डेमोक्रेट्स ट्रम्प को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। एक समर्थक ने सोशल मीडिया पर लिखा, “ट्रम्प ने बाज़ार को बचाया, और अब वामपंथी उन्हें इसके लिए सजा देना चाहते हैं। यह हास्यास्पद है।”

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आगे की राह

इस घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या वास्तव में अंदरूनी व्यापार हुआ था? इसके लिए अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) को ट्रम्प की घोषणा से पहले और बाद के बाज़ार के लेनदेन की जांच करनी होगी। दूसरा, क्या यह बाज़ार में हेरफेर का मामला है? यह साबित करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसके लिए ट्रम्प की मंशा को स्पष्ट रूप से स्थापित करना होगा। तीसरा, इस घटना का लंबे समय तक बाज़ार और ट्रम्प की विश्वसनीयता पर क्या असर होगा?

फिलहाल, यह स्पष्ट है कि ट्रम्प का टैरिफ़ विराम एक साधारण नीतिगत निर्णय से कहीं अधिक है। यह एक ऐसा कदम है जिसने आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी बहस को जन्म दिया है। यदि जांच शुरू होती है और आरोप सिद्ध होते हैं, तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। दूसरी ओर, यदि यह केवल एक संयोग साबित होता है, तो ट्रम्प के समर्थक इसे उनकी आर्थिक कुशलता के प्रमाण के रूप में पेश करेंगे।

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ट्रम्प के टैरिफ़ विराम और उससे पहले की उनकी पोस्ट ने शेयर बाज़ार को एक नई दिशा दी, लेकिन साथ ही विवादों को भी हवा दी। बाज़ार में हेरफेर और अंदरूनी व्यापार के आरोप गंभीर हैं, और इनका सच सामने आने में समय लगेगा। तब तक, यह घटना ट्रम्प के अप्रत्याशित और प्रभावशाली व्यक्तित्व का एक और उदाहरण बनी रहेगी। निवेशकों, आलोचकों और समर्थकों की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि यह कहानी आगे कैसे बढ़ती है। क्या यह एक सुनियोजित चाल थी, या महज एक संयोग? इसका जवाब भविष्य में ही मिलेगा।

सीरिया के अल्पसंख्यक संकट में: नरसंहार की खबरें और मदद की गुहार

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सीरिया के अल्पसंख्यक संकट में: नरसंहार की खबरें और मदद की गुहार

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सीरिया, एक ऐसा देश जो पिछले डेढ़ दशक से गृहयुद्ध की आग में जल रहा है, आज फिर से सुर्खियों में है। लेकिन इस बार वजह बशर अल-असद की सत्ता का पतन नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों पर मंडरा रहा खतरा है। दिसंबर 2024 में विद्रोही समूह हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में असद शासन के खात्मे के बाद, उम्मीद थी कि शायद सीरिया में शांति की किरण दिखेगी। मगर इसके उलट, अल्पसंख्यक समुदायों – जैसे अलावी, शिया, ईसाई और कुर्द – पर हमले बढ़ गए हैं।

नरसंहार की खबरें सामने आ रही हैं, और इन समुदायों की मदद की गुहार दुनिया के सामने एक अनसुनी चीख बनकर रह गई है। इस ब्लॉग में हम सीरिया के इन अल्पसंख्यकों की स्थिति, उनके खिलाफ हिंसा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी पर बात करेंगे।

असद के बाद का सीरिया: उम्मीद से संकट तक

सीरिया में असद शासन का अंत 8 दिसंबर 2024 को हुआ, जब HTS और तुर्की समर्थित सीरियाई नेशनल आर्मी (SNA) ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया। असद के रूस भागने के बाद, कई लोगों को लगा कि 14 साल की तबाही के बाद शायद अब शांति आएगी। लेकिन नई अंतरिम सरकार, जिसके प्रमुख अहमद अल-शारा (HTS के नेता) को बनाया गया, ने अल्पसंख्यकों के लिए एक नया दुःस्वप्न शुरू कर दिया। सुन्नी बहुल HTS, जिसे पहले अल-कायदा से जोड़ा जाता था, पर आरोप है कि वह अलावी और शिया समुदायों को निशाना बना रही है। ईसाई और कुर्द भी इस हिंसा से अछूते नहीं रहे।

सोशल मीडिया पर हाल की पोस्ट्स और कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, मार्च 2025 की शुरुआत में ही लताकिया और अन्य इलाकों में सैकड़ों अलावी और शिया लोगों की हत्या की खबरें आईं। इन हमलों को सुनियोजित बताया जा रहा है, जहाँ पूरे मोहल्लों को चिह्नित कर आगजनी और गोलीबारी की गई। यह हिंसा न सिर्फ बदले की भावना से प्रेरित लगती है, बल्कि धार्मिक और जातीय असहिष्णुता का भी परिचायक है।

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अल्पसंख्यकों का इतिहास और उनकी भूमिका

सीरिया की आबादी में लगभग 50% अरब सुन्नी हैं, लेकिन यहाँ अलावी (15%), कुर्द (10%), ईसाई (10%), और अन्य समुदाय जैसे द्रूज़ और इस्माइली भी हैं। असद परिवार, जो अलावी समुदाय से था, ने अपने शासन में अलावियों को विशेष दर्जा दिया, जिससे सुन्नी बहुसंख्यकों में नाराजगी बढ़ी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी अलावी शासन के समर्थक थे। इसी तरह, ईसाई और कुर्द समुदायों ने भी अपनी पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष किया।

2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध में इन समुदायों को कई बार निशाना बनाया गया। इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने ईसाइयों और यज़ीदियों पर हमले किए, जबकि कुर्दों ने उत्तरी सीरिया में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़ी। असद शासन ने भी अपने विरोधियों को कुचलने के लिए क्रूरता दिखाई। लेकिन अब, असद के जाने के बाद, HTS जैसे समूह अल्पसंख्यकों को “शासन के सहयोगी” मानकर उन पर हमला कर रहे हैं, भले ही उनकी व्यक्तिगत भूमिका कुछ भी रही हो।

नरसंहार की ताजा खबरें

हाल की रिपोर्ट्स और X पर वायरल पोस्ट्स के अनुसार, लताकिया के शरेफा गाँव में दो भाइयों, माहेर और यासिर बाबौद, को HTS आतंकियों ने मार डाला। इसी तरह, पिछले तीन दिनों में 1000 से ज्यादा ईसाइयों और 5000 से ज्यादा शियाओं के नरसंहार की बात कही जा रही है। ये आँकड़े पुष्ट नहीं हैं, लेकिन ये दर्शाते हैं कि हिंसा का स्तर कितना भयावह हो सकता है। दमिश्क, होम्स और अलेप्पो जैसे शहरों में अल्पसंख्यक मोहल्लों को जलाने और लूटने की खबरें भी सामने आई हैं।

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर यह हिंसा नहीं रुकी, तो सीरिया एक और मानवीय संकट की ओर बढ़ सकता है। पहले से ही 70 लाख लोग देश के अंदर विस्थापित हैं, और 54 लाख से ज्यादा शरणार्थी विदेशों में हैं। नई हिंसा से यह संख्या और बढ़ सकती है।

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अल्पसंख्यकों की गुहार

इन हमलों के बीच, अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से मदद की पुकार उठ रही है। ईसाई चर्चों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की माँग की है, जबकि अलावी और शिया नेताओं ने कहा है कि उनकी बस्तियाँ सुनियोजित हमलों का शिकार बन रही हैं। कुर्दिश बल, जो उत्तरी सीरिया में सक्रिय हैं, भी तुर्की समर्थित समूहों से लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर पड़ती जा रही है।

एक अलावी महिला ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हमारा कसूर सिर्फ इतना है कि हमारा जन्म इस समुदाय में हुआ। हमारे घर जल रहे हैं, हमारे बच्चे मर रहे हैं, और दुनिया चुप है।” यह दर्द सिर्फ एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे सीरिया का है, जहाँ हर समूह ने किसी न किसी रूप में युद्ध की कीमत चुकाई है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की खामोशी

सीरिया के इस नए संकट पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही है। संयुक्त राष्ट्र ने 21 दिसंबर 2016 को स्थापित “इंटरनेशनल, इम्पार्शियल एंड इंडिपेंडेंट मैकेनिज्म” (IIIM) के जरिए युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की थी, लेकिन इसके प्रयास अब तक सीमित हैं। अमेरिका, रूस और तुर्की जैसे देश अपनी रणनीतिक चालों में उलझे हैं, जबकि यूरोपीय देश शरणार्थी संकट से निपटने में व्यस्त हैं। मानवाधिकार संगठन जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने HTS पर नकेल कसने की माँग की है, लेकिन ठोस कार्रवाई का अभाव है।

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क्या है हिंसा का कारण?

यह हिंसा सिर्फ धार्मिक नफरत का नतीजा नहीं है। असद शासन के दौरान अलावियों को मिले विशेषाधिकारों ने सुन्नी समुदाय में गुस्सा भरा था, और अब HTS इसे “बदला” के रूप में देख रहा है। लेकिन यह बदला निर्दोषों पर उतारा जा रहा है। इसके अलावा, क्षेत्रीय शक्तियों जैसे तुर्की और ईरान का प्रभाव भी इस हिंसा को बढ़ावा दे रहा है। तुर्की HTS को समर्थन दे रहा है, जबकि ईरान शिया समूहों की मदद कर रहा है। यह एक जटिल शक्ति संतुलन का खेल है, जिसमें अल्पसंख्यक पिस रहे हैं।

आगे की राह

सीरिया के अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। पहला, HTS और अन्य सशस्त्र समूहों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाए ताकि हिंसा रोकी जा सके। दूसरा, मानवीय सहायता को बढ़ाया जाए, खासकर उन इलाकों में जहाँ लोग विस्थापित हो रहे हैं। तीसरा, एक समावेशी सरकार की स्थापना हो, जिसमें सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व मिले।

सीरिया के अल्पसंख्यक आज एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। उनकी चीखें, उनके आँसू, और उनकी गुहार हमें यह याद दिलाते हैं कि युद्ध का असली दर्द इंसानियत पर पड़ता है। यह सिर्फ सीरिया की कहानी नहीं है, बल्कि हमारी साझा जिम्मेदारी की परीक्षा है। क्या हम इन मासूमों को बचाने के लिए एकजुट होंगे, या उनकी पुकार को अनसुना छोड़ देंगे? यह सवाल हम सबके सामने है। आइए, उनकी आवाज बनें, उनके लिए लड़ें, और उन्हें वह सम्मान दें जो हर इंसान का हक है।

बांग्लादेश में अलकायदा एक्टिव, ISI के इशारे पर शेख मुजीबुर रहमान के घर पर तोड़फोड़

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बांग्लादेश में अलकायदा एक्टिव, ISI के इशारे पर शेख मुजीबुर रहमान के घर पर तोड़फोड़

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बांग्लादेश में हाल ही में आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है, जिसमें अलकायदा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पर आरोप है कि वह बांग्लादेश में अस्थिरता पैदा करने के लिए कट्टरपंथी गुटों को समर्थन दे रही है। इस संदर्भ में, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के ऐतिहासिक घर (धनमंडी 32) पर हाल ही में हुई तोड़फोड़ ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है।

अलकायदा की बढ़ती गतिविधियां और बांग्लादेश में कट्टरपंथ का खतरा

बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों में चरमपंथी संगठनों की सक्रियता बढ़ी है। अलकायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS) ने बांग्लादेश में अपने नेटवर्क को मजबूत किया है, जो पहले से ही स्थानीय कट्टरपंथी संगठनों जैसे अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) और जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) के साथ जुड़ा हुआ है। ये संगठन भारत-विरोधी और उदारवादी विचारों के खिलाफ हमलों के लिए कुख्यात हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि ISI, बांग्लादेश में धार्मिक कट्टरपंथ और आतंकवाद को बढ़ावा देकर देश की स्थिरता को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। यह रणनीति न केवल बांग्लादेश को अस्थिर करने के लिए बल्कि भारत की पूर्वी सीमा पर सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने के लिए भी अपनाई जा रही है।

अलकायदा

शेख मुजीबुर रहमान का घर क्यों बना निशाना?

शेख मुजीबुर रहमान का घर, जिसे धनमंडी 32 के नाम से जाना जाता है, बांग्लादेश की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का प्रतीक है। 15 अगस्त 1975 को इसी घर में शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। यह स्थान बांग्लादेश की राजनीतिक विरासत और देश के स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति से जुड़ा हुआ है।

हाल ही में, कुछ कट्टरपंथी अलकायदा समूहों ने इस घर पर हमला किया और तोड़फोड़ की। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह हमला योजनाबद्ध था और इसके पीछे ISI के इशारे पर काम करने वाले संगठनों का हाथ हो सकता है।

क्या ISI कर रही है बांग्लादेश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश?

ISI लंबे समय से बांग्लादेश के कट्टरपंथी समूहों के साथ गुप्त संबंध बनाए हुए है। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से ही पाकिस्तान इस क्षेत्र में भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में, ISI पर आरोप लगे हैं कि वह बांग्लादेश में आतंकवादी संगठनों को धन और प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। इसका मकसद बांग्लादेश सरकार को कमजोर करना, कट्टरपंथी गुटों को मजबूत करना और दक्षिण एशिया में अस्थिरता पैदा करना है।

विशेषज्ञों के अनुसार:

  • AQIS और अन्य कट्टरपंथी समूहों को ISI से अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता रहा है।
  • बांग्लादेश में कई आतंकवादी हमलों के पीछे ISI की छाया देखी गई है।
  • ISI, बांग्लादेश के राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण को भड़काने की रणनीति पर काम कर रही है।

अलकायदा

बांग्लादेश सरकार की प्रतिक्रिया और आगे की चुनौतियाँ

बांग्लादेश सरकार ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और जांच के आदेश दिए हैं। हालाँकि, देश में लगातार बढ़ रही कट्टरपंथी गतिविधियों और बाहरी हस्तक्षेप से निपटना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों को अब तीन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना होगा:

  1. अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों पर कड़ी निगरानी रखना।
  2. ISI के गुप्त अभियानों को उजागर कर उनके प्रभाव को कम करना।
  3. देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करना।

शेख मुजीबुर रहमान के घर पर हमला केवल एक इमारत पर हमला नहीं था, बल्कि यह बांग्लादेश की ऐतिहासिक विरासत और धर्मनिरपेक्ष पहचान पर हमला था। अलकायदा और ISI की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, और बांग्लादेश को इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए मजबूत रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।

यदि सरकार कट्टरपंथी ताकतों पर सख्ती नहीं बरतती, तो यह देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। बांग्लादेश को अपने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए सतर्क रहना होगा, अन्यथा यह कट्टरपंथ और आतंकवाद का नया केंद्र बन सकता है।

खेल अपडेट: भारत का टी20 विश्व कप 2024 में आज सामना अमेरिका से

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खेल अपडेट: भारत का टी20 विश्व कप 2024 में आज सामना अमेरिका से

भारत

एक तरफ टीम इंडिया है, तो दूसरी तरफ टीम यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, क्योंकि बुधवार को नासाउ काउंटी स्टेडियम में टी20 वर्ल्ड कप 2024 में भारत और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के बीच रोमांचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। कप्तान रोहित शर्मा की अगुआई वाली टीम इंडिया लगातार 3 जीत के साथ सुपर 8 में अपनी जगह पक्की करना चाहेगी।

पाक को हराकर सबसे बड़ा उलटफेर करने वाली अमेरिकी टीम से भारतीय टीम को भी सतर्क रहना होगा| जरा सी भी ढिलाई भारतीय टीम को भारी पड़ सकती है| अमेरिकी टीम के पास भले ही कम अनुभव हो पर उसने हाल ही में काफी सराहनीय प्रदर्शन किया है| भारतीय टीम अमेरिका को कम आंकने की कोशिश नहीं करेगा| भारतीय टीम के शीर्ष और मध्य क्रम के बल्लेबाज अमेरिका के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन करके आगे के बड़े और महत्त्वपूर्ण मैचों के लिए लय हासिल करने की कोशिश करेंगे| नसाउ काउंटी स्टेडियम की पिच ने बल्लेबाजों को बहुत परेशान किया है और बल्लेबाज़ी के लिए अनुकूल नहीं रही है|

अमेरिका के खिलाफ गलती नहीं दोहराना चाहेंगे भारतीय बल्लेबाज

भारतीय टीम के बल्लेबाज़ अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने से बचना चाहेंगे, जब टीम ने 30 रनों के अंदर अपने अंतिम 7 विकेट खो दिए थे| अमेरिका की टीम में आधे से ज्यादा ऐसे खिलाड़ी हैं जिनका भारत की तरफ से खेलने का सपना पूरा नहीं हो पाया था, इनमें सौरव नेत्रवालकर और अमित सिंह का नाम भी शामिल हैं| इन दोनों खिलाडियों ने अपनी टीम की तरफ से अभी तक काफी अच्छा प्रदर्शन किया है|

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भारत

पिच के व्यवहार ने भले ही हर टीमों के बीच अंतर को कम कर दिया हो पर अमेरिका के लिए भारतीय टीम से पार पाना बहुत कठिन होगा| टूर्नामेंट से लगभग बहार हो चुकी पाक पर सुपर ओवर में रोमांचक जीत दर्ज करने के बावजूद अमेरिका के खिलाड़ियों की चर्चा कम है पर भारत के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन उन्हें क्रिकेट जगत में एक अच्छी पहचान दिला सकता है| जब अमेरिका के सामने रोहित, कोहली, बुमराह, हार्दिक जैसे दिग्गज हों तो मैच में रोमांच का बढ़ना स्वाभाविक है|

भारतीय स्टार सुमित नागल ने ओलंपिक में जगह बनाई

भारत के शीर्ष वरीय टेनिस स्टार सुमित नागल ने आधिकारिक रूप से इस साल होने फ्रांस में होने वाले पेरिस ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई कर लिया है| उन्होंने मंगलवार को बोस्निआ के नर्मन फैटिक को हरा एटीपी 125 पेरूगिया चैलेंजर के प्री क्वार्टर फाइनल में प्रवेश कर लिया है|

अंतरराष्ट्रीय टेनिस महासंघ बुधवार को ओलंपिक क्वालीफाई करने वाले खिलाड़ियों के बारे में राष्ट्रीय महासंघों को सूचित करेगा| राष्ट्रीय ओलंपिक समीतियां 19 जून तक अपनी प्रविष्टियों की पुष्टि करेंगी|

छठे वरीय भारतीय सुमित नागल ने पहले दौर में 7-6, 6-2 से जीत दर्ज की| सुमित नागल अब स्थानीय खिलाड़ी एलेसांद्रो जियाननेसी से मुकाबला करेंगे| वहीँ इसी जीत के साथ एटीपी लाइव रैंकिंग में सुमित नागल जी 73वें स्थान पर पहुंच गए हैं जो उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग है| सुमित नागल ने इस तरह एटीपी रैंकिंग के जरिए पेरिस ओलंपिक्स पुरुष एकल ड्रा में अपना स्थान पक्का कर लिया है|

हरभजन सिंह ने सिखाया कामरान अकमल को सबक

पाक के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज कामरान अकमल ने भारत के युवा तेज गेंदबाज अर्शदीप सिंह के खिलाफ अपनी शर्मनाक टिप्पणी के लिए माफी मांगी है| भारत-पाक के बीच टी20 विश्व कप 2024 के मैच का विश्लेषण करते हुए कामरान अकमल ने तेज गेंदबाज अर्शदीप सिंह के सिख धर्म का मजाक बनाया था जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया| इसके जवाब में पूर्व भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया की|

कामरान ने हरभजन को टैग करते हुए एक्स पर लिखा कि मुझे अपनी टिप्पणियों पर गहरा दुःख है और मैं हरभजन सिंह और सिख समुदाय से ईमानदारी से माफी मांगता हूं, मेरे शब्द अनुचित और अपमानजनक थे| मैं दुनिया भर के सिखों का बहुत सम्मान करता हूं और मेरा कभी भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं था| मैं सच में माफी चाहता हूं|

भारत

कामरान ने भारत के खिलाफ मैच में पाक की बल्लेबाजी के दौरान यह टिप्पणी की थी| तब पाक को अंतिम यानि 20वे ओवर में 17 रनों की आवश्यकता थी| कामरान अकमल ने आखिरी ओवर से पहले कहा था की कुछ भी हो सकता है| देखिए, अंतिम ओवर अर्शदीप सिंह को ही कराना है और वह अच्छी लय में नहीं दिख रहा है और 12 बज गए हैं|

हरभजन ने यह वीडियो रिपोर्ट किया जिसमें अकमल के साथ बैठे अन्य लोगों को भी हंसते हुए दिखाया गया है| अकमल पर पलटवार करते हुए हरभजन ने कहा, आपको अपना गन्दा मुँह खोलने से पहले सिखों का इतिहास जान लेना चाहिए| हम सिखों ने अपनी माताओं और बहनों को बचाया है जब उन्हें आक्रमणकारियों ने अगवा कर लिया था| समय 12 बजे का था| शर्म आनी चाहिए आप लोगों को| कुछ तो आभार मानिये|

अमेरिका ने इजरायल की तरफ बढ़ाया हाथ, ईरान ने कब्जा किया पोत जिस पर 17 भारतीय मौजूद

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अमेरिका

ईरान ने ओमान की खाड़ी में होर्मुज के पास एक इजरायली पोत को रोक कर कब्जे में ले लिया| इसे ईरान की ओर ले जाया गया है| इस घटना के बाद दोनों देशों में तनाव और बढ़ गया है| पोत पर चालक दल के 25 सदस्य भी सवार हैं, जिसमें भारत के 17 नागरिक भी हैं|

पोत जब ईरान के जल क्षेत्र से गुजर रहा था तो ईरानी नौसैनिक इकाई के विशेष बलों ने पोत पर हमला बोला| यह सभी हेलीकॉप्टर से पोत पर उतरे और कुछ समय में पोत को कब्जे में ले लिया| इस पर पुर्तगाल देश का राष्ट्रीय ध्वज लगा था और इसका संचालन लंदन स्थित जोडियाक मैरिटाइम कंपनी कर रही थी, जो इजरायली अरबपति इयाल ओफर के जोडियाक ग्रुप का हिस्सा है|

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अंतिम बार यूएई में रुका था पोत

एमएससी एरीज नाम का एक पोत आखिरी बार संयुक्त अरब अमीरात के बंदरगाह पर रुका था और बीते शुक्रवार को रवाना हुआ| देर शाम जोडियाक ग्रुप ने पोत पर कब्जे की पुष्टि की है| हमले की जानकारी पहले देते हुए ब्रिटिश सेना के मैरिटाइम ट्रेड ऑपरेशंस ने कहा कि घटना अमिराती शहर फुजैराह के पास ओमान खाड़ी में हुई|

इजराइल ने समुद्री डकैती बताया

इजराइली मंत्री काट्ज़ ने ईरान के इस अभियान को समुद्री डकैती करार दिया और कहा है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है|उन्होंने ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स को आतंकी संगठन बताते हुए कहा कि, विश्व के देशों को इस मामले में दखल देना चाहिए| उधर, ईरान-इजरायल तनाव के बीच मध्य पूर्व पर तत्काल परामर्श के लिए जो बाइडन ने डेलावेयर की अपनी साप्ताहिक यात्रा में कटौती की है| व्हाइट हाउस ने ईरान से जप्त किए गए पोत को तुरंत रिहा करने का आह्वान किया है|

अमेरिका ने और सैनिक भेजने की घोषणा की

ईरान की पोत पर कब्जे के बाद अमेरिका ने घोषणा की कि वह अशांत क्षेत्र में और अधिक सैनिक भेज रहा है| ईरान की इजराइल पर हमले की धमकी के बाद अमेरिका ने ऐलान किया था कि वह इजरायल के साथ मजबूती से खड़ा है|

अमेरिका

भारतियों की रिहाई के लिए ईरान के संपर्क में भारत सरकार

विशेष सूत्रों के अनुसार, भारतीय नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं| सरकार ने बताया है कि हम भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए तेहरान और दिल्ली में राजनाइकों के संपर्क में है| अमेरिका ने भी पोत को छोड़ने के लिए कहा है| ओमान की खाड़ी में होर्मुज में ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स द्वारा कब्जाए गए इजराइली मालवाहक पोत एमएससी एरीज पर सवार भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए भारत सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं|

ईरान द्वारा पोत को नियंत्रण में लेने की सूचना के बाद भारत सरकार ने नागरिकों की सुरक्षा के लिए सभी संभव प्रयास शुरू कर दिए हैं| विशेष सूत्रों के अनुसार, सरकार ने कहा, मालवाहक पोत एमएससी एरीज को ईरान द्वारा नियंत्रण में लेने की जानकारी मिली है| हमें पता चला है की पोत पर भारतीय नागरिक मौजूद हैं| हम भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, कल्याण और शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए तेहरान और दिल्ली दोनों जगहों पर राजनिक चैनलों के माध्यम से ईरानी अधिकारियों के संपर्क में है| इस घटना की वीडियो में नजर आ रहा हैं की हेलीकॉप्टर से ईरानी कमांडो पोत पर उतरते हैं और उसे कब्जे में ले लेते हैं|

ईरान के हवाई क्षेत्र से नहीं गुजर रहे हैं भारतीय विमान

ईरान और इजरायल के बीच युद्ध के हालातों को देखते हुए भारतीय विमान ईरान के हवाई क्षेत्र से नहीं गुजर रहे हैं| भारतीय विमान कंपनियों ने इसके लिए वैकल्पिक मार्गों का उपयोग करना शुरू कर दिया है| भारतीय विमान यूरोप और मध्य पूर्व के लिए अपना रास्ता बदल रहे हैं| एयर इंडिया और विस्तारा की ओर से इसकी पुष्टि की गई है| भारत सरकार ने भारतीय नागरिकों से ईरान की यात्रा न करने की अपील की है|

बाइडेन ने कहा कि इजराइल पर हमला न करे ईरान

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इजराइल पर जल्द ईरान का हमला होने की आशंका जताई, साथ ही ईरान को चेतावनी दी है कि वह ऐसा ना करे| उन्होंने साफ किया कि अमेरिका इजरायल की सुरक्षा के लिए संकल्पबद्ध है| हम इजराइल का समर्थन करते हैं| अमेरिका इजरायल की सुरक्षा में सहायता देगा और इरान सफल नहीं हो पाएगा|

अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति का यह स्पष्ट संदेश इजराइल पर हमले को तैयार ईरान के लिए है| इसी बीच अमेरिका ने अपने विमान वाहक युद्धपोत यूएसएस आइजनहावर को लाल सागर के रस्ते इजरायल के लिए रवाना कर दिया है| यह युद्धपोत इसराइल पर ईरान के हमले को रोकने में मदद करेगा| व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि मध्य-पूर्व के देशों में तैनात अमेरिकी सैनिकों की सुरक्षा के लिए भी इंतजाम बढ़ाए जा रहे हैं|

1 अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क स्थित ईरान के दूतावास पर हवाई हमले में सीनियर जनरल समेत ईरानी सेना के 7 सैन्य अधिकारियों के मारे जाने के बाद ईरान ने इजराइल को दंडित करने का ऐलान किया है| इससे यह आशंका पैदा हुई है कि ईरान किसी भी समय इजराइल पर हमला कर सकता है|

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