चचेरे भाई की हत्या की गवाही के बाद फौजी की रहस्यमयी मौत: सहारनपुर में दहशत का माहौल

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चचेरे भाई की हत्या की गवाही के बाद फौजी की रहस्यमयी मौत: सहारनपुर में दहशत का माहौल

चचेरे भाई

10 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक ऐसी घटना ने सबको हिलाकर रख दिया, जिसने न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। एक भारतीय सेना के जवान की लाश मिलने से इलाके में सनसनी फैल गई। यह जवान चार दिन पहले ही जम्मू से छुट्टी लेकर अपने घर आया था।

उसने दो दिन पहले अपने चचेरे भाई की हत्या के मामले में कोर्ट में गवाही दी थी। लेकिन अब उसकी खुद की लाश मिलने से हर कोई सन्न रह गया। जवान के सिर और सीने पर गोली के निशान पाए गए, जिसने इस घटना को और भी रहस्यमयी बना दिया। यह घटना न केवल एक परिवार के लिए त्रासदी बन गई, बल्कि इसने कानून-व्यवस्था और गवाहों की सुरक्षा जैसे गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। आइए, इस घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।

जवान का घर आना और गवाही का फैसला

जवान, जिसका नाम विक्रांत गुर्जर बताया जा रहा है, भारतीय सेना में जम्मू-कश्मीर में तैनात था। चार दिन पहले वह छुट्टी लेकर अपने गांव सहारनपुर आया था। उसका उद्देश्य स्पष्ट था—अपने चचेरे भाई रजत की हत्या के मामले में कोर्ट में गवाही देना। चार साल पहले चचेरे भाई रजत की चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी, और विक्रांत अपने चचेरे भाई रजत की हत्या के मामले का मुख्य गवाह था। 8 अप्रैल 2025 को उसने कोर्ट में अपनी अंतिम गवाही दी।

यह गवाही उस केस के लिए निर्णायक मानी जा रही थी, जिसमें आरोपियों पर फैसला सुनाया जाना था। गवाही के बाद विक्रांत अपने चचेरे भाई परिवार के साथ समय बिता रहा था। परिवार में एक तेरहवीं का कार्यक्रम भी था, जिसमें शामिल होने के लिए वह घर आया था। लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह उसकी जिंदगी का आखिरी पड़ाव होगा।

चचेरे भाई

रहस्यमयी हत्या और लाश का मिलना

10 अप्रैल की सुबह, सहारनपुर के रामपुर मनिहारन थाना क्षेत्र में विक्रांत का शव गांव के बाहर एक खेत में पड़ा मिला। उसके सिर और सीने पर गोली के निशान थे, जो साफ तौर पर हत्या की ओर इशारा कर रहे थे। जानकारी के मुताबिक, विक्रांत बुधवार रात को खाना खाने के बाद टहलने के लिए घर से निकला था। जब वह देर तक वापस नहीं लौटा, तो परिजनों ने उससे संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उसका फोन बंद था। सुबह ग्रामीणों ने उसका शव देखा और परिजनों को सूचना दी। यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई, और पूरे गांव में दहशत का माहौल बन गया।

परिजनों के अनुसार, विक्रांत का शव घर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर मिला। उसके शरीर पर गोली के दो घाव थे—एक सिर में और दूसरा सीने में। यह एक सुनियोजित हत्या का संकेत दे रहा था। पुलिस ने तुरंत मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लिया और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए—क्या यह हत्या उसकी गवाही से जुड़ी थी? क्या उसे जानबूझकर निशाना बनाया गया? और सबसे बड़ा सवाल, क्या गवाहों की सुरक्षा अब भी एक चुनौती बनी हुई है?

गवाही और हत्या का संभावित संबंध

विक्रांत के चचेरे भाई रजत की हत्या चार साल पहले हुई थी। चचेरे भाई के मामले में विक्रांत मुख्य गवाह था। परिजनों का कहना है कि गवाही से पहले उसे धमकियां मिल रही थीं। कोर्ट में गवाही देने के लिए आरोपियों की ओर से उस पर दबाव बनाया जा रहा था कि वह उनके पक्ष में बयान दे। लेकिन विक्रांत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और सच का साथ दिया। 8 अप्रैल को उसकी गवाही के बाद यह केस अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था। ऐसे में यह संदेह स्वाभाविक है कि उसकी हत्या का संबंध उसकी गवाही से हो सकता है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, चचेरे भाई रजत की हत्या में शामिल कुछ लोग गांव के ही थे। गवाही के बाद ये लोग विक्रांत से नाराज हो सकते थे। यह भी संभव है कि उन्होंने बदले की भावना से इस हत्या को अंजाम दिया हो। हालांकि, पुलिस ने अभी तक इस सिद्धांत की पुष्टि नहीं की है। जांच के लिए पुलिस ने कई टीमें बनाई हैं, और संदिग्धों से पूछताछ शुरू कर दी गई है। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर गवाहों की सुरक्षा पर सवाल उठा दिए हैं।

चचेरे भाई

परिवार का सदमा और गांव में तनाव

विक्रांत की मौत की खबर सुनते ही उसके परिवार में कोहराम मच गया। माता-पिता, पत्नी और बच्चे सदमे में हैं। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। एक मां ने अपने बेटे को खोया, जो देश की सेवा कर रहा था, और एक पिता ने अपने उस जवान को खोया, जिस पर उसे गर्व था। परिवार का कहना है कि विक्रांत को उसकी ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने पुलिस से इस मामले की गहन जांच और दोषियों को सजा देने की मांग की है।

गांव में भी तनाव का माहौल है। जिस परिवार पर चचेरे भाई रजत की हत्या का आरोप था, वह घटना के बाद से फरार बताया जा रहा है। ग्रामीणों में आक्रोश है, और पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त फोर्स तैनात की है। यह घटना अब केवल एक हत्या तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह गांव की शांति और सामाजिक ढांचे पर भी असर डाल रही है।

पुलिस की कार्रवाई और जांच

सहारनपुर पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) ने बताया कि घटनास्थल से कुछ साक्ष्य जुटाए गए हैं, और फोरेंसिक टीम को भी बुलाया गया है। प्रारंभिक जांच में यह एक सुनियोजित हत्या प्रतीत हो रही है। पुलिस का कहना है कि चचेरे भाई हत्या के पीछे का मकसद और अपराधियों का पता लगाने के लिए हर पहलू की जांच की जा रही है। परिवार से पूछताछ के साथ-साथ गांव में संदिग्ध लोगों पर नजर रखी जा रही है।

पुलिस ने यह भी आशंका जताई है कि यह हत्या चचेरे भाई रजत के हत्यारों का बदला हो सकती है। लेकिन अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। जांच के दौरान यह भी पता लगाया जा रहा है कि क्या विक्रांत को पहले से धमकियां मिल रही थीं, और अगर हां, तो उसने इसकी शिकायत क्यों नहीं की। पुलिस ने गांव में सीसीटीवी फुटेज की भी जांच शुरू की है, ताकि हत्यारों की पहचान हो सके।

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गवाहों की सुरक्षा पर सवाल

यह घटना एक बार फिर गवाहों की सुरक्षा के मुद्दे को सामने लाती है। भारत में कई ऐसे मामले देखे गए हैं, जहां गवाहों को धमकियां दी गईं या उनकी हत्या कर दी गई। विक्रांत की मौत ने इस सच्चाई को फिर से उजागर किया है कि गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिल पाती। विशेषज्ञों का मानना है कि गवाह संरक्षण कार्यक्रम को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि लोग सच बोलने से न डरें।

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सहारनपुर में विक्रांत की हत्या केवल एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक परिवार की त्रासदी, समाज की असुरक्षा और कानून-व्यवस्था की कमजोरी की कहानी है। चार दिन पहले घर लौटा एक फौजी, जो अपने चचेरे भाई की हत्या का इंसाफ चाहता था, आज खुद उस इंसाफ का शिकार बन गया। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक सच बोलने की कीमत जान से चुकानी पड़ेगी? पुलिस की जांच से उम्मीद है कि हत्यारे जल्द पकड़े जाएंगे, और विक्रांत के परिवार को इंसाफ मिलेगा। लेकिन तब तक, यह सवाल बना रहेगा—क्या सच बोलना इतना महंगा होना चाहिए?

महाराष्ट्र में अन्य दलों से सीट बंटवारे में बड़ी बेचैनी

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महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों का सीट बंटवारा

महाराष्ट्र में 2019 के बाद से सब कुछ बदल गया है| शिवसेना और एनसीपी के 2 समूहों में बांटने के बाद, 2024 के चुनाव में चार स्थानीय दल अपने वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं| लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में लगभग 2 सप्ताह पहले महाराष्ट्र में सियासी हलचल अप्रत्याशित मोड़ों से भरी हुई है|

दोनों पक्षों के गठबंधन सहयोगियों के बीच आंतरिक कलह की भरमार हो गई हैI लेकिन साप्ताहिक में तेजी से या अफवाह फैली कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जनता की नजरों से गायब हो गए हैं| एक क्षेत्रीय समाचार चैनल ने तो यहां तक दावा कर दिया कि भाजपा नेता की साथ विवाद के बाद वह 36 घंटे से अधिक समय तक उपलब्ध नहीं थे |

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महाराष्ट्र सत्तारुढ़ गठबंधन में ही विपक्षी गठबंधन में ही नहीं, विपक्षी गठबंधन में ही नहीं, विपक्षी गठबन्धन में भी तनातनी का दौर चल रहा है| शिवसेना यूबीटी गुट के नेता उद्धव ठाकरे ने अचानक अपने 17 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए, तो कांग्रेस ने कहा कि पार्टी इस घोषणा से स्तब्ध है, किउसे इस बारे में ठीक से सलाह नहीं ली गई थी| अधिकांश पर्यवेक्षकों को महाराष्ट्र की गठबंधन के बीच ऐसी उथल-पुथल उम्मीद नहीं थी, क्योंकि कुछ हफ्ते पहले ही गठबंधन सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे के फार्मूले को बिना किसी विवाद के लगभग अंतिम रूप देने के साथ सब कुछ ठीक लग रहा था पर अब तनाव व्याप्त है|

निःसंदेह महाराष्ट्र की राजनीति में साल 2019 के बाद से सब कुछ बदल गया है और शिवसेना के साथ-साथ शरद पवार की एनसीपी के भी दो समूहों में विभाजित होने के बाद, अब 2024 की चुनावी लड़ाई में चार दल या चार समूह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं| इनके अलावा, राज्य में पिछले दो चुनाओं में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों का भी उदय हुआ है, जो जोश के साथ लड़ रहे हैं| यह चुनावी लड़ाई बहुरंगी बन गई है|

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एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र सरकार में सीट बंटवारे से चिंतित

बेशक महाराष्ट्र, विधानसभा में अधिकतम सीटों के साथ भाजपा राज्य की सबसे बड़ी खिलाड़ी है, कांग्रेस अभी दूसरे स्थान पर पहुंच गई है, क्योंकि शिवसेना और राकापा का दो समूह में बट गई है| उधर प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के उद्धव ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 4 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और निर्दलीय के साथ-साथ असदुद्दीन ओवैसी की एआई एमआईम ने भी अनिश्चिता बढ़ा है|

एकनाथ शिंदे की शिवसेना को लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा के साथ किसी बड़े विवाद की आशंका नहीं थी, क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा के शीर्ष नेता देवेंद्र फडणवीस ने 2 साल पहले महायुति सरकार बनाने के बाद से शिंदे से अच्छे रिश्ते साझा किए हैं| हालांकि, पिछले साल जुलाई में सत्तारुढ़ गठबंधन में अजीत पवार के अचानक प्रवेश में स्थिति को स्थिर कर दिया है| जब से अजीत पवार व उनके विधायकों ने सरकार के फैसलों पर दबदबा बनाना शुरू किया है| तब से एकनाथ शिंदे नाराज नजर आ रहे हैं|

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शिंदे की बड़ी चिंता यह है कि वह उन सभी 13 लोकसभा सदस्यों को कैसे समांयोजित करेंगे, जो उद्धव ठाकरे को छोड़कर उनके साथ आ गए और इसमें भी बड़ी चिंता यह है कि अगर भविष्य में भी यही सिलसिला रहा, तो क्या होगा? उन्हें तो अपने 40 विधायकों में से हर किसी का सम्मान करना है, जो उनके साथ आए हैं| 

 वह बहरहाल, कुछ सीटे  शिंदे और भाजपा में विवाद की वजह बनी रहेगी|  लगभग 1 महीने पहले से अचानक भाजपा ने शिंदे  पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह मुंबई उत्तर पश्चिम में गजानन की कीर्तिकर को मैदान में न उतारे|  शिंदे और कीर्तिकर करीबी हैं, जो शिंदे के लिए मुश्किल खड़ी हो गई|  इसी तरह, पिछले हफ्ते अचानक शिंदे  को यह बताया गया कि उनकी पार्टी में बॉलीवुड अभिनेता गोविंदा को शामिल किया जाना चाहिए | 

अब शिंदे समूह गोविंद को उत्तर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से लड़वा सकता है|  वैसे, मुंबई एकमात्र ऐसी जगह नहीं है जहां एकनाथ शिंदे को बेचैनी का सामना करना पड़ रहा है|  उम्मीदवारों को लेकर भी असहमति अब गंभीर स्तर पर पहुंचने लगी है|  भाजपा की तरफ से शिंदे की शिवसेना के सभी सदस्यों को यह संदेश दिया जा रहा है कि उम्मीदवार के साथ-साथ चुनाव चिन्ह के बारे में भी अंतिम फैसला भाजपा कर रही है| 

    यह स्पष्ट है कि शिंदे के ज्यादातर सांसद और विधायक इस बात से बहुत चिंतित हैं कि भाजपा लोकसभा चुनाव में हर छोटी चीज पर भी हावी होती जा रही है और सूक्ष्म प्रबधन कर रही है, ऐसा विदर्भ क्षेत्र में भी दिखने लगा है|  कुछ अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शिंदे  सार्वजनिक रूप में शांत दिखते हैं पर बहुत बेचैन और परेशान हैं| अब यह देखना बाकी है कि क्या उनकी बेचैनी किसी कार्यवाही में तब्दील होगी या वह भाजपा के साथ गठबंधन में मिलकर काम करते रहेंगे| 

वैसे कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है|  कांग्रेस दक्षिण मध्य मुंबई में अपने उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र की पूर्व मंत्री वर्षा गायकवाड़ और सांगली में विशाल पाटिल के नाम की घोषणा के लिए तैयार थी, जो 2014 में मोदी लहर से पहले कांग्रेस का गढ़ था|  महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने भी उद्धव गुट  द्वारा अचानक दक्षिण मध्य मुंबई से पूर्व राज्यसभा सदस्य अनिल देसाई की उम्मीदवारी और सांगली से पहलवान चंद्रहार पाटिल की उम्मीदवारी की घोषणा पर आश्चर्य व्यक्त किया| 

कथित तौर पर राज्य के शीर्ष नेतृत्व में सांगली व दक्षिण मध्य मुंबई में भी अपनेउम्मीदवार खड़े करने की संभावना के बारे में कांग्रेस आलाकमान  से परामर्श किया|  स्पष्ट है, उद्धव दक्षिण मुंबई, दक्षिण मध्य मुंबई और उत्तर पश्चिम मुंबई से चुनाव लड़कर मुंबई में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, जबकि अन्य दो गठबंधन सहयोगियों, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के लिए केवल तीन सीटे छोड़ रहे हैं|  जाहिर है, उद्धव इस साल के अंत में और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ शहर के नगर निगम चुनाव के लिए पार्टी के हितों को ध्यान में रख लेते हैं| 

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