वक्फ बिल का विरोध: जंतर-मंतर पर ओवैसी और मदनी की हुंकार, ‘मस्जिद-मजार पर खतरा

17 मार्च 2025 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ा प्रदर्शन देखने को मिला, जहां वक्फ संशोधन बिल 2024 के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के नेताओं और संगठनों ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की। इस प्रदर्शन में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी जैसे प्रमुख चेहरे शामिल हुए।
इन नेताओं ने वक्फ बिल को मुस्लिम समुदाय के लिए खतरा बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की। ओवैसी ने इसे “मस्जिद और मजार छीनने” की साजिश करार दिया, वहीं मदनी ने इसे वक्फ बिल संविधान के खिलाफ और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। आइए, इस प्रदर्शन और इन नेताओं के बयानों को विस्तार से समझते हैं।
जंतर-मंतर पर प्रदर्शन: एकजुटता का प्रदर्शन
जंतर-मंतर पर यह प्रदर्शन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य मुस्लिम संगठनों के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। सैकड़ों लोग हाथों में तख्तियां और बैनर लिए हुए नजर आए, जिन पर “वक्फ बिल को खारिज करो” जैसे नारे लिखे थे। प्रदर्शन में शामिल लोगों का कहना था कि यह वक्फ बिल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों, जैसे मस्जिदों, मजारों और कब्रिस्तानों, को खतरे में डाल रहा है। इस मौके पर ओवैसी और मदनी ने अपनी बात रखी, जिसने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया।

ओवैसी का बयान: “मस्जिदें और मजार छीनने की साजिश”
असदुद्दीन ओवैसी ने अपने भाषण में वक्फ बिल को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “इस बिल का मकसद मुसलमानों से उनकी मस्जिदें, मजार और कब्रिस्तान छीनना है। अगर यह बिल पास हो गया, तो कोई भी आकर कह सकता है कि यह मस्जिद नहीं है। फिर कलेक्टर जांच शुरू करेगा, और जांच पूरी होने तक वह संपत्ति हमारी नहीं रहेगी।” ओवैसी ने इसे एक सुनियोजित साजिश करार देते हुए कहा कि सरकार मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर कब्जा करना चाहती है।
उन्होंने गुजरात में हाल ही में एक प्राचीन दरगाह और मस्जिद को ढहाए जाने का उदाहरण देते हुए कहा, “यह बिल पास हुआ तो देश भर में मस्जिदों और दरगाहों पर बुलडोजर चलेंगे। यह सिर्फ संपत्ति का मामला नहीं, बल्कि हमारी पहचान और आस्था पर हमला है।” ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि यह वक्फ बिल संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वे इस बिल के खिलाफ एकजुट रहें और इसे संसद में पास होने से रोकें।
मौलाना महमूद मदनी: “संविधान और एकता पर हमला”
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी इस प्रदर्शन में अपनी बात रखी। उन्होंने वक्फ बिल को “संविधान विरोधी” बताते हुए कहा कि यह वक्फ बिल न केवल मुस्लिम समुदाय, बल्कि देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। मदनी ने कहा, “वक्फ संपत्तियां मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक जरूरतों के लिए हैं। यह बिल इन संपत्तियों को सरकार के हवाले कर देगा, जो हमारे धार्मिक अधिकारों पर सीधा हमला है।”
उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “यह बिल संविधान के मूल ढांचे को नुकसान पहुंचाएगा। अगर सरकार वक्फ संपत्तियों पर कब्जा कर सकती है, तो कल वह मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों पर भी कब्जा कर सकती है। यह सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं, बल्कि हर धर्म के लिए खतरे की घंटी है।” मदनी ने यह भी चेतावनी दी कि अगर यह बिल पास हुआ, तो मुस्लिम समुदाय बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेगा।

वक्फ बिल क्या है और क्यों है विवाद?
वक्फ संशोधन बिल 2024 को केंद्र सरकार ने पिछले साल संसद में पेश किया था। इसके तहत वक्फ बोर्ड के अधिकारों में बदलाव, संपत्तियों के सर्वेक्षण की प्रक्रिया, और गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने जैसे प्रावधान हैं। सरकार का दावा है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी बनाएगा और भ्रष्टाचार को रोकेगा। हालांकि, मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह बिल वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म कर देगा और धार्मिक संपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में लाएगा।
विवाद का एक बड़ा बिंदु यह है कि बिल में जिला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी संपत्ति के वक्फ होने पर फैसला करे। प्रदर्शनकारियों का डर है कि इससे मस्जिदों और मजारों को आसानी से गैर-वक्फ घोषित किया जा सकता है। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को भी धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप माना जा रहा है।
प्रदर्शन में अन्य नेताओं की भूमिका
ओवैसी और मदनी के अलावा, प्रदर्शन में सय्यद अजीज पाशा, मोहम्मद बसीर, और अबू ताहिर जैसे मुस्लिम नेताओं ने भी हिस्सा लिया। इन नेताओं ने भी बिल को खारिज करने की मांग की और इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक षड्यंत्र बताया। AIMPLB ने इस मौके पर एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि वे इस बिल को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे और इसके खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ेंगे।

सरकार का पक्ष और जवाब
सरकार ने अभी तक इस प्रदर्शन पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। हालांकि, पहले यह कहा जा चुका है कि वक्फ बिल का मकसद सुधार करना है, न कि किसी समुदाय को नुकसान पहुंचाना। सरकार का तर्क है कि वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग की शिकायतें लंबे समय से आ रही थीं, और यह बिल उसका समाधान है। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार ने इस बिल को बनाने से पहले मुस्लिम समुदाय से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया।
समाज और संविधान पर प्रभाव
यह प्रदर्शन सिर्फ वक्फ बिल तक सीमित नहीं है; यह देश में धार्मिक स्वतंत्रता और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है। ओवैसी और मदनी ने जो बातें कहीं, वे मुस्लिम समुदाय के डर को दर्शाती हैं कि उनकी धार्मिक पहचान और संपत्तियां खतरे में हैं। अगर यह बिल पास होता है, तो यह न केवल मुस्लिम समुदाय, बल्कि अन्य धार्मिक समुदायों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। संविधान की मूल भावना, जो हर नागरिक को अपने धर्म को मानने और उसका प्रबंधन करने की आजादी देती है, पर भी सवाल उठ सकते हैं।

भविष्य की दिशा
जंतर-मंतर का यह प्रदर्शन वक्फ बिल के खिलाफ चल रही लड़ाई का एक हिस्सा मात्र है। AIMPLB और अन्य संगठनों ने कहा है कि वे संसद में इस बिल का विरोध करेंगे और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। ओवैसी ने भी संकेत दिया कि वह इस मुद्दे को हर मंच पर उठाएंगे। दूसरी ओर, सरकार इस बिल को पास करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह टकराव किस दिशा में जाता है।
जंतर-मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ प्रदर्शन ने एक बार फिर धार्मिक स्वतंत्रता और सरकारी नीतियों के बीच तनाव को उजागर किया है। ओवैसी का “मस्जिद और मजार छीनने” वाला बयान और मदनी का संविधान पर खतरे की चेतावनी इस मुद्दे की गंभीरता को दिखाते हैं। यह सिर्फ एक बिल नहीं, बल्कि एक समुदाय की आस्था, पहचान और अधिकारों की लड़ाई है। आज, 17 मार्च 2025 को, यह प्रदर्शन एक संदेश देता है कि मुस्लिम समुदाय अपनी आवाज को दबने नहीं देगा। क्या सरकार इस विरोध को सुनेगी या अपने फैसले पर अडिग रहेगी? यह सवाल भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि यह मुद्दा अभी खत्म नहीं हुआ है।