...

सीरिया के अल्पसंख्यक संकट में: नरसंहार की खबरें और मदद की गुहार

image 44

सीरिया के अल्पसंख्यक संकट में: नरसंहार की खबरें और मदद की गुहार

सीरिया

सीरिया, एक ऐसा देश जो पिछले डेढ़ दशक से गृहयुद्ध की आग में जल रहा है, आज फिर से सुर्खियों में है। लेकिन इस बार वजह बशर अल-असद की सत्ता का पतन नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों पर मंडरा रहा खतरा है। दिसंबर 2024 में विद्रोही समूह हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में असद शासन के खात्मे के बाद, उम्मीद थी कि शायद सीरिया में शांति की किरण दिखेगी। मगर इसके उलट, अल्पसंख्यक समुदायों – जैसे अलावी, शिया, ईसाई और कुर्द – पर हमले बढ़ गए हैं।

नरसंहार की खबरें सामने आ रही हैं, और इन समुदायों की मदद की गुहार दुनिया के सामने एक अनसुनी चीख बनकर रह गई है। इस ब्लॉग में हम सीरिया के इन अल्पसंख्यकों की स्थिति, उनके खिलाफ हिंसा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी पर बात करेंगे।

असद के बाद का सीरिया: उम्मीद से संकट तक

सीरिया में असद शासन का अंत 8 दिसंबर 2024 को हुआ, जब HTS और तुर्की समर्थित सीरियाई नेशनल आर्मी (SNA) ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया। असद के रूस भागने के बाद, कई लोगों को लगा कि 14 साल की तबाही के बाद शायद अब शांति आएगी। लेकिन नई अंतरिम सरकार, जिसके प्रमुख अहमद अल-शारा (HTS के नेता) को बनाया गया, ने अल्पसंख्यकों के लिए एक नया दुःस्वप्न शुरू कर दिया। सुन्नी बहुल HTS, जिसे पहले अल-कायदा से जोड़ा जाता था, पर आरोप है कि वह अलावी और शिया समुदायों को निशाना बना रही है। ईसाई और कुर्द भी इस हिंसा से अछूते नहीं रहे।

सोशल मीडिया पर हाल की पोस्ट्स और कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, मार्च 2025 की शुरुआत में ही लताकिया और अन्य इलाकों में सैकड़ों अलावी और शिया लोगों की हत्या की खबरें आईं। इन हमलों को सुनियोजित बताया जा रहा है, जहाँ पूरे मोहल्लों को चिह्नित कर आगजनी और गोलीबारी की गई। यह हिंसा न सिर्फ बदले की भावना से प्रेरित लगती है, बल्कि धार्मिक और जातीय असहिष्णुता का भी परिचायक है।

सीरिया

अल्पसंख्यकों का इतिहास और उनकी भूमिका

सीरिया की आबादी में लगभग 50% अरब सुन्नी हैं, लेकिन यहाँ अलावी (15%), कुर्द (10%), ईसाई (10%), और अन्य समुदाय जैसे द्रूज़ और इस्माइली भी हैं। असद परिवार, जो अलावी समुदाय से था, ने अपने शासन में अलावियों को विशेष दर्जा दिया, जिससे सुन्नी बहुसंख्यकों में नाराजगी बढ़ी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी अलावी शासन के समर्थक थे। इसी तरह, ईसाई और कुर्द समुदायों ने भी अपनी पहचान और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष किया।

2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध में इन समुदायों को कई बार निशाना बनाया गया। इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने ईसाइयों और यज़ीदियों पर हमले किए, जबकि कुर्दों ने उत्तरी सीरिया में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़ी। असद शासन ने भी अपने विरोधियों को कुचलने के लिए क्रूरता दिखाई। लेकिन अब, असद के जाने के बाद, HTS जैसे समूह अल्पसंख्यकों को “शासन के सहयोगी” मानकर उन पर हमला कर रहे हैं, भले ही उनकी व्यक्तिगत भूमिका कुछ भी रही हो।

नरसंहार की ताजा खबरें

हाल की रिपोर्ट्स और X पर वायरल पोस्ट्स के अनुसार, लताकिया के शरेफा गाँव में दो भाइयों, माहेर और यासिर बाबौद, को HTS आतंकियों ने मार डाला। इसी तरह, पिछले तीन दिनों में 1000 से ज्यादा ईसाइयों और 5000 से ज्यादा शियाओं के नरसंहार की बात कही जा रही है। ये आँकड़े पुष्ट नहीं हैं, लेकिन ये दर्शाते हैं कि हिंसा का स्तर कितना भयावह हो सकता है। दमिश्क, होम्स और अलेप्पो जैसे शहरों में अल्पसंख्यक मोहल्लों को जलाने और लूटने की खबरें भी सामने आई हैं।

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर यह हिंसा नहीं रुकी, तो सीरिया एक और मानवीय संकट की ओर बढ़ सकता है। पहले से ही 70 लाख लोग देश के अंदर विस्थापित हैं, और 54 लाख से ज्यादा शरणार्थी विदेशों में हैं। नई हिंसा से यह संख्या और बढ़ सकती है।

सीरिया

अल्पसंख्यकों की गुहार

इन हमलों के बीच, अल्पसंख्यक समुदायों की ओर से मदद की पुकार उठ रही है। ईसाई चर्चों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की माँग की है, जबकि अलावी और शिया नेताओं ने कहा है कि उनकी बस्तियाँ सुनियोजित हमलों का शिकार बन रही हैं। कुर्दिश बल, जो उत्तरी सीरिया में सक्रिय हैं, भी तुर्की समर्थित समूहों से लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति कमजोर पड़ती जा रही है।

एक अलावी महिला ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हमारा कसूर सिर्फ इतना है कि हमारा जन्म इस समुदाय में हुआ। हमारे घर जल रहे हैं, हमारे बच्चे मर रहे हैं, और दुनिया चुप है।” यह दर्द सिर्फ एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे सीरिया का है, जहाँ हर समूह ने किसी न किसी रूप में युद्ध की कीमत चुकाई है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की खामोशी

सीरिया के इस नए संकट पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही है। संयुक्त राष्ट्र ने 21 दिसंबर 2016 को स्थापित “इंटरनेशनल, इम्पार्शियल एंड इंडिपेंडेंट मैकेनिज्म” (IIIM) के जरिए युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की थी, लेकिन इसके प्रयास अब तक सीमित हैं। अमेरिका, रूस और तुर्की जैसे देश अपनी रणनीतिक चालों में उलझे हैं, जबकि यूरोपीय देश शरणार्थी संकट से निपटने में व्यस्त हैं। मानवाधिकार संगठन जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने HTS पर नकेल कसने की माँग की है, लेकिन ठोस कार्रवाई का अभाव है।

image 45

क्या है हिंसा का कारण?

यह हिंसा सिर्फ धार्मिक नफरत का नतीजा नहीं है। असद शासन के दौरान अलावियों को मिले विशेषाधिकारों ने सुन्नी समुदाय में गुस्सा भरा था, और अब HTS इसे “बदला” के रूप में देख रहा है। लेकिन यह बदला निर्दोषों पर उतारा जा रहा है। इसके अलावा, क्षेत्रीय शक्तियों जैसे तुर्की और ईरान का प्रभाव भी इस हिंसा को बढ़ावा दे रहा है। तुर्की HTS को समर्थन दे रहा है, जबकि ईरान शिया समूहों की मदद कर रहा है। यह एक जटिल शक्ति संतुलन का खेल है, जिसमें अल्पसंख्यक पिस रहे हैं।

आगे की राह

सीरिया के अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। पहला, HTS और अन्य सशस्त्र समूहों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया जाए ताकि हिंसा रोकी जा सके। दूसरा, मानवीय सहायता को बढ़ाया जाए, खासकर उन इलाकों में जहाँ लोग विस्थापित हो रहे हैं। तीसरा, एक समावेशी सरकार की स्थापना हो, जिसमें सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व मिले।

सीरिया के अल्पसंख्यक आज एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। उनकी चीखें, उनके आँसू, और उनकी गुहार हमें यह याद दिलाते हैं कि युद्ध का असली दर्द इंसानियत पर पड़ता है। यह सिर्फ सीरिया की कहानी नहीं है, बल्कि हमारी साझा जिम्मेदारी की परीक्षा है। क्या हम इन मासूमों को बचाने के लिए एकजुट होंगे, या उनकी पुकार को अनसुना छोड़ देंगे? यह सवाल हम सबके सामने है। आइए, उनकी आवाज बनें, उनके लिए लड़ें, और उन्हें वह सम्मान दें जो हर इंसान का हक है।

नेल्सन मंडेला: विश्वास और लचीलेपन का मार्गदर्शक

image 5

नेल्सन मंडेला

नेल्सन मंडेला, जिन्हें अक्सर मदीबा के नाम से जाना जाता है, जो उनका खोसा वंश का नाम है, एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी विरासत सीमाओं और युगों से ऊपर उठती है। 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका के छोटे से शहर म्वेज़ो में जन्मे मंडेला का जीवन एक यात्रा थी जिसमें अडिग लचीलापन, समानता के प्रति महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता और अपने लोगों की स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता थी।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

नेल्सन मंडेला के शुरुआती वर्षों में उनके पारंपरिक खोसा बचपन और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ उनके पूर्वजों के बहादुर प्रतिरोध की कहानियाँ शामिल थीं। उनके पिता, जो थेम्बू शाही परिवार के एक स्थानीय नेता और सलाहकार थे, ने युवा मंडेला में प्रशासन और समानता के मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने पिता की मृत्यु के बाद, मंडेला को थेम्बू लोगों के नेता, चीफ जोंगिंटाबा दलिंडयेबो के संरक्षण में ले जाया गया, जिन्होंने उन्हें शिक्षा दी और अफ्रीकी नेतृत्व की जटिलताओं से अवगत कराया।

नेल्सन मंडेला की शैक्षणिक यात्रा स्थानीय मिशन स्कूल से शुरू हुई और प्रतिष्ठित कॉलेज ऑफ़ पोस्ट रैबिट में आगे बढ़ी, जो उस समय दक्षिणी अफ़्रीका में अश्वेत लोगों के लिए आयोजित एक पश्चिमी शैली की उच्च शिक्षा थी। यहीं पर मंडेला ने राजनीतिक रूप से सक्रिय होना शुरू किया और कॉलेज की नीतियों के खिलाफ़ छात्र असंतोष में शामिल हुए।

राजनीति में प्रवेश

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मंडेला जोहान्सबर्ग चले गए, जहाँ उन्होंने अपनी कानून की डिग्री पूरी करने के दौरान एक नाइट गार्जियन के रूप में काम किया। इस व्यस्त शहर में, उन्होंने रंगभेद के क्रूर तत्वों का सामना किया, जो दक्षिण अफ़्रीकी सरकार द्वारा समर्थित संस्थागत नस्लीय अलगाव और अलगाव की एक प्रणाली थी। समानता और संतुलन के लिए लड़ने का मंडेला का संकल्प 1944 में अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (ANC) में शामिल होने के बाद और मजबूत हुआ।

यह भी पढ़ें: विश्व समाचार: यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन में 80 देशों ने हिस्सा लिया, इजराइल हर दिन 8 घंटे युद्ध रोकेगा

ANC के एक भाग के रूप में, मंडेला तेजी से पदों पर पहुंचे, ANC युवा संघ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने रंगभेद को समाप्त करने के लिए अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। उन्होंने 1952 के विद्रोह अभियान के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो दमनकारी कानूनों के खिलाफ एक विशाल अहिंसक प्रतिरोध आंदोलन था।

रिवोनिया परीक्षण और कारावास

नेल्सन मंडेला की सक्रियता ने उन्हें रंगभेद प्रशासन का लक्ष्य बना दिया। 1962 में, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हड़तालों को बढ़ावा देने और देश को गलत तरीके से खाली करने के लिए पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई। एक साल बाद, जब वे अभी भी जेल में थे, तो उन पर और अन्य ANC अग्रदूतों पर सरकार को हटाने के लिए हमला करने और योजना बनाने का आरोप लगाया गया, जिसे रिवोनिया परीक्षण के रूप में जाना जाता है।

नेल्सन मंडेला

मुकदमे के दौरान, मंडेला ने कटघरे से एक सक्षम भाषण दिया, जिसमें मोटे तौर पर कहा गया था, “मैंने बहुमत के शासन और स्वतंत्र समाज के आदर्श को संजोया है जिसमें सभी लोग एक साथ सहमति से और अवसरों के साथ रहते हैं। यह एक आदर्श है जिसके लिए मैं तैयार हूं।” 1964 में, उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और केप टाउन के तट पर एक अधिकतम सुरक्षा जेल, रॉबेन द्वीप पर कैद कर दिया गया।

लड़ाई जारी है

नेल्सन मंडेला के जेल में बिताए 27 साल व्यक्तिगत कठिनाई और राजनीतिक अथक परिश्रम दोनों से प्रभावित थे। क्रूर परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने सलाखों के पीछे से ही नेतृत्व करना और जगाना जारी रखा। जेल से लिखे गए उनके पत्रों और रचनाओं ने दक्षिण अफ्रीका और दुनिया भर में रंगभेद विरोधी आंदोलन को गति दी। मंडेला की स्थिति नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ व्यापक लड़ाई का प्रतीक बन गई।

1980 के दशक में, जब रंगभेद के खिलाफ वैश्विक दबाव बढ़ा, तो दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने मंडेला के साथ गुप्त समझौते शुरू किए। इन वार्ताओं ने एक समतापूर्ण समाज की ओर एक शांत कदम की नींव रखी।

रिहाई और राष्ट्रपति पद

11 फरवरी, 1990 को, नेल्सन मंडेला 27 वर्षों के बाद विक्टर वर्स्टर जेल से मुक्त हुए। उनकी रिहाई ने दक्षिण अफ़्रीकी इतिहास में एक अप्रयुक्त समय की शुरुआत को रोक दिया। मंडेला ने तुरंत ANC में अपनी आधिकारिक भूमिका जारी रखी, रंगभेद को खत्म करने और बहुजातीय लोकतंत्र का निर्माण करने के लिए जोरदार तरीके से काम किया।

नेल्सन मंडेला

1993 में, मंडेला और तत्कालीन दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति एफ.डब्ल्यू. डी क्लार्क को रंगभेद को शांतिपूर्वक समाप्त करने के उनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अगले वर्ष, मंडेला को देश के पहले पूर्ण बहुमत वाले चुनाव में दक्षिण अफ़्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।

वसीयत और प्रभाव

नेल्सन मंडेला के प्रशासन (1994-1999) की विशेषता समझौता और राष्ट्र-निर्माण के माध्यम से अत्यधिक विभाजित देश को सुधारने के प्रयासों से थी। उन्होंने सत्य और समझौता आयोग का गठन किया, जिसका उद्देश्य रंगभेद काल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में सच्चाई को उजागर करना और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना था।

अपने प्रशासन से परे, मंडेला शांति, सामाजिक समानता और मानवाधिकारों के लिए एक विश्वव्यापी वकील बने रहे। उन्होंने नेल्सन मंडेला प्रतिष्ठान की स्थापना की, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने में उनके काम को आगे बढ़ाता है।

नेल्सन मंडेला का निधन 5 दिसंबर, 2013 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत कायम है। उन्हें न केवल एक स्वतंत्रता योद्धा और दुर्व्यवहार के खिलाफ प्रतिरोध की छवि के रूप में याद किया जाता है, बल्कि एक ऐसे अग्रणी के रूप में भी याद किया जाता है, जिन्होंने क्षमा और समझौता को अपनाया। मंडेला का जीवन और कार्य स्वतंत्रता के नियंत्रण, समानता के लिए खड़े होने के महत्व और एक व्यक्ति द्वारा दुनिया पर पड़ने वाले दृढ़ प्रभाव की पुष्टि के रूप में कार्य करता है।

नेल्सन मंडेला का जश्न मनाते हुए, हम संचार, स्वतंत्रता और मानवता के मानकों के लिए प्रतिबद्ध एक जीवन का सम्मान करते हैं। उनकी कहानी दुनिया भर में असंख्य व्यक्तियों को एक बेहतर, अधिक निष्पक्ष दुनिया के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है।

क्या अरविंद केजरीवाल जीत पाएंगे यह लड़ाई?

image 53
केजरीवाल

भारत का पडोसी देश चीन है, जिसके महान युद्ध और कला के शिक्षक सुन जू ने ईसा मसीह के जन्म से करीब 550 साल पहले यह कहा था कि, “राजनीती में दिखावा ही सब कुछ है और वंचनायें इस पर खड़ी होती हैं|” लेकिन सुन जू को क्या मालूम था कि लगभग 2500 साल बाद, दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में से एक भारत देश में यह खेल अपने चरम पर होगा| अगर विश्वास ना हो, तो नई दिल्ली की अदालतों और सियासी सर्कस में जारी दांव-पेंच देख लीजिये| प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी अदालत में शराब घोटाले को सही साबित करने का प्रयास कर रहे हैं|

ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह के अलावा कई और लोगों को गिरफ्तार किया है जो आम आदमी पार्टी से नाता रखते हैं|इनमें से राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को मिली जमानत नए राजनीतिक तरंगें पैदा कर गई है| आला अदालत में संजय सिंह के वकील की दलील थी कि मेरे मुवक्किल को बेवजह बंद किया गया है, क्योंकि जांच एजेंसी दो साल से इस मामले में जांच कर रही है और वह अभी तक कोई “मनी-ट्रेल” नहीं ढूंढ पाई है| यही नहीं, जिस गवाह दिनेश अरोड़ा के बयान पर वह गिरफ्तार किए गए थे, उसने अपने शुरुआती 9 बयानों में संजय सिंह का नाम तक नहीं लिया था|

ये भी पढ़ें: कांग्रेस का खत्म होता हुआ अस्तित्व

संजय सिंह का आरोप, केजरीवाल के खिलाफ दिया गया झूठा बयान

संजय सिंह के वकील ने सवाल उठाया कि वह कौन सी वजहें थीं कि उस गवाह ने अपनी 10वीं गवाही में सांसद का नाम लिया? इस दलील का संज्ञान लेते हुए आला अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय के अधिवक्ता से इसका जवाब मांगा| उत्तर देने के बजाय ईडी ने इस बार जमानत याचिका का विरोध न करने का फैसला किया| संजय सिंह अब जेल से बाहर आ चुके हैं और आरोप लगा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के खिलाफ झूठा बयान देने के लिए आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मगुंटा श्रीनिवासुलू रेड्डी पर लगातार दबाव बनाया गया और जब उन्होंने इस बात पर इंकार कर दिया, तो उनके बेटे राघव रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया गया|

केजरीवाल

कई चरणों की पूछताछ के बाद उसने केजरीवाल के बारे में अपना बयान बदला| संजय सिंह आला अदालत के आदेश की बाध्यता के कारण अपने मामले में बोलने से बचते रहे| उन्हें काफी मेहनत से हासिल हुई जमानत की शर्तों में साफ तौर पर दर्ज है कि वह अपने मुकदमे पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे| इसीलिए उन्होंने अपने मुक्यमंत्री केजरीवाल के बहाने से अपनी बात कही| इससे यह भी तय होता है कि आम आदमी पार्टी अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी का चुनावी लाभ उठाना चाहती है| इसी रणनीति के तहत नए पोस्टर जारी किए जा रहे हैं, जिसमें केजरीवाल को सलाखों के पीछे दर्शाया गया है|

कभी दूसरों पर कटाक्ष करते थे केजरीवाल, आज खुद पर नौबत आ गई

भारत की राजनीति में यह कोई नया प्रयोग नहीं है क्योंकि बड़ौदा डायनामाइट मामले में कैद जॉर्ज फर्नांडिस ने भी ऐसे ही चुनाव लड़ा था| भारत की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी भी चुप नहीं बैठी हुई है| उसकी ओर से कहा जा रहा है की जमानत को लेकर इतना खुश होना गलत है, क्योंकि अभी भी जाँच जारी है और पूरा मुकदमा अभी बाकी है| स्पष्ट है, इन मौखिक लड़ाइयों के जरिये राजनेता आम जनता की अदालत से मनचाहा परिणाम हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं| भला रोजमर्रा की जद्दोजहद में फंसा हुआ एक आम मतदाता कैसे इन कठिन मुद्दों पर किसी परिणाम तक पहुंच सकता है?

सियासी सिद्धांतों और वादों की नियत पर इसी मुकाम पर प्रश्नचिन्ह आ जाते हैं| अरविंद केजरीवाल किसी जमाने में स्थापित नेताओं, राजनीतिक दलों, उद्योगपतियों, पत्रकारों, और विचारकों को कड़े शब्दों में खारिज करते हुए आए थे| केजरीवाल वैकल्पिक राजनीति की बात करते थे, लेकिन जब पहली बार बहुमत से सरकार बनाने में सक्षम ना हो पाए तो उन्होंने कांग्रेस का सहारा लिया| यह इस साल के लोकसभा चुनाव में उस कांग्रेस के साथ लड़ रहे हैं जिसके दिमाग पर आज भी गांधीवाद सवार हुआ है और जिसके लिए गांधी परिवार ही सब कुछ है|

क्या केजरीवाल की पत्नी बनेगी मुख्यमंत्री?

कभी केजरीवाल उन्हें सलाखों के पीछे डालने की बात करते थे| इसी तरह, वह और उनके साथ ही लगभग सारे नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग करते थे| आज वह खुद भ्रष्टाचार के आरोप में तिहाड़ जेल में कैद है लेकिन इस्तीफा नहीं देना चाहते, और जेल से ही सरकार चलाना चाहते हैं| इस हफ्ते की शुरुआत में पार्टी के कुल 62 में से 56 विधायक केजरीवाल के आवास पर इकट्ठा हुए और केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से कहा कि आप मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तक हमारी यह मन की भावना पहुंचा दें कि वह इस्तीफा न दें, हम सभी उनके साथ हैं|

केजरीवाल

इसके बाद से सवाल उठने लगे हैं कि अगर अरविंद केजरीवाल लंबे वक्त तक जेल में बंद रहते हैं और उन्हें इस्तीफा या त्यागपत्र देने पर मजबूर होना पड़ता है तो क्या उनकी जगह कमान उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल के हाथों में होगी?इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के टारगेट में पार्टी के तमाम फायर ब्रांड नेता हैं, वह राघव चड्ढा और सौरव भारद्वाज को भी जेल भेज सकते हैं |

और पढ़ें: केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ AAP नेताओं का सामूहिक उपवास

Seraphinite AcceleratorOptimized by Seraphinite Accelerator
Turns on site high speed to be attractive for people and search engines.