18 साल बाद जाल में: हिजबुल का उल्फत, जो मुरादाबाद में रच रहा था तबाही

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18 साल बाद जाल में: हिजबुल का उल्फत, जो मुरादाबाद में रच रहा था तबाही

 उल्फत

8 मार्च 2025 को उत्तर प्रदेश की एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) ने एक ऐसी खबर दी, जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। मुरादाबाद के कटघर इलाके से हिजबुल मुजाहिद्दीन का एक खूंखार आतंकी, उल्फत हुसैन, 18 साल की फरारी के बाद आखिरकार पकड़ा गया। इस आतंकी पर 25,000 रुपये का इनाम था, और यह जम्मू-कश्मीर के पूंछ जिले का निवासी है।

उल्फत ने न सिर्फ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ट्रेनिंग ली थी, बल्कि वह मुरादाबाद में किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की फिराक में था। आखिर कौन है यह उल्फत हुसैन? उसकी कहानी क्या है, और वह इतने सालों तक कैसे छिपता रहा? इस ब्लॉग में हम इस रहस्यमयी आतंकी की जिंदगी के हर पहलू को जानेंगे।

उल्फत हुसैन का परिचय

उल्फत हुसैन, जिसे कई नामों से जाना जाता है – मोहम्मद सैफुल इस्लाम, अफजाल, परवेज, और हुसैन मलिक – जम्मू-कश्मीर के पूंछ जिले के फजलाबाद (सुरनकोट) का मूल निवासी है। उसका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी जिंदगी ने जल्द ही एक खतरनाक मोड़ ले लिया। 1990 के दशक के अंत में, जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था, उल्फत ने हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन की राह पकड़ ली। हिजबुल, जो 1989 में स्थापित हुआ था, कश्मीर को भारत से अलग करने और इस्लामिक शासन स्थापित करने के मकसद से काम करता है। उल्फत इस संगठन का सक्रिय सदस्य बन गया और उसकी जिंदगी का लक्ष्य राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना बन गया।

 उल्फत

PoK में ट्रेनिंग: आतंक की शुरुआत

1999-2000 के बीच उल्फत हुसैन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हिजबुल मुजाहिद्दीन के ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया। यहाँ उसे हथियार चलाने, विस्फोटक बनाने और आतंकी हमलों की योजना तैयार करने की कठिन ट्रेनिंग दी गई। उस दौर में PoK आतंकियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह था, जहाँ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की मदद से कई संगठन भारत के खिलाफ साजिशें रचते थे। उल्फत ने यहाँ न सिर्फ तकनीकी कौशल सीखा, बल्कि आतंक के प्रति अपनी सोच को और मजबूत किया। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वह भारत लौटा, लेकिन उसका मकसद अब आम जिंदगी जीना नहीं, बल्कि तबाही मचाना था।

मुरादाबाद में पहली गिरफ्तारी: 2001 का खुलासा

उल्फत हुसैन 2001 में मुरादाबाद पहुँचा। यहाँ वह असालतपुरा की एक मस्जिद में छिपकर रहने लगा और आतंकी नेटवर्क को मजबूत करने की कोशिश में जुट गया। लेकिन उसकी योजना ज्यादा दिन तक छिपी न रह सकी। 9 जुलाई 2001 को मुरादाबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसके पास से जो बरामद हुआ, उसने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया। एक AK-47, एक AK-56, दो 30 बोर पिस्टल, 12 हैंड ग्रेनेड, 39 टाइमर, 50 डेटोनेटर, 37 बैटरियाँ, 29 किलो विस्फोटक, 560 जिंदा कारतूस और 8 मैगजीन – यह हथियारों का जखीरा किसी बड़ी आतंकी वारदात की तैयारी का सबूत था।

पुलिस की पूछताछ में पता चला कि उल्फत धार्मिक स्थलों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में हमले की साजिश रच रहा था। उसके खिलाफ आर्म्स एक्ट, विस्फोटक अधिनियम, और आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के तहत केस दर्ज किया गया। उसे जेल भेज दिया गया, लेकिन उसकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

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जमानत और फरारी: 18 साल का खेल

2001 में गिरफ्तारी के बाद उल्फत हुसैन कुछ साल जेल में रहा। 2008 में उसे जमानत मिली, लेकिन उसने कानून का फायदा उठाकर फरार होने का रास्ता चुना। जमानत पर बाहर आने के बाद वह कोर्ट में कभी पेश नहीं हुआ। मुरादाबाद की अदालत ने 7 जनवरी 2015 को उसके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया और उसे फरार घोषित कर दिया। इसके बाद मुरादाबाद पुलिस ने उस पर 25,000 रुपये का इनाम घोषित किया। लेकिन उल्फत इतना चालाक था कि वह 18 साल तक पुलिस की नजरों से बचता रहा।

इस दौरान वह अलग-अलग नामों से अपनी पहचान छिपाता रहा। कभी वह मौलवी बनकर मस्जिदों में छिपा, तो कभी आम नागरिक की तरह भीड़ में घुलमिल गया। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह रामपुर और बरेली के मदरसों में भी पढ़ाई के बहाने रहा और वहाँ से युवाओं को आतंकी संगठन में भर्ती करने की कोशिश करता रहा। उसका नेटवर्क धीरे-धीरे फैल रहा था, और वह फिर से किसी बड़ी साजिश की तैयारी में था।

मुरादाबाद में दोबारा पकड़ा जाना: ATS की बड़ी कामयाबी

18 साल की लंबी फरारी के बाद, मार्च 2025 में यूपी ATS और मुरादाबाद पुलिस की संयुक्त टीम ने उल्फत हुसैन को फिर से मुरादाबाद के कटघर इलाके से धर दबोचा। यह गिरफ्तारी तकनीकी निगरानी और खुफिया जानकारी के आधार पर हुई। ATS के मुताबिक, उल्फत एक बार फिर मुरादाबाद में आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। उसकी गिरफ्तारी से एक बड़ी तबाही टल गई। उसे कोर्ट में पेश किया गया और मेडिकल जाँच के बाद मुरादाबाद जेल भेज दिया गया।

ATS अब उसके नेटवर्क को खंगाल रही है। सूत्रों के मुताबिक, उल्फत की तीन शादियाँ हुई थीं और उसके पाँच बच्चे हैं। उसकी पत्नियाँ और बच्चे भी जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। यह भी संदेह है कि वह ISI के संपर्क में था और उत्तर प्रदेश में युवाओं को भर्ती करने की योजना बना रहा था।

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उल्फत की कहानी से सबक

उल्फत हुसैन की जिंदगी एक ऐसी किताब है, जो हमें आतंक के अंधेरे रास्ते की सच्चाई दिखाती है। एक साधारण युवक से खूंखार आतंकी बनने तक का उसका सफर यह बताता है कि गलत रास्ता कितना खतरनाक हो सकता है। उसकी 18 साल की फरारी और फिर गिरफ्तारी यह भी साबित करती है कि कानून के हाथ भले ही देर से पहुँचें, लेकिन वह हर अपराधी को सजा देने में सक्षम हैं।

पश्चिमी यूपी में आतंक की पनाहगाह?

उल्फत की गिरफ्तारी ने एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चर्चा में ला दिया। पिछले 20 सालों में यहाँ 30 से ज्यादा आतंकी और कई पाकिस्तानी जासूस पकड़े जा चुके हैं। मुरादाबाद, सहारनपुर, रामपुर जैसे इलाके आतंकियों के लिए “सुरक्षित पनाहगाह” बनते जा रहे हैं। इसका कारण यहाँ की घनी आबादी, जटिल सामाजिक संरचना और सीमा से निकटता हो सकती है। यह एक चिंता का विषय है, जिस पर सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को गंभीरता से काम करना होगा।

उल्फत हुसैन की कहानी सिर्फ एक आतंकी की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। यह हमें आतंकवाद के खिलाफ जंग की जटिलता, सुरक्षा बलों की मेहनत और समाज की जिम्मेदारी को समझाती है। 18 साल तक फरार रहने वाला यह आतंकी आखिरकार सलाखों के पीछे है, लेकिन सवाल यह है कि क्या उसका नेटवर्क पूरी तरह खत्म हो पाएगा? क्या हम अपने युवाओं को ऐसी राह पर जाने से रोक पाएँगे? यह वक्त सोचने और कदम उठाने का है। उल्फत की गिरफ्तारी एक जीत है, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई। आइए, हम सब मिलकर एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण समाज बनाने की कोशिश करें।

1984 सिख दंगे: सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सज़ा – एक लंबी न्यायिक लड़ाई का परिणाम

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1984 सिख दंगे: सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सज़ा – एक लंबी न्यायिक लड़ाई का परिणाम

सज्जन कुमार

31 अक्टूबर 1984 को भारत ने एक ऐसी घटना देखी जिसने इसके सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों – बेअंत सिंह और सतवंत सिंह – द्वारा हत्या कर दी गई। यह हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार का प्रत्यक्ष परिणाम थी, जिसे सिख समुदाय ने अपने पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हमले के रूप में देखा। लेकिन इस हत्या के बाद जो हुआ, वह एक अनियंत्रित हिंसा का तांडव था, जिसे इतिहास “1984 सिख दंगे” के नाम से जानता है।

इस हिंसा में हजारों सिख मारे गए, उनके घर और व्यवसाय नष्ट हो गए, और एक पूरा समुदाय दहशत में डूब गया। इस त्रासदी में सज्जन कुमार जैसे राजनीतिक नेताओं की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे। दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद, दिसंबर 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह लेख उस घटना की पृष्ठभूमि, सज्जन कुमार के मामले और इसके व्यापक प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डालता है।

दंगों की पृष्ठभूमि और शुरुआत

1984 के सिख दंगों को समझने के लिए हमें ऑपरेशन ब्लू स्टार के संदर्भ में जाना होगा। जून 1984 में, इंदिरा गांधी की सरकार ने पंजाब में बढ़ते सिख उग्रवाद को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई का आदेश दिया। इस ऑपरेशन में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों को मार गिराया गया, लेकिन इसने सिख समुदाय के बीच गहरा आक्रोश पैदा किया। मंदिर को नुकसान और सैकड़ों नागरिकों की मौत ने सिखों में यह भावना जगा दी कि उनकी धार्मिक पहचान पर हमला हुआ है। इंदिरा गांधी की हत्या को इसी संदर्भ में देखा गया – यह एक बदले की कार्रवाई थी।

हालांकि, हत्या के बाद जो हिंसा भड़की, वह सहज नहीं थी। 1 नवंबर 1984 से शुरू हुए दंगों में दिल्ली के त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी और पालम जैसे इलाकों में सिखों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया। भीड़ ने सिख पुरुषों को उनके घरों से खींचकर जिंदा जलाया, बच्चों और महिलाओं पर हमले किए, और उनकी संपत्तियों को लूटकर आग के हवाले कर दिया।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में 2,733 सिख मारे गए, लेकिन स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार यह संख्या 3,000 से 8,000 तक हो सकती है। देश के अन्य हिस्सों जैसे कानपुर, बोकारो और चास में भी सैकड़ों लोग मारे गए। कई पीड़ितों और मानवाधिकार संगठनों ने दावा किया कि यह हिंसा सुनियोजित थी, जिसमें स्थानीय नेताओं और पुलिस की मिलीभगत थी। मतदाता सूचियों का उपयोग करके सिख घरों की पहचान की गई, और हमलावरों को हथियार, पेट्रोल और केरोसिन जैसी सामग्रियां उपलब्ध कराई गईं।

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सज्जन कुमार का उदय और विवाद

सज्जन कुमार उस समय कांग्रेस पार्टी के एक उभरते हुए नेता थे। दिल्ली के बाहरी इलाकों में उनकी मजबूत पकड़ थी, और वे 1980 में मंगोलपुरी से लोकसभा सांसद चुने गए थे। उनकी छवि एक प्रभावशाली और जन-समर्थित नेता की थी, जो अपने क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए जाने जाते थे। लेकिन 1984 के दंगों ने उनकी इस छवि को धूमिल कर दिया।

कई प्रत्यक्षदर्शियों ने आरोप लगाया कि सज्जन कुमार ने हिंसा को संगठित करने में सक्रिय भूमिका निभाई। सुल्तानपुरी में एक गवाह, निर्मल कौर, ने दावा किया कि उन्होंने सज्जन कुमार को भीड़ को संबोधित करते हुए सुना, जिसमें उन्होंने कहा, “एक भी सिख को जिंदा नहीं छोड़ना है।” इसी तरह, पालम के राज नगर इलाके में हुई हत्याओं में उनकी संलिप्तता के सबूत सामने आए।

1 नवंबर 1984 को पालम में पांच सिखों – केवल सिंह, गुरप्रीत सिंह, नरेंद्र पाल सिंह, रघुविंदर सिंह और कुलदीप सिंह – को भीड़ ने घेरकर मार डाला। गवाहों ने बताया कि सज्जन कुमार घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्होंने भीड़ को उकसाया। एक अन्य गवाह, शीला कौर, ने कहा कि सज्जन कुमार ने हमलावरों को यह कहकर प्रोत्साहित किया कि “सिखों ने हमारी मां को मारा है, अब हमें बदला लेना है।” इन आरोपों ने उनके खिलाफ जांच की मांग को तेज कर दिया।

लंबी कानूनी लड़ाई और देरी

1984 के दंगों के बाद सरकार ने कई जांच आयोग गठित किए, जैसे मारीचंद कमेटी (1984), जैन-बनर्जी कमेटी (1987), और नानावटी आयोग (2000)। इनमें से कई ने सज्जन कुमार और अन्य कांग्रेस नेताओं जैसे एच.के.एल. भगत और जगदीश टाइटलर के खिलाफ सबूत पाए। नानावटी आयोग ने 2005 में अपनी रिपोर्ट में सज्जन कुमार की भूमिका पर सवाल उठाए, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनके खिलाफ पहला मामला 1987 में दर्ज हुआ, लेकिन गवाहों के डरने, सबूतों के नष्ट होने और राजनीतिक दबाव के कारण वे बार-बार बचते रहे।

2005 में, जब नानावटी आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश हुई, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पीड़ितों से माफी मांगी और कार्रवाई का वादा किया। इसके बाद CBI को जांच सौंपी गई। 2013 में दिल्ली की एक निचली अदालत ने सज्जन कुमार को पालम हत्याकांड में बरी कर दिया, जिससे पीड़ित परिवारों में निराशा छा गई। लेकिन CBI ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

कई सालों की सुनवाई, गवाहों के बयान और सबूतों की पड़ताल के बाद, 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि गवाहों के बयानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सज्जन कुमार

फैसले का महत्व और टिप्पणियां

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने अपने 207 पेज के फैसले में कहा कि 1984 के दंगे “मानवता के खिलाफ अपराध” थे। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यह हिंसा सुनियोजित थी और इसमें राजनीतिक संरक्षण था। सज्जन कुमार को हत्या, दंगा भड़काने, आगजनी और साजिश रचने का दोषी ठहराया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के अपराधों में देरी से मिला न्याय भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने का संदेश देता है।

फैसले के बाद सज्जन कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। उन्होंने अपनी उम्र (70 से अधिक) और खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया, लेकिन 2019 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला सबूतों पर आधारित है और इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। आज वे तिहाड़ जेल में अपनी सजा काट रहे हैं।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

यह फैसला पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत था। 34 साल बाद मिले इस न्याय ने उनके जख्मों पर मरहम लगाया। कई पीड़ितों, जैसे जगदीश कौर, जिन्होंने अपने पति और बेटे को खोया था, ने इसे “अंधेरे में एक रोशनी” बताया। लेकिन यह भी सच है कि यह केवल एक शुरुआत है। दंगों में शामिल कई अन्य प्रभावशाली लोग अभी भी कानून की पकड़ से बाहर हैं। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पूर्ण न्याय तभी मिलेगा जब सभी दोषियों को सजा मिलेगी और पीड़ितों को मुआवजा व पुनर्वास मिलेगा।

राजनीतिक रूप से, यह फैसला कांग्रेस के लिए एक झटका था। 1984 के दंगे हमेशा से उनके लिए एक विवादास्पद मुद्दा रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर भाजपा और शिरोमणि अकाली दल, ने इसे कांग्रेस की विफलता के रूप में पेश किया। इसने यह सवाल भी उठाया कि क्या उस समय की सरकार और पुलिस ने जानबूझकर निष्क्रियता दिखाई।

1984 के सिख दंगे भारत के इतिहास में एक दुखद और शर्मनाक घटना हैं। सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा इस दिशा में एक कदम है कि दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाए। लेकिन यह यात्रा अभी अधूरी है। यह घटना हमें सिखाती है कि सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का जवाब सिर्फ न्याय, जवाबदेही और आपसी भाईचारे से दिया जा सकता है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसी त्रासदियों को दोबारा न होने दें।

राजस्थान में पीएम मोदी: कांग्रेस देश की संपत्ति को घुसपैठियों में बांट देगी

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राजस्थान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा और जालौर में चुनावी जनसभाएं की| इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा की कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि यदि उनकी सरकार बनी तो हर एक की संपत्ति का सर्वे किया जाएगा| हमारी माताओं-बहनों के पास सोना कितना है उसकी जांच की जाएगी| वे कहते हैं कि हिसाब लगाने के बाद सारी संपत्ति समान रूप से लोगों में बांट दी जाएगी| ये अर्बन नक्सलियों की सोच, माताओं-बहनों का मंगलसूत्र भी बेचने नहीं देगी|

प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में जानसभा के दौरान कहा कि स्वार्थ और अवसरवादिता में घिरी कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है की पहली बार ऐसा होगा कि कांग्रेस का शाही परिवार कांग्रेस को ही वोट नहीं देगा| दिल्ली में जहाँ उनका शाही परिवार रहता है, वहाँ पार्टी चुनावी ही नहीं लड़ रही है|

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आगे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब भारत 2014 से पहले के हालात नहीं चाहता| आज ऐसी स्थिर और मजबूत सरकार जरूरी है, जो सरहदों की रक्षा कर सके| जालौर में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहले दौर के मतदान में आधे राजस्थान ने कांग्रेस को बराबर सबक सिखाया है|

देश को और राजस्थान को नई बुलंदियों पर पहुंचने का संकल्प

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अभी हमें राजस्थान के विकास को, देश के विकास को नई बुलंदियों तक पहुंचाना है| यह संकल्प लेकर मैं चल पढ़ा हूं| भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनना है| हमें विकसित भारत और विकसित राजस्थान बनाना है| उन्होंने कहा कि वे राजस्थान और भारत के विकास की राह में आने वाली हर अड़चन को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं|

राजस्थान

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि कांग्रेस और नक्सलियों में मिलीभगत

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को छत्तीसगढ़ में तीन लोकसभा सीटों पर प्रचार अभियान की कमान संभाली| उन्होंने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी जमकर तंज कसा| उन्होंने कहा कि बघेल सरकार ने 18 लाख गरीबों के मकान बनने रोक दिए थे जो अब उन्हें बनकर मिलेंगे| कांग्रेस न सुरक्षा दे सकती है और न ही सुशासन| कांग्रेस ने बच्चों के हाथ में तमंचे पकड़ा दिए और उन्हें लड़ने के लिए मजबूर कर दिया|

मुख्यमंत्री योगी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नक्सलवाद से मिलीभगत किसी से छिपी नहीं है| इस दौरान छत्तीसगढ़ की जनता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जोरदार स्वागत किया| ‘बुलडोजर बाबा की जय हो’ और ‘योगी-योगी’ के नारों से छत्तीसगढ़ की रैली गूँज उठी| योगी आदित्यनाथ ने एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ को प्रभु श्री रामचंद्र जी महाराज का ननिहाल बताते हुए उत्तर प्रदेश के साथ आध्यात्मिक संबंधों की चर्चा की तो वहीं कांग्रेस पर भी मुख्यमंत्री योगी ने जमकर हमले बोले|

कांग्रेस ने अपने राज में लव जिहाद की छूट दी थी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजनांदगांव लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार संतोष पांडे, कोरबा में सरोज पांडे और बिलासपुर में पार्टी के उम्मीदवार तोखन साहू के पक्ष में भारी मतदान की अपील की| मुख्यमंत्री योगी के निशाने पर कांग्रेस के घोटाले और नक्सलवाद रहे| योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस घोटाले, आतंकवाद, नक्सलवाद का दूसरा नाम है| जिस आयु में युवाओं के हाथों में पुस्तक, टैबलेट होना चाहिए, दुनिया को आगे बढ़ाने का जज्बा होना चाहिए, कांग्रेस ने उस आयु के बच्चों के हाथों में तमंचे पकड़ा दिए| उन्हें भारत के खिलाफ ही लड़ने के लिए नक्सलवाद, आतंकवाद के नाम पर उकसाया|

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कांग्रेस शासन के समय यहाँ लव जिहाद की घटनाओं को छूट दे दी गई थी| सामान्य नागरिक भुनेश्वर साहू के साथ हुई घटना को अभी तक कोई भूला नहीं है| छत्तीसगढ़ की जनता का अभिवादन करता हूं की उनके पिता ईश्वर साहू को विधायक बनाकर भुवनेश्वर जी की स्मृतियों को जीवंत बनाने का कार्य किया है| भुवनेश्वर जी ने लव जिहाद और कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति का विरोध करते हुए अपना बलिदान दे दिया था| मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ऊपर पहले से ही शराब, कोयला, महादेव ऐप के घोटालों का आरोप है, फिर भी वह व्यक्ति ठसक के साथ चुनाव लड़ने का दुस्साहस कर रहा है|

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