मेरठ हत्याकांड: अरे बाप रे! सांप से पत्नी ने प्रेमी के साथ पति को डसवाया!

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मेरठ हत्याकांड: अरे बाप रे! सांप से पत्नी ने प्रेमी के साथ पति को डसवाया!

सांप

मेरठ, उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर, जो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, आजकल एक अलग ही वजह से सुर्खियों में है। कुछ महीने पहले मेरठ के सौरभ राजपूत हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जब मुस्कान रस्तोगी ने अपने प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ मिलकर अपने पति सौरभ की बेरहमी से हत्या कर दी थी।

लाश को टुकड़ों में काटकर नीले ड्रम में सीमेंट के साथ छिपाने की उनकी कोशिश ने इस मामले को और भी सनसनीखेज बना दिया। लेकिन अब, मेरठ में एक और ऐसी ही खौफनाक घटना सामने आई है, जिसे लोग “मुस्कान पार्ट 2” कह रहे हैं। इस बार कहानी में नीला ड्रम नहीं, बल्कि एक जहरीला सांप है, जो इस हत्याकांड को और भी रहस्यमयी और डरावना बनाता है।

एक नया हत्याकांड, एक नया ट्विस्ट

यह नया मामला मेरठ के बहसूमा थाना क्षेत्र के अकबरपुर सादात गांव का है। यहां रविता नाम की एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की और फिर लाश को जहरीले सांप से डसवाकर इसे एक हादसा दिखाने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल स्थानीय लोगों को स्तब्ध कर दिया, बल्कि पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है। क्या यह महज एक संयोग है कि मेरठ में एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जहां पत्नियां अपने प्रेमियों के साथ मिलकर अपने पतियों की हत्या कर रही हैं? या फिर यह समाज में बदलते रिश्तों और नैतिकता के पतन का संकेत है?

कहानी की शुरुआत: रविता और उसका प्रेमी

रविता की कहानी भी मुस्कान की तरह ही प्रेम, विश्वासघात और अपराध की एक जटिल गुत्थी है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, रविता का अपने पति के साथ रिश्ता लंबे समय से तनावपूर्ण था। इस बीच, उसका एक प्रेमी से अफेयर शुरू हो गया, जो उसका पड़ोसी था। दोनों ने मिलकर पति को रास्ते से हटाने की साजिश रची। लेकिन इस बार हत्या को छिपाने का तरीका कुछ हटकर था। रविता और उसके प्रेमी ने न केवल पति की हत्या की, बल्कि एक जहरीला सांप खरीदकर उससे लाश को डसवाया, ताकि यह एक प्राकृतिक मौत लगे।

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सांप

सांप को केवल 1,000 रुपये में खरीदा गया था, और सांप की मदद से दोनों ने सोचा कि वे पुलिस और समाज की आंखों में धूल झोंक देंगे। लेकिन उनकी यह चाल ज्यादा देर तक कामयाब नहीं रही। पुलिस ने शक के आधार पर जांच शुरू की और जल्द ही इस साजिश का पर्दाफाश हो गया।

मुस्कान और रविता: समानताएं और अंतर

मुस्कान और रविता की कहानियों में कई समानताएं हैं। दोनों ही मामलों में पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर अपने पतियों की हत्या की। दोनों ने ही अपराध को छिपाने के लिए असामान्य और क्रूर तरीके अपनाए। लेकिन जहां मुस्कान ने नीले ड्रम और सीमेंट का सहारा लिया, वहीं रविता ने सांप के जहर को अपना हथियार बनाया। यह ट्विस्ट न केवल इस हत्याकांड को और भी सनसनीखेज बनाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अपराधी कितनी चतुराई से अपने इरादों को अंजाम देने की कोशिश करते हैं।

मुस्कान के मामले में, उसकी शिक्षा और पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर कई सवाल उठे थे। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि मुस्कान ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उसकी अपराध की योजना इतनी सोची-समझी थी कि पुलिस भी हैरान रह गई थी। रविता के मामले में अभी तक उसकी शैक्षिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उसने भी अपनी साजिश को अंजाम देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

समाज पर सवाल: रिश्तों का पतन या परिस्थितियों का खेल?

इन दोनों घटनाओं ने समाज में कई सवाल खड़े किए हैं। क्या यह रिश्तों में विश्वास और नैतिकता के पतन का परिणाम है? या फिर यह परिस्थितियों और संगति का नतीजा है? मुस्कान के मामले में, यह सामने आया था कि वह और साहिल नशे के आदी थे, और हत्या के दिन भी उन्होंने नशा किया था। क्या रविता के मामले में भी कोई ऐसी परिस्थिति थी, जो उसे इस हद तक ले गई? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन यह स्पष्ट है कि दोनों ही मामलों में प्रेम, विश्वासघात और लालच ने अहम भूमिका निभाई।

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मुस्कान और सौरभ की प्रेम कहानी बचपन से शुरू हुई थी। दोनों 11-12 साल की उम्र में मिले थे और 18 साल की उम्र में भागकर शादी कर ली थी। लेकिन समय के साथ उनके रिश्ते में दरार आ गई, और मुस्कान का साहिल के साथ अफेयर शुरू हो गया। रविता की कहानी में भी कुछ ऐसी ही पृष्ठभूमि होने की संभावना है, जहां वैवाहिक जीवन में तनाव और बाहरी रिश्तों ने उसे अपराध की राह पर धकेल दिया।

पुलिस की भूमिका और जांच

मुस्कान के मामले में पुलिस ने ड्रम, चाकू और अन्य सबूतों को बरामद कर लिया था, जिसके आधार पर मुस्कान और साहिल को हिरासत में लिया गया। रविता के मामले में भी पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सांप और अन्य सबूतों के आधार पर दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इन दोनों मामलों में पुलिस की सक्रियता और जांच की पारदर्शिता ने यह सुनिश्चित किया कि अपराधी ज्यादा देर तक कानून से बच न सकें।

लेकिन इन घटनाओं ने पुलिस और समाज के सामने एक नई चुनौती भी पेश की है। अपराध के ये नए-नए तरीके, जैसे सांप का इस्तेमाल, यह दर्शाते हैं कि अपराधी कितनी चालाकी से अपने निशान मिटाने की कोशिश करते हैं। इससे पुलिस को अपनी जांच तकनीकों को और भी मजबूत करने की जरूरत है।

समाज के लिए सबक

मुस्कान और रविता की कहानियां न केवल अपराध की कहानियां हैं, बल्कि यह समाज के लिए एक चेतावनी भी हैं। ये घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि रिश्तों में विश्वास और संवाद की कितनी जरूरत है। अगर सौरभ और मुस्कान, या रविता और उनके पति के बीच समय रहते बातचीत और समझदारी से समस्याओं का हल निकाला गया होता, तो शायद ये हत्याकांड न होते।

सांप

सांप से डसवाने के अलावा, इन घटनाओं ने नशे और अवैध रिश्तों के खतरों को भी उजागर किया है। समाज को नशे की लत और इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। साथ ही, युवाओं को नैतिकता और रिश्तों की अहमियत समझाने के लिए शिक्षा और काउंसलिंग की भी जरूरत है।

निष्कर्ष

मेरठ में हुए ये दो हत्याकांड, जिन्हें लोग “मुस्कान पार्ट 1” और सांप से डसवाने वाले को “मुस्कान पार्ट 2” कह रहे हैं, न केवल अपराध की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ते हैं, बल्कि हमारे समाज की बदलती तस्वीर को भी दर्शाते हैं। नीला ड्रम हो या जहरीला सांप, ये दोनों कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि अपराध का रास्ता कितना भी चालाकी से चुना जाए, सच आखिरकार सामने आ ही जाता है।

हमें यह सोचने की जरूरत है कि आखिर हम अपने रिश्तों, समाज और नैतिकता को बचाने के लिए क्या कर सकते हैं। क्या हम इन घटनाओं से सबक लेंगे, या फिर ये सिर्फ सुर्खियों में कुछ दिन रहकर भुला दी जाएंगी? यह सवाल हर उस इंसान से है, जो एक बेहतर और सुरक्षित समाज का सपना देखता है।

व्यापार युद्ध का नया मोड़: चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 125% तक बढ़ाया

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व्यापार युद्ध का नया मोड़: चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 125% तक बढ़ाया

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वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर दो महाशक्तियों—संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन—के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के नए दौर की गवाह बन रही है। 12 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होने वाली एक महत्वपूर्ण घोषणा में, चीन ने सभी अमेरिकी आयातों पर टैरिफ को 84% से बढ़ाकर 125% करने का फैसला किया है। यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर पहले से लागू 145% टैरिफ के जवाब में देखा जा रहा है। दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण व्यापारिक रिश्तों में यह नवीनतम वृद्धि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, उपभोक्ता कीमतों और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस निर्णय के कारणों, इसके संभावित परिणामों और वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि

चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयातों पर टैरिफ लगाने की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना, बौद्धिक संपदा की चोरी को रोकना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना था। जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ लगाए, जिससे दोनों देशों के बीच टैरिफ की होड़ शुरू हो गई।

2025 तक, यह व्यापार युद्ध और अधिक जटिल हो चुका है। अमेरिका ने हाल ही में चीनी टेक्नोलॉजी, स्टील, और अन्य सामानों पर 145% टैरिफ लागू किए, जिसे चीन ने “अनुचित व्यापार नीति” करार दिया। इसके जवाब में, चीन ने अपनी नवीनतम टैरिफ वृद्धि की घोषणा की, जिसके तहत अमेरिकी कृषि उत्पादों, ऑटोमोबाइल, और तकनीकी उपकरणों सहित सभी आयातों पर 125% टैरिफ लागू होगा। यह कदम दोनों देशों के बीच संबंधों में एक नया तनावपूर्ण अध्याय शुरू करता है।

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चीन के टैरिफ बढ़ाने के कारण

चीन का यह निर्णय कई कारकों का परिणाम है:

  1. जवाबी कार्रवाई: अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाने को चीन ने अपने घरेलू उद्योगों के लिए खतरा माना है। 125% टैरिफ का कदम अमेरिका को यह संदेश देता है कि चीन भी अपने हितों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठा सकता है।
  2. घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: चीन की अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पादन और नवाचार को बढ़ावा देना एक प्रमुख प्राथमिकता रही है। उच्च टैरिफ से अमेरिकी उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे चीनी उपभोक्ता स्थानीय विकल्पों की ओर आकर्षित होंगे।
  3. राजनीतिक संदेश: यह कदम केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। चीन वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है और यह दिखाना चाहता है कि वह अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
  4. आर्थिक दबाव: वैश्विक मंदी और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों के बीच, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए कदम उठा रहा है। टैरिफ से होने वाली आय का उपयोग घरेलू उद्योगों को सब्सिडी देने और बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए किया जा सकता है।

वैश्विक व्यापार पर प्रभाव

चीन के इस फैसले का वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। निम्नलिखित कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहां इसका असर दिख सकता है:

1. आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान

चीन और अमेरिका वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के दो सबसे बड़े केंद्र हैं। उच्च टैरिफ से दोनों देशों के बीच व्यापार कम होगा, जिससे कंपनियों को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करनी पड़ेगी। उदाहरण के लिए, अमेरिकी कंपनियां जो चीनी बाजार पर निर्भर हैं, जैसे कि Apple या Tesla, को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है।

2. उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि

टैरिफ का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। अमेरिकी उत्पादों पर 125% टैरिफ से चीन में इनकी कीमतें बढ़ेंगी, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक खर्च करना पड़ेगा। इसी तरह, अमेरिका में चीनी उत्पादों पर उच्च टैरिफ के कारण वहां भी कीमतें बढ़ेंगी। इससे दोनों देशों में मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा है।

3. अन्य देशों पर प्रभाव

यह व्यापार युद्ध केवल चीन और अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा। अन्य देश जो इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर हैं, जैसे कि भारत, जापान, और यूरोपीय संघ, भी प्रभावित होंगे। उदाहरण के लिए, भारत जैसे देशों को अपने निर्यात को फिर से संरेखित करने और नए व्यापार समझौतों पर विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।

4. वैश्विक आर्थिक मंदी का जोखिम

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पहले ही चेतावनी दी है कि व्यापार युद्ध वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव निवेशकों के विश्वास को कम कर सकता है, जिससे शेयर बाजारों में अस्थिरता और पूंजी प्रवाह में कमी आ सकती है।

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उद्योग-विशिष्ट प्रभाव

1. कृषि

अमेरिकी कृषि उत्पाद, जैसे सोयाबीन, मक्का, और पोर्क, चीन के लिए महत्वपूर्ण निर्यात हैं। 125% टैरिफ से इन उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे चीनी आयातक ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं। इससे अमेरिकी किसानों को भारी नुकसान होगा।

2. प्रौद्योगिकी

प्रौद्योगिकी क्षेत्र भी इस व्यापार युद्ध से अछूता नहीं रहेगा। अमेरिकी चिप निर्माता जैसे NVIDIA और Intel, जो चीनी बाजार पर निर्भर हैं, को अपनी बिक्री में कमी का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर, चीन अपनी स्वदेशी चिप निर्माण क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है, जो लंबे समय में वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा को बदल सकता है।

3. ऑटोमोबाइल

अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनियां जैसे Ford और General Motors चीन में बड़े पैमाने पर बिक्री करती हैं। उच्च टैरिफ से इन वाहनों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।

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भविष्य की संभावनाएं

चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध का यह नया दौर कई दिशाओं में जा सकता है। कुछ संभावित परिदृश्य निम्नलिखित हैं:

  1. बातचीत और समझौता: दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए व्यापार वार्ताएं फिर से शुरू हो सकती हैं। हालांकि, वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह मुश्किल लगता है।
  2. क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉक का उदय: उच्च टैरिफ से दोनों देश क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर अधिक ध्यान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, चीन RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) के माध्यम से एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर सकता है, जबकि अमेरिका CPTPP (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership) में शामिल होने पर विचार कर सकता है।
  3. आर्थिक अलगाव: सबसे खराब स्थिति में, दोनों देश एक-दूसरे से आर्थिक रूप से अलग हो सकते हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था दो खेमों में बंट सकती है। यह दीर्घकालिक स्थिरता के लिए हानिकारक होगा।

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चीन द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ को 125% तक बढ़ाने का निर्णय वैश्विक व्यापार युद्ध में एक नया और खतरनाक मोड़ है। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, उपभोक्ता कीमतों, और आर्थिक स्थिरता पर भी गहरा असर डालेगा। इस स्थिति में, अन्य देशों को सावधानीपूर्वक अपनी नीतियों को संरेखित करना होगा ताकि वे इस अस्थिरता का सामना कर सकें।

आने वाले महीनों में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या दोनों देश तनाव कम करने के लिए बातचीत की मेज पर लौटते हैं या यह व्यापार युद्ध और गहरा होता है। एक बात निश्चित है—वैश्विक अर्थव्यवस्था इस युद्ध के परिणामों से अछूती नहीं रहेगी। क्या आप इस व्यापार युद्ध के प्रभावों को लेकर चिंतित हैं? अपने विचार कमेंट में साझा करें!

18 साल बाद जाल में: हिजबुल का उल्फत, जो मुरादाबाद में रच रहा था तबाही

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18 साल बाद जाल में: हिजबुल का उल्फत, जो मुरादाबाद में रच रहा था तबाही

 उल्फत

8 मार्च 2025 को उत्तर प्रदेश की एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) ने एक ऐसी खबर दी, जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। मुरादाबाद के कटघर इलाके से हिजबुल मुजाहिद्दीन का एक खूंखार आतंकी, उल्फत हुसैन, 18 साल की फरारी के बाद आखिरकार पकड़ा गया। इस आतंकी पर 25,000 रुपये का इनाम था, और यह जम्मू-कश्मीर के पूंछ जिले का निवासी है।

उल्फत ने न सिर्फ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ट्रेनिंग ली थी, बल्कि वह मुरादाबाद में किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की फिराक में था। आखिर कौन है यह उल्फत हुसैन? उसकी कहानी क्या है, और वह इतने सालों तक कैसे छिपता रहा? इस ब्लॉग में हम इस रहस्यमयी आतंकी की जिंदगी के हर पहलू को जानेंगे।

उल्फत हुसैन का परिचय

उल्फत हुसैन, जिसे कई नामों से जाना जाता है – मोहम्मद सैफुल इस्लाम, अफजाल, परवेज, और हुसैन मलिक – जम्मू-कश्मीर के पूंछ जिले के फजलाबाद (सुरनकोट) का मूल निवासी है। उसका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी जिंदगी ने जल्द ही एक खतरनाक मोड़ ले लिया। 1990 के दशक के अंत में, जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था, उल्फत ने हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन की राह पकड़ ली। हिजबुल, जो 1989 में स्थापित हुआ था, कश्मीर को भारत से अलग करने और इस्लामिक शासन स्थापित करने के मकसद से काम करता है। उल्फत इस संगठन का सक्रिय सदस्य बन गया और उसकी जिंदगी का लक्ष्य राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना बन गया।

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PoK में ट्रेनिंग: आतंक की शुरुआत

1999-2000 के बीच उल्फत हुसैन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हिजबुल मुजाहिद्दीन के ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लिया। यहाँ उसे हथियार चलाने, विस्फोटक बनाने और आतंकी हमलों की योजना तैयार करने की कठिन ट्रेनिंग दी गई। उस दौर में PoK आतंकियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह था, जहाँ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की मदद से कई संगठन भारत के खिलाफ साजिशें रचते थे। उल्फत ने यहाँ न सिर्फ तकनीकी कौशल सीखा, बल्कि आतंक के प्रति अपनी सोच को और मजबूत किया। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वह भारत लौटा, लेकिन उसका मकसद अब आम जिंदगी जीना नहीं, बल्कि तबाही मचाना था।

मुरादाबाद में पहली गिरफ्तारी: 2001 का खुलासा

उल्फत हुसैन 2001 में मुरादाबाद पहुँचा। यहाँ वह असालतपुरा की एक मस्जिद में छिपकर रहने लगा और आतंकी नेटवर्क को मजबूत करने की कोशिश में जुट गया। लेकिन उसकी योजना ज्यादा दिन तक छिपी न रह सकी। 9 जुलाई 2001 को मुरादाबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसके पास से जो बरामद हुआ, उसने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया। एक AK-47, एक AK-56, दो 30 बोर पिस्टल, 12 हैंड ग्रेनेड, 39 टाइमर, 50 डेटोनेटर, 37 बैटरियाँ, 29 किलो विस्फोटक, 560 जिंदा कारतूस और 8 मैगजीन – यह हथियारों का जखीरा किसी बड़ी आतंकी वारदात की तैयारी का सबूत था।

पुलिस की पूछताछ में पता चला कि उल्फत धार्मिक स्थलों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में हमले की साजिश रच रहा था। उसके खिलाफ आर्म्स एक्ट, विस्फोटक अधिनियम, और आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के तहत केस दर्ज किया गया। उसे जेल भेज दिया गया, लेकिन उसकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

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जमानत और फरारी: 18 साल का खेल

2001 में गिरफ्तारी के बाद उल्फत हुसैन कुछ साल जेल में रहा। 2008 में उसे जमानत मिली, लेकिन उसने कानून का फायदा उठाकर फरार होने का रास्ता चुना। जमानत पर बाहर आने के बाद वह कोर्ट में कभी पेश नहीं हुआ। मुरादाबाद की अदालत ने 7 जनवरी 2015 को उसके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया और उसे फरार घोषित कर दिया। इसके बाद मुरादाबाद पुलिस ने उस पर 25,000 रुपये का इनाम घोषित किया। लेकिन उल्फत इतना चालाक था कि वह 18 साल तक पुलिस की नजरों से बचता रहा।

इस दौरान वह अलग-अलग नामों से अपनी पहचान छिपाता रहा। कभी वह मौलवी बनकर मस्जिदों में छिपा, तो कभी आम नागरिक की तरह भीड़ में घुलमिल गया। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह रामपुर और बरेली के मदरसों में भी पढ़ाई के बहाने रहा और वहाँ से युवाओं को आतंकी संगठन में भर्ती करने की कोशिश करता रहा। उसका नेटवर्क धीरे-धीरे फैल रहा था, और वह फिर से किसी बड़ी साजिश की तैयारी में था।

मुरादाबाद में दोबारा पकड़ा जाना: ATS की बड़ी कामयाबी

18 साल की लंबी फरारी के बाद, मार्च 2025 में यूपी ATS और मुरादाबाद पुलिस की संयुक्त टीम ने उल्फत हुसैन को फिर से मुरादाबाद के कटघर इलाके से धर दबोचा। यह गिरफ्तारी तकनीकी निगरानी और खुफिया जानकारी के आधार पर हुई। ATS के मुताबिक, उल्फत एक बार फिर मुरादाबाद में आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। उसकी गिरफ्तारी से एक बड़ी तबाही टल गई। उसे कोर्ट में पेश किया गया और मेडिकल जाँच के बाद मुरादाबाद जेल भेज दिया गया।

ATS अब उसके नेटवर्क को खंगाल रही है। सूत्रों के मुताबिक, उल्फत की तीन शादियाँ हुई थीं और उसके पाँच बच्चे हैं। उसकी पत्नियाँ और बच्चे भी जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। यह भी संदेह है कि वह ISI के संपर्क में था और उत्तर प्रदेश में युवाओं को भर्ती करने की योजना बना रहा था।

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उल्फत की कहानी से सबक

उल्फत हुसैन की जिंदगी एक ऐसी किताब है, जो हमें आतंक के अंधेरे रास्ते की सच्चाई दिखाती है। एक साधारण युवक से खूंखार आतंकी बनने तक का उसका सफर यह बताता है कि गलत रास्ता कितना खतरनाक हो सकता है। उसकी 18 साल की फरारी और फिर गिरफ्तारी यह भी साबित करती है कि कानून के हाथ भले ही देर से पहुँचें, लेकिन वह हर अपराधी को सजा देने में सक्षम हैं।

पश्चिमी यूपी में आतंक की पनाहगाह?

उल्फत की गिरफ्तारी ने एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को चर्चा में ला दिया। पिछले 20 सालों में यहाँ 30 से ज्यादा आतंकी और कई पाकिस्तानी जासूस पकड़े जा चुके हैं। मुरादाबाद, सहारनपुर, रामपुर जैसे इलाके आतंकियों के लिए “सुरक्षित पनाहगाह” बनते जा रहे हैं। इसका कारण यहाँ की घनी आबादी, जटिल सामाजिक संरचना और सीमा से निकटता हो सकती है। यह एक चिंता का विषय है, जिस पर सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को गंभीरता से काम करना होगा।

उल्फत हुसैन की कहानी सिर्फ एक आतंकी की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। यह हमें आतंकवाद के खिलाफ जंग की जटिलता, सुरक्षा बलों की मेहनत और समाज की जिम्मेदारी को समझाती है। 18 साल तक फरार रहने वाला यह आतंकी आखिरकार सलाखों के पीछे है, लेकिन सवाल यह है कि क्या उसका नेटवर्क पूरी तरह खत्म हो पाएगा? क्या हम अपने युवाओं को ऐसी राह पर जाने से रोक पाएँगे? यह वक्त सोचने और कदम उठाने का है। उल्फत की गिरफ्तारी एक जीत है, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई। आइए, हम सब मिलकर एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण समाज बनाने की कोशिश करें।

1984 सिख दंगे: सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सज़ा – एक लंबी न्यायिक लड़ाई का परिणाम

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1984 सिख दंगे: सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सज़ा – एक लंबी न्यायिक लड़ाई का परिणाम

सज्जन कुमार

31 अक्टूबर 1984 को भारत ने एक ऐसी घटना देखी जिसने इसके सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों – बेअंत सिंह और सतवंत सिंह – द्वारा हत्या कर दी गई। यह हत्या ऑपरेशन ब्लू स्टार का प्रत्यक्ष परिणाम थी, जिसे सिख समुदाय ने अपने पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हमले के रूप में देखा। लेकिन इस हत्या के बाद जो हुआ, वह एक अनियंत्रित हिंसा का तांडव था, जिसे इतिहास “1984 सिख दंगे” के नाम से जानता है।

इस हिंसा में हजारों सिख मारे गए, उनके घर और व्यवसाय नष्ट हो गए, और एक पूरा समुदाय दहशत में डूब गया। इस त्रासदी में सज्जन कुमार जैसे राजनीतिक नेताओं की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे। दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद, दिसंबर 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह लेख उस घटना की पृष्ठभूमि, सज्जन कुमार के मामले और इसके व्यापक प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डालता है।

दंगों की पृष्ठभूमि और शुरुआत

1984 के सिख दंगों को समझने के लिए हमें ऑपरेशन ब्लू स्टार के संदर्भ में जाना होगा। जून 1984 में, इंदिरा गांधी की सरकार ने पंजाब में बढ़ते सिख उग्रवाद को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई का आदेश दिया। इस ऑपरेशन में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों को मार गिराया गया, लेकिन इसने सिख समुदाय के बीच गहरा आक्रोश पैदा किया। मंदिर को नुकसान और सैकड़ों नागरिकों की मौत ने सिखों में यह भावना जगा दी कि उनकी धार्मिक पहचान पर हमला हुआ है। इंदिरा गांधी की हत्या को इसी संदर्भ में देखा गया – यह एक बदले की कार्रवाई थी।

हालांकि, हत्या के बाद जो हिंसा भड़की, वह सहज नहीं थी। 1 नवंबर 1984 से शुरू हुए दंगों में दिल्ली के त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी और पालम जैसे इलाकों में सिखों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया। भीड़ ने सिख पुरुषों को उनके घरों से खींचकर जिंदा जलाया, बच्चों और महिलाओं पर हमले किए, और उनकी संपत्तियों को लूटकर आग के हवाले कर दिया।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में 2,733 सिख मारे गए, लेकिन स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार यह संख्या 3,000 से 8,000 तक हो सकती है। देश के अन्य हिस्सों जैसे कानपुर, बोकारो और चास में भी सैकड़ों लोग मारे गए। कई पीड़ितों और मानवाधिकार संगठनों ने दावा किया कि यह हिंसा सुनियोजित थी, जिसमें स्थानीय नेताओं और पुलिस की मिलीभगत थी। मतदाता सूचियों का उपयोग करके सिख घरों की पहचान की गई, और हमलावरों को हथियार, पेट्रोल और केरोसिन जैसी सामग्रियां उपलब्ध कराई गईं।

सज्जन कुमार

सज्जन कुमार का उदय और विवाद

सज्जन कुमार उस समय कांग्रेस पार्टी के एक उभरते हुए नेता थे। दिल्ली के बाहरी इलाकों में उनकी मजबूत पकड़ थी, और वे 1980 में मंगोलपुरी से लोकसभा सांसद चुने गए थे। उनकी छवि एक प्रभावशाली और जन-समर्थित नेता की थी, जो अपने क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए जाने जाते थे। लेकिन 1984 के दंगों ने उनकी इस छवि को धूमिल कर दिया।

कई प्रत्यक्षदर्शियों ने आरोप लगाया कि सज्जन कुमार ने हिंसा को संगठित करने में सक्रिय भूमिका निभाई। सुल्तानपुरी में एक गवाह, निर्मल कौर, ने दावा किया कि उन्होंने सज्जन कुमार को भीड़ को संबोधित करते हुए सुना, जिसमें उन्होंने कहा, “एक भी सिख को जिंदा नहीं छोड़ना है।” इसी तरह, पालम के राज नगर इलाके में हुई हत्याओं में उनकी संलिप्तता के सबूत सामने आए।

1 नवंबर 1984 को पालम में पांच सिखों – केवल सिंह, गुरप्रीत सिंह, नरेंद्र पाल सिंह, रघुविंदर सिंह और कुलदीप सिंह – को भीड़ ने घेरकर मार डाला। गवाहों ने बताया कि सज्जन कुमार घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्होंने भीड़ को उकसाया। एक अन्य गवाह, शीला कौर, ने कहा कि सज्जन कुमार ने हमलावरों को यह कहकर प्रोत्साहित किया कि “सिखों ने हमारी मां को मारा है, अब हमें बदला लेना है।” इन आरोपों ने उनके खिलाफ जांच की मांग को तेज कर दिया।

लंबी कानूनी लड़ाई और देरी

1984 के दंगों के बाद सरकार ने कई जांच आयोग गठित किए, जैसे मारीचंद कमेटी (1984), जैन-बनर्जी कमेटी (1987), और नानावटी आयोग (2000)। इनमें से कई ने सज्जन कुमार और अन्य कांग्रेस नेताओं जैसे एच.के.एल. भगत और जगदीश टाइटलर के खिलाफ सबूत पाए। नानावटी आयोग ने 2005 में अपनी रिपोर्ट में सज्जन कुमार की भूमिका पर सवाल उठाए, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उनके खिलाफ पहला मामला 1987 में दर्ज हुआ, लेकिन गवाहों के डरने, सबूतों के नष्ट होने और राजनीतिक दबाव के कारण वे बार-बार बचते रहे।

2005 में, जब नानावटी आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश हुई, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पीड़ितों से माफी मांगी और कार्रवाई का वादा किया। इसके बाद CBI को जांच सौंपी गई। 2013 में दिल्ली की एक निचली अदालत ने सज्जन कुमार को पालम हत्याकांड में बरी कर दिया, जिससे पीड़ित परिवारों में निराशा छा गई। लेकिन CBI ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

कई सालों की सुनवाई, गवाहों के बयान और सबूतों की पड़ताल के बाद, 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि गवाहों के बयानों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सज्जन कुमार

फैसले का महत्व और टिप्पणियां

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने अपने 207 पेज के फैसले में कहा कि 1984 के दंगे “मानवता के खिलाफ अपराध” थे। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यह हिंसा सुनियोजित थी और इसमें राजनीतिक संरक्षण था। सज्जन कुमार को हत्या, दंगा भड़काने, आगजनी और साजिश रचने का दोषी ठहराया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के अपराधों में देरी से मिला न्याय भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने का संदेश देता है।

फैसले के बाद सज्जन कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। उन्होंने अपनी उम्र (70 से अधिक) और खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया, लेकिन 2019 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला सबूतों पर आधारित है और इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। आज वे तिहाड़ जेल में अपनी सजा काट रहे हैं।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

यह फैसला पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत था। 34 साल बाद मिले इस न्याय ने उनके जख्मों पर मरहम लगाया। कई पीड़ितों, जैसे जगदीश कौर, जिन्होंने अपने पति और बेटे को खोया था, ने इसे “अंधेरे में एक रोशनी” बताया। लेकिन यह भी सच है कि यह केवल एक शुरुआत है। दंगों में शामिल कई अन्य प्रभावशाली लोग अभी भी कानून की पकड़ से बाहर हैं। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पूर्ण न्याय तभी मिलेगा जब सभी दोषियों को सजा मिलेगी और पीड़ितों को मुआवजा व पुनर्वास मिलेगा।

राजनीतिक रूप से, यह फैसला कांग्रेस के लिए एक झटका था। 1984 के दंगे हमेशा से उनके लिए एक विवादास्पद मुद्दा रहे हैं। विपक्षी दलों, खासकर भाजपा और शिरोमणि अकाली दल, ने इसे कांग्रेस की विफलता के रूप में पेश किया। इसने यह सवाल भी उठाया कि क्या उस समय की सरकार और पुलिस ने जानबूझकर निष्क्रियता दिखाई।

1984 के सिख दंगे भारत के इतिहास में एक दुखद और शर्मनाक घटना हैं। सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा इस दिशा में एक कदम है कि दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाए। लेकिन यह यात्रा अभी अधूरी है। यह घटना हमें सिखाती है कि सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का जवाब सिर्फ न्याय, जवाबदेही और आपसी भाईचारे से दिया जा सकता है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसी त्रासदियों को दोबारा न होने दें।

राजस्थान में पीएम मोदी: कांग्रेस देश की संपत्ति को घुसपैठियों में बांट देगी

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राजस्थान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा और जालौर में चुनावी जनसभाएं की| इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा की कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि यदि उनकी सरकार बनी तो हर एक की संपत्ति का सर्वे किया जाएगा| हमारी माताओं-बहनों के पास सोना कितना है उसकी जांच की जाएगी| वे कहते हैं कि हिसाब लगाने के बाद सारी संपत्ति समान रूप से लोगों में बांट दी जाएगी| ये अर्बन नक्सलियों की सोच, माताओं-बहनों का मंगलसूत्र भी बेचने नहीं देगी|

प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में जानसभा के दौरान कहा कि स्वार्थ और अवसरवादिता में घिरी कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है की पहली बार ऐसा होगा कि कांग्रेस का शाही परिवार कांग्रेस को ही वोट नहीं देगा| दिल्ली में जहाँ उनका शाही परिवार रहता है, वहाँ पार्टी चुनावी ही नहीं लड़ रही है|

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आगे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब भारत 2014 से पहले के हालात नहीं चाहता| आज ऐसी स्थिर और मजबूत सरकार जरूरी है, जो सरहदों की रक्षा कर सके| जालौर में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहले दौर के मतदान में आधे राजस्थान ने कांग्रेस को बराबर सबक सिखाया है|

देश को और राजस्थान को नई बुलंदियों पर पहुंचने का संकल्प

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अभी हमें राजस्थान के विकास को, देश के विकास को नई बुलंदियों तक पहुंचाना है| यह संकल्प लेकर मैं चल पढ़ा हूं| भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनना है| हमें विकसित भारत और विकसित राजस्थान बनाना है| उन्होंने कहा कि वे राजस्थान और भारत के विकास की राह में आने वाली हर अड़चन को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं|

राजस्थान

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि कांग्रेस और नक्सलियों में मिलीभगत

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को छत्तीसगढ़ में तीन लोकसभा सीटों पर प्रचार अभियान की कमान संभाली| उन्होंने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी जमकर तंज कसा| उन्होंने कहा कि बघेल सरकार ने 18 लाख गरीबों के मकान बनने रोक दिए थे जो अब उन्हें बनकर मिलेंगे| कांग्रेस न सुरक्षा दे सकती है और न ही सुशासन| कांग्रेस ने बच्चों के हाथ में तमंचे पकड़ा दिए और उन्हें लड़ने के लिए मजबूर कर दिया|

मुख्यमंत्री योगी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नक्सलवाद से मिलीभगत किसी से छिपी नहीं है| इस दौरान छत्तीसगढ़ की जनता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जोरदार स्वागत किया| ‘बुलडोजर बाबा की जय हो’ और ‘योगी-योगी’ के नारों से छत्तीसगढ़ की रैली गूँज उठी| योगी आदित्यनाथ ने एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ को प्रभु श्री रामचंद्र जी महाराज का ननिहाल बताते हुए उत्तर प्रदेश के साथ आध्यात्मिक संबंधों की चर्चा की तो वहीं कांग्रेस पर भी मुख्यमंत्री योगी ने जमकर हमले बोले|

कांग्रेस ने अपने राज में लव जिहाद की छूट दी थी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजनांदगांव लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार संतोष पांडे, कोरबा में सरोज पांडे और बिलासपुर में पार्टी के उम्मीदवार तोखन साहू के पक्ष में भारी मतदान की अपील की| मुख्यमंत्री योगी के निशाने पर कांग्रेस के घोटाले और नक्सलवाद रहे| योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस घोटाले, आतंकवाद, नक्सलवाद का दूसरा नाम है| जिस आयु में युवाओं के हाथों में पुस्तक, टैबलेट होना चाहिए, दुनिया को आगे बढ़ाने का जज्बा होना चाहिए, कांग्रेस ने उस आयु के बच्चों के हाथों में तमंचे पकड़ा दिए| उन्हें भारत के खिलाफ ही लड़ने के लिए नक्सलवाद, आतंकवाद के नाम पर उकसाया|

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कांग्रेस शासन के समय यहाँ लव जिहाद की घटनाओं को छूट दे दी गई थी| सामान्य नागरिक भुनेश्वर साहू के साथ हुई घटना को अभी तक कोई भूला नहीं है| छत्तीसगढ़ की जनता का अभिवादन करता हूं की उनके पिता ईश्वर साहू को विधायक बनाकर भुवनेश्वर जी की स्मृतियों को जीवंत बनाने का कार्य किया है| भुवनेश्वर जी ने लव जिहाद और कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति का विरोध करते हुए अपना बलिदान दे दिया था| मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ऊपर पहले से ही शराब, कोयला, महादेव ऐप के घोटालों का आरोप है, फिर भी वह व्यक्ति ठसक के साथ चुनाव लड़ने का दुस्साहस कर रहा है|

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