कांग्रेस का खत्म होता हुआ अस्तित्व

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कहा जाता है कि डूबते जहाज में कोई सवारी नहीं करना चाहता। यही स्थिति आज भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हो गई है| केवल एक परिवार के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने की परंपरा के कारण देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का लोकतंत्र खत्म हो चुका है, इसी कारण यह अब अपने अस्तित्व के संकट के दौर से गुजर रही है|

आलम यह है कि भारतीय जनता पार्टी जो कि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है उसके विशाल संगठन के विरोध में गठित इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व जिस कांग्रेस को सिरमौर बनाकर करना चाहिए था, आज वह स्वयं दयनीय अवस्था में है और विभिन्न क्षेत्रीय दलों की कृपा पर निर्भर रहने को विवश है| उसके नेतागढ़ एक-एक करके पार्टी छोड़ रहे हैं और भाजपा का दामन थाम रहे हैं| ऐसा लग रहा है कि अपने नेताओं को रोकने का कोई प्रयास तक कांग्रेस पार्टी नहीं कर पा रही है|

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पूरे भारत में सिकुड़ रही है कांग्रेस

पश्चिम बंगाल हो या पंजाब, बिहार हो या महाराष्ट्र, दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश या फिर अन्य कोई राज्य, आज कहीं पर भी कांग्रेस का मोल -भाव की स्थिति में नहीं है| छोटे-छोटे दल उसे आंख दिखाने लगे हैं| जिसे देखो, वहीं इस पार्टी को नसीहत देता नजर आ रहा है| इससे आम लोगों में इस पार्टी की छवि काफी खराब हो चुकी है| स्थिति यह है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही अपना आत्मविश्वास खो चुका है| उसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने देशभर में न्याय यात्राएं निकाली|

लेकिन ऐसा लगता है की उससे भी बात नहीं बनी और वह लोगों का भरोसा तक नहीं जीत सके, तो थक हार कर उन्होंने दक्षिण की अपनी सीट पर ही ध्यान लगना समझा| इन दोनों तो कांग्रेस व राहुल गांधी से ज्यादा खबरें आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं की आती है| इस पार्टी को छोड़ रहे लोगों का यह भी कहना है कि पार्टी नेतृत्व की सनातन धर्म विरोधी व राष्ट्र विरोधी सोच को वे
स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं| पार्टी नेताओं के बढ़बोलेपन से रही-सही कसर भी पूरी हो जाती है| ऐसे में, कोई भी भला कब तक इस पार्टी से जुड़ा रह सकता है?

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पुरानी सोच से नहीं उबर पाई है कांग्रेस

आज जब भारतीय राजनीती की तस्वीर कहीं ज्यादा स्पष्ट है और पार्टियां अपनी विचारधारा खुलकर जनता के सामने रखती हैं, तो हिन्दुओं की अवहेलना करना कांग्रेस को भारी पड़ रहा है| भाजपा को इसी बात का फायदा मिला है और वह आज सत्ता में है| क्योंकि यह पार्टी अभी पुरानी सोच से उभर नहीं पाई है, इसीलिए वह डूबने के कगार पर पहुंच गई है| जिस तरह से उसके कई नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, उससे लगता यही है कि जल्द ही पार्टी का पूरा अस्तित्व खत्म हो जाएगा| बहुत ज्यादा दिनों तक इसे संभालना अब लगभग नामुमकिन जान पड़ता है|

कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र जारी करने के साथ ही अपना आगामी एजेंडा सामने रख दिया है| कांग्रेस के घोषणा पत्र में युवाओं, महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, संविधान, अर्थव्यवस्था, संघवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और पर्यावरण पर ज्यादा देने ध्यान देने की कोशिश हुई है|पिछड़ी जातियों के उत्थान के प्रति कांग्रेस की घोषणाएं विशेष रूप से चर्चा का विषय बन रही हैं लेकिन बात यह है कि क्या यह पार्टी अपने इन सभी वादों को पूरा कर पाएगी? और उससे पहले एक और सवाल यह है कि है कि क्या यह पार्टी सत्ता में आ पाएगी क्योंकि इस पार्टी की जो वर्तमान समय में हालात दिख रही है उससे लगता तो नहीं है कि वह सत्ता में आ पाएगी|

हिंदू धर्म को जातियों में बांटना चाहती है कांग्रेस

क्योंकि कांग्रेस पार्टी में आंतरिक फूट पड़ी हुई है, कई बड़े-छोटे नेता पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं| जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है|बेशक, संविधान लागू होने के कई साल बाद भी जातिगत भेदभाव पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है और इसे खत्म करने के लिए देश की आने वाली सरकारों को सकारात्मक उपायों के साथ काम करना होगा| अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने इस मंशा को जाहिर करने की कोशिश की है|

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विकास की दौड़ में पीछे रह गए लोगों के लिए हर पार्टी को पहल करनी ही चाहिए| कांग्रेस के घोषणा पत्र में यह बताया गया है कि सत्ता में आने के बाद वह पिछड़ी जातियों का भला करेगी, लेकिन पिछले 70 सालों में इस पार्टी ने पिछड़ी जातियों को सिर्फ शेखचिल्ली के सपने ही दिखाएँ हैं| और रही बात जातिगत जनगणना कराने की तो इस सोंच से केवल हिंदू धर्म को बांटने की शाजिस रची जा रही है जो कांग्रेस ने अपने पिछले शाशनकालों में किया|

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Congress’s Existence is Coming to an End

Congress

It is said that no one wants to ride in a sinking ship. This is the situation today for India’s oldest party, Congress. Due to the tradition of revolving around only one family, the democracy of this oldest party in the country has ended, which is why it is now going through a crisis of existence. The situation is that India was formed in opposition to the huge organization of the Bharatiya Janata Party, which is the world’s largest political party.

The Congress, which should have led the block by making it its leader, is today itself in a pitiful state and is forced to depend on the mercy of various regional parties. Its leaders are leaving the party one by one and joining the BJP. It seems that this party is not able to make any effort to stop its leaders.

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Congress is shrinking all over India

Be it West Bengal or Punjab, Bihar or Maharashtra, Delhi or Uttar Pradesh, or any other state, Congress is not in a bargaining position anywhere today. Small groups have started eyeing him. Whoever you look at is seen giving advice to Congress. Due to this, the image of Congress has been greatly tarnished among the common people. The situation is such that the top leadership of this party has lost its confidence. Its former president, Rahul Gandhi, took out Nyaya Yatras across the country.

But it seems that even that did not work, and he could not even win the trust of the people, so after getting tired, he decided to concentrate on his seat in the South. More news comes about the Aam Aadmi Party and its leaders than the Congress and Rahul Gandhi. The people leaving this party also say that they are against the Sanatan Dharma and the anti-national thinking of the party leadership. Unable to accept. Even the remaining shortcomings are fulfilled due to the loudness of the party leaders. In such a situation, how long can anyone remain associated with this party?

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Congress has not been able to recover from its old thinking

Today, when the picture of Indian politics is much more clear and parties openly present their ideology before the public, ignoring Hindus is costing heavily to Congress. The BJP has benefited from this and is in power today. This party has not yet emerged from its old thinking, that is why it has reached the verge of sinking. The way many of its leaders are leaving the party, it seems that soon the entire existence of the party will end. It now seems almost impossible to handle it for very long.

Along with releasing the election manifesto, Congress has put forward its upcoming agenda. In the manifesto of Congress, an attempt has been made to pay more attention to youth, women, farmers, workers, the constitution, the economy, federalism, national security, and the environment. The announcements of Congress towards the upliftment of backward castes are especially becoming a topic of discussion, but the point is whether this party will be able to fulfill all these promises. And before that, another question is whether this party will be able to come to power, because from the present situation of this party, it does not seem that it will be able to come to power.

Congress wants to divide Hinduism into castes

Because there is internal division in the Congress party, many big and small leaders are leaving the party and joining the BJP. From which it becomes clear that this party is not at all prepared for the upcoming Lok Sabha elections. Of course, even after many years of the implementation of the Constitution, caste discrimination has not been completely eliminated, and to eliminate it, the future governments of the country will have to work with positive measures. Congress has tried to express this intention in its manifesto.

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Every party must take initiative for the people left behind in the race for development. It has been said in the manifesto of Congress that after coming to power, it will do good to the backward castes, but in the last 70 years, this party has shown only pipe dreams to the backward castes. And as far as conducting caste censuses is concerned, a conspiracy is being hatched only to divide Hinduism, which this party did during its previous regimes.

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महाराष्ट्र में अन्य दलों से सीट बंटवारे में बड़ी बेचैनी

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महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों का सीट बंटवारा

महाराष्ट्र में 2019 के बाद से सब कुछ बदल गया है| शिवसेना और एनसीपी के 2 समूहों में बांटने के बाद, 2024 के चुनाव में चार स्थानीय दल अपने वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं| लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में लगभग 2 सप्ताह पहले महाराष्ट्र में सियासी हलचल अप्रत्याशित मोड़ों से भरी हुई है|

दोनों पक्षों के गठबंधन सहयोगियों के बीच आंतरिक कलह की भरमार हो गई हैI लेकिन साप्ताहिक में तेजी से या अफवाह फैली कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे जनता की नजरों से गायब हो गए हैं| एक क्षेत्रीय समाचार चैनल ने तो यहां तक दावा कर दिया कि भाजपा नेता की साथ विवाद के बाद वह 36 घंटे से अधिक समय तक उपलब्ध नहीं थे |

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महाराष्ट्र सत्तारुढ़ गठबंधन में ही विपक्षी गठबंधन में ही नहीं, विपक्षी गठबंधन में ही नहीं, विपक्षी गठबन्धन में भी तनातनी का दौर चल रहा है| शिवसेना यूबीटी गुट के नेता उद्धव ठाकरे ने अचानक अपने 17 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए, तो कांग्रेस ने कहा कि पार्टी इस घोषणा से स्तब्ध है, किउसे इस बारे में ठीक से सलाह नहीं ली गई थी| अधिकांश पर्यवेक्षकों को महाराष्ट्र की गठबंधन के बीच ऐसी उथल-पुथल उम्मीद नहीं थी, क्योंकि कुछ हफ्ते पहले ही गठबंधन सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे के फार्मूले को बिना किसी विवाद के लगभग अंतिम रूप देने के साथ सब कुछ ठीक लग रहा था पर अब तनाव व्याप्त है|

निःसंदेह महाराष्ट्र की राजनीति में साल 2019 के बाद से सब कुछ बदल गया है और शिवसेना के साथ-साथ शरद पवार की एनसीपी के भी दो समूहों में विभाजित होने के बाद, अब 2024 की चुनावी लड़ाई में चार दल या चार समूह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं| इनके अलावा, राज्य में पिछले दो चुनाओं में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों का भी उदय हुआ है, जो जोश के साथ लड़ रहे हैं| यह चुनावी लड़ाई बहुरंगी बन गई है|

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एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र सरकार में सीट बंटवारे से चिंतित

बेशक महाराष्ट्र, विधानसभा में अधिकतम सीटों के साथ भाजपा राज्य की सबसे बड़ी खिलाड़ी है, कांग्रेस अभी दूसरे स्थान पर पहुंच गई है, क्योंकि शिवसेना और राकापा का दो समूह में बट गई है| उधर प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के उद्धव ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 4 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और निर्दलीय के साथ-साथ असदुद्दीन ओवैसी की एआई एमआईम ने भी अनिश्चिता बढ़ा है|

एकनाथ शिंदे की शिवसेना को लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा के साथ किसी बड़े विवाद की आशंका नहीं थी, क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा के शीर्ष नेता देवेंद्र फडणवीस ने 2 साल पहले महायुति सरकार बनाने के बाद से शिंदे से अच्छे रिश्ते साझा किए हैं| हालांकि, पिछले साल जुलाई में सत्तारुढ़ गठबंधन में अजीत पवार के अचानक प्रवेश में स्थिति को स्थिर कर दिया है| जब से अजीत पवार व उनके विधायकों ने सरकार के फैसलों पर दबदबा बनाना शुरू किया है| तब से एकनाथ शिंदे नाराज नजर आ रहे हैं|

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शिंदे की बड़ी चिंता यह है कि वह उन सभी 13 लोकसभा सदस्यों को कैसे समांयोजित करेंगे, जो उद्धव ठाकरे को छोड़कर उनके साथ आ गए और इसमें भी बड़ी चिंता यह है कि अगर भविष्य में भी यही सिलसिला रहा, तो क्या होगा? उन्हें तो अपने 40 विधायकों में से हर किसी का सम्मान करना है, जो उनके साथ आए हैं| 

 वह बहरहाल, कुछ सीटे  शिंदे और भाजपा में विवाद की वजह बनी रहेगी|  लगभग 1 महीने पहले से अचानक भाजपा ने शिंदे  पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह मुंबई उत्तर पश्चिम में गजानन की कीर्तिकर को मैदान में न उतारे|  शिंदे और कीर्तिकर करीबी हैं, जो शिंदे के लिए मुश्किल खड़ी हो गई|  इसी तरह, पिछले हफ्ते अचानक शिंदे  को यह बताया गया कि उनकी पार्टी में बॉलीवुड अभिनेता गोविंदा को शामिल किया जाना चाहिए | 

अब शिंदे समूह गोविंद को उत्तर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से लड़वा सकता है|  वैसे, मुंबई एकमात्र ऐसी जगह नहीं है जहां एकनाथ शिंदे को बेचैनी का सामना करना पड़ रहा है|  उम्मीदवारों को लेकर भी असहमति अब गंभीर स्तर पर पहुंचने लगी है|  भाजपा की तरफ से शिंदे की शिवसेना के सभी सदस्यों को यह संदेश दिया जा रहा है कि उम्मीदवार के साथ-साथ चुनाव चिन्ह के बारे में भी अंतिम फैसला भाजपा कर रही है| 

    यह स्पष्ट है कि शिंदे के ज्यादातर सांसद और विधायक इस बात से बहुत चिंतित हैं कि भाजपा लोकसभा चुनाव में हर छोटी चीज पर भी हावी होती जा रही है और सूक्ष्म प्रबधन कर रही है, ऐसा विदर्भ क्षेत्र में भी दिखने लगा है|  कुछ अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शिंदे  सार्वजनिक रूप में शांत दिखते हैं पर बहुत बेचैन और परेशान हैं| अब यह देखना बाकी है कि क्या उनकी बेचैनी किसी कार्यवाही में तब्दील होगी या वह भाजपा के साथ गठबंधन में मिलकर काम करते रहेंगे| 

वैसे कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है|  कांग्रेस दक्षिण मध्य मुंबई में अपने उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र की पूर्व मंत्री वर्षा गायकवाड़ और सांगली में विशाल पाटिल के नाम की घोषणा के लिए तैयार थी, जो 2014 में मोदी लहर से पहले कांग्रेस का गढ़ था|  महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने भी उद्धव गुट  द्वारा अचानक दक्षिण मध्य मुंबई से पूर्व राज्यसभा सदस्य अनिल देसाई की उम्मीदवारी और सांगली से पहलवान चंद्रहार पाटिल की उम्मीदवारी की घोषणा पर आश्चर्य व्यक्त किया| 

कथित तौर पर राज्य के शीर्ष नेतृत्व में सांगली व दक्षिण मध्य मुंबई में भी अपनेउम्मीदवार खड़े करने की संभावना के बारे में कांग्रेस आलाकमान  से परामर्श किया|  स्पष्ट है, उद्धव दक्षिण मुंबई, दक्षिण मध्य मुंबई और उत्तर पश्चिम मुंबई से चुनाव लड़कर मुंबई में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, जबकि अन्य दो गठबंधन सहयोगियों, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के लिए केवल तीन सीटे छोड़ रहे हैं|  जाहिर है, उद्धव इस साल के अंत में और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ शहर के नगर निगम चुनाव के लिए पार्टी के हितों को ध्यान में रख लेते हैं| 

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Maharashtra: There is Great Uneasiness in Seat Sharing Among Other Parties.

Maharashtra

Seat distribution of political parties in Maharashtra

Maharashtra: Everything has changed in Maharashtra since 2019. After Shiv Sena and NCP split into two groups, four local parties are fighting for supremacy in the 2024 elections. Almost two weeks before the first phase of Lok Sabha elections, the political turmoil in Maharashtra is full of unexpected turns. There is a lot of internal discord between the coalition partners of both parties. But the rumor spread rapidly in the weekly that Chief Minister Eknath Shinde has disappeared from the public eye. A regional news channel even claimed that he was unavailable for more than 36 hours after the dispute with the BJP leader.

There is a period of tension going on not only in the ruling alliance but also in the opposition alliance. When Shiv Senna UBT faction leader Uddhav Thackeray suddenly announced the names of its 17 candidates, the Congress said the party was shocked by the announcement, saying it was not properly consulted. Most observers did not expect such turmoil among the Maharashtra alliance, as only a few weeks earlier the coalition partners had Everything seemed to be fine, with the seat-sharing formula among the coalition partners being finalized almost without any controversy. Now there is tension.

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Undoubtedly, everything has changed in Maharashtra politics since 2019, and after Shiv Sena as well as Sharad Pawar’s NCP got divided into two groups, now four parties or four groups are trying to establish their dominance in the 2024 election battle. Fighting for. Apart from these, in the last two elections in the state, small parties and independent candidates have also emerged, who are fighting with enthusiasm.

This election battle has become multi-coloured. Of course, the BJP is the biggest player in the state with the maximum number of seats in the assembly, with the Congress now relegated to the second position as Shiv Sena and the ,NCP split into two groups. On the other hand, Uddhav of Prakash Ambedkar’s Vanchit Bahujan Aghadi had secured about 4 percent of the votes in many constituencies in the 2019 Lok Sabha elections, and along with independents, Asaduddin Owaisi’s AI MIM has also increased the uncertainty.

Eknath Shinde worried about seat sharing in Maharashtra government

Eknath Shinde’s Shiv Sena was not anticipating any major dispute with the BJP over Lok Sabha seat sharing, as top BJP leader in Maharashtra Devendra Fadnavis has shared good relations with Shinde since forming the grand alliance government two years ago. However, Ajit Pawar’s sudden entry into the ruling coalition in July last year has stabilized the situation. Ever since, Ajit Pawar and his MLAs have started dominating the government’s decisions. Since then, Eknath Shinde seems angry.

Eknath Shinde’s Shiv Sena was not anticipating any major dispute with the BJP over Lok Sabha seat sharing, as top BJP leader in Maharashtra Devendra Fadnavis has shared good relations with Shinde since forming the grand alliance government two years ago. However, Ajit Pawar’s sudden entry into the ruling coalition in July last year has stabilized the situation. Ever since, Ajit Pawar and his MLAs have started dominating the government’s decisions. Since then, Eknath Shinde seems angry.

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  Shinde's big concern is that how will he accommodate all the 13 Lok Sabha members who left Uddhav Thackeray and joined him and the bigger concern is that what will happen if the same trend continues in the future? He has to respect each one of his 40 MLAs who have come with him.

  However, some seats will remain a cause of dispute between Shinde and BJP. About a month ago, suddenly BJP started putting pressure on Shinde not to field Kirtikar of Gajanan in Mumbai North West. Shinde and Kirtikar are close, which became difficult for Shinde. 

Similarly, last week Shinde was suddenly told that Bollywood actor Govinda should be included in his party. Now Shinde group can make Govind contest from North West constituency. Well, Mumbai is not the only place where Eknath Shinde is facing restlessness. 

Disagreement regarding the candidates has also started reaching serious levels. On behalf of BJP, this message is being given to all the members of Shinde's Shiv Sena that BJP is taking the final decision regarding the candidate as well as the election symbol.

   It is clear that most of Shinde's MPs and MLAs are very worried that BJP is dominating every small thing in the Lok Sabha elections and is micromanaging, this is visible in Vidarbha region also. Some insiders say that Shinde looks calm in public but is very restless and upset. Now it remains to be seen whether his restlessness will translate into action or whether he will continue to work in alliance with the BJP.

Well, everything is not going well between Congress and Uddhav Thackeray. The Congress was set to announce the names of former Maharashtra minister Varsha Gaikwad as its candidates in South Central Mumbai and Vishal Patil in Sangli, which was a Congress stronghold before the Modi wave in 2014. 


Former Maharashtra Chief Minister Prithviraj Chauhan also expressed surprise at the Uddhav camp's sudden announcement of the candidature of former Rajya Sabha member Anil Desai from South Central Mumbai and wrestler Chandrahar Patil from Sangli.

The top leadership of the state reportedly consulted the Congress high command about the possibility of fielding its candidates in Sangli and South Central Mumbai as well. Obviously, Uddhav wants to retain his hold in Mumbai by contesting elections from South Mumbai, South Central Mumbai and North West Mumbai, while leaving only three seats for the other two alliance partners, Congress and Sharad Pawar's NCP. 

Obviously, Uddhav keeps the party's interests in mind for the city's municipal corporation elections along with the assembly elections later this year and next year.

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2024 में सीखें डिजिटल उत्पाद को संवारने का हुनर

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2024 में सीखें डिजिटल उत्पाद को संवारने का हुनर: लिंकडइन की एक रिपोर्ट के अनुसार यूएक्स या यूआई डिजाइनिंग का स्केल कामकाजी दुनिया की सीड्स पांच सबसे अधिक मांग वाले कौशलों में से एक है इस दौर में बैंकिंग जैसी जटिल आर्थिक गतिविधियों से लेकर आई पोर्टल पर खरीदारी जैसी सामान्य गतिविधियोंतक मोबाइल लैपटॉप या ऐसे ही माध्यमों से हो रही है|

ऐसे में वेबसाइट या अप या ऐसी डिजिटल सेवाओं के उसे पक्ष को जिससे यूजर जुड़ा है बेहतर बनाने के काम का भी बड़ा है इसी यूजर्स इंटरफेस कहते हैंएडोब की एक श्रमिक में शामिल 90 फ़ीसदी विभाग प्रमुखों ने कहा है कि उनकी कंपनी में अक्स या डिजाइंरो की संख्या बढ़ाना एक प्रमुख प्राथमिकता है जबकि 73% अगले 5 वर्षों से अधिक से अधिक यू एक और यूआई डिजाइनर की नियुक नियुक्त करने की योजना बना रहे थेI

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क्या होता है ये स्किल ?

यूआई ओर एक दोनों ही किसी भी डिजिटल उत्पादन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं यूआईडी डिजाइन किसी भी डिजिटल प्रोडक्ट जैसे वेबसाइट या अप के डिजाइन रंग और देखने योग्य विभिन्न तत्वों पर केंद्रित होता है ताकि वह आसान मजेदार वह दिखने में आकर्षक हो जबकि यूएक्स डिजाइन का ध्यान इस उत्पाद का उपयोग करने वालों को आने वाली समस्याओं और उनके समाधान अपनी डिजाइन के माध्यम से पेश करने पर होता है इसके लिए यूजर्स के दिमाग को समझना और उनके अनुसार डिजाइन तैयार करनी होती हैI

वेब डिजाइन से अलग कैसे ?

वेब डिजाइनर जहां वेबसाइट के सौंदर्य बोध उपयोग और खड़े पर ध्यान देते हैं और उसे अलग-अलग डिवाइस के अनुसार बनाते हैं वहीं यूआई और यूएक्स डिजाइनर सिर्फ वेबसाइट ही नहीं अप चैट बॉक्स जैसे एंड डिजिटल उत्पाद या सेवाओं की लिए भी काम करते हैं वह इसके सौंदर्य बोध डिजाइन वह यूजर्स के बेहतर अनुभवों को ध्यान में रखते हैं वह यूजर रिसर्च भी करते हैंI

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व्यावहारिक प्रशिक्षण जरूरी

ब्यूटकैप व स्वतंत्र प्रोजेक्टजरूर करें टेक स्किल की भूत कप उन व्यक्तियों के लिए उपयोगी होते हैं जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपना करियर शुरू करना चाहते हैं या अपने कौशल का विस्तार करना चाहते हैं यूआई और यूएक्स डिजाइनिंग के ऐसे भूत कप 9 से 40 सप्ताह में समाप्त किया जा सकते हैं इसे डिजाइन प्रोटोटाइप आदि में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ एक पेशेवर पोर्टफोलियो बनने में मदद मिल सकती है अगर अन्य तकनीकी स्केल है तो दसवीं के बाद भी ब्यूटकैप किया जा सकता हैI

कहां मिलेगा काम ?

इन दिनों नों कंपनियों को ऐसे लोगों की खूब जरूरत पड़ रही है जो उनकी डिजिटल उत्पाद या सेवाओं को यूजर्स के लिए आसान और उपयोगी बना सके ऐसे मेको का लाभ उठाना है तो यूजर्स इंटरफेस यानी यूआई यूजर एक्सपीरियंस यानी अक्स का स्केल सीखना होगा वैश्विक और फ्रीलांस मेको की इस स्केल को कैसे अपनाया जा सकता है इस आर्टिकल में आपको अच्छी तरह से बताया गया हैI

अपस्किलिंग द्वारा

किसी भी धारा में 12वीं पास करके यूएक्स या यूआई डिजाइनिंग के शॉर्ट टर्म ऑनलाइन या ऑफलाइन कोर्स कर सकते हैं ऐसे में प्रोग्रामिंग लैंग्वेज जैसे एचटीएमएल यह सब आपको सिखानी होगी ग्राफिक डिजाइन की समझ बनाएंI

पारंपरिक डिग्री का विकल्प

2024 में सीखें डिजिटल उत्पाद को संवारने का हुनर: नए सिरे से डिग्री कोर्स करने के लिए यूआई और यूएक्स स्पेशलाइजेशन के साथ डिजाइन में बैचलर्स डिग्री की राह पकड़ सकते हैं कंप्यूटर साइंस ग्राफिक डिजाइन या वेब प्रोग्रामिंग बीटेक ग्रेजुएट इस स्कूल इस स्केल को बहुत सहायता से अपना सकते हैं यूआई या यूएक्स डिजाइन में यूजी और पीजी डिप्लोमा के भी विकल्प हैं देश के कई नामी सरकारी संस्थान यह कोर्स करवाते हैं ज्यादातर में प्रवेश के लिए एंट्रेंस एग्जाम होता है जैसे पर्ल अकैडमी, एमआईटी इंस्टीट्यूट आफ डिज़ाइन, सिम्बायोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन, निफ्ट दिल्ली आदिI

2024 में सीखें डिजिटल उत्पाद को संवारने का हुनर: आईआईटी बॉम्बे से आई यह खबर विचारणीय है की दुनिया में बड़ी नौकरियों का अभाव होने लगा है वैसे तो दिसंबर से मई तक केंपस प्लेसमेंट का दौर चलता है लेकिन अभी तक के आंकड़ों को देखें तो आईआईटी बॉम्बे से इस साल पास हो रहे 36 प्रतिशत छात्रों की नौकरी सुरक्षित नहीं हुई है|

संख्या में अगर बात करें तो करीब 2000 छात्रों ने कैंपस प्लेसमेंट के लिए आवेदन किया था पर उनमें से 712 को अभी तक किसी कंपनी ने नौकरी का प्रस्ताव नहीं दिया है| इस विषय को लेकर कई आलोचकों ने चिंता का इजहार किया है पर पिछले वर्षों से तुलना करें तो स्थिति बहुत चिंताजनक नहीं दिखती है|

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सीखें डिजिटल उत्पाद को संवारने का हुनर

अभी तक नौकरी न पाने वालों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 2.8 प्रतिशत अधिक है| बिजनेस की पहली दलील यही है कि विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है इसीलिए बड़ी नौकरियों के प्रस्ताव सामने नहीं आ रहे हैं. क्या एक आईआईटी से आए इन आंकड़ों को लेकर हमें बहुत चिंतित होना चाहिए?

वास्तव में चिंता उन्हीं लोगों को होगी जो तुलनात्मक अध्ययन नहीं करेंगे। हां, यह सही है कि विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी का दुष्प्रभाव है. विश्व की विकसित अर्थव्यवस्थाएं तनाव से गुजर रही हैं पर इसका अर्थ यह नहीं है कि आईआईटी से निकले इंजीनियरिंग छात्र बेरोजगार रह जाएंगे। इसके लिए सबसे बढ़िया विकल्प है यूआई और यूएस के बारे में जानकारी ली और अच्छे से अच्छी कोर्स करें और जल्द से जल्द अपना व्यवहार शुरू करें या किसी कंपनी में जा करके कम करें

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Learn the Skill of Designing Digital Products in 2024

Skill

According to a report by LinkedIn, the scale of UI design is one of the five most in-demand skills in the working world. In this era, from complex economic activities like banking to simple activities like shopping on a portal, mobile device, laptop, or similar medium.

In such a situation, the work of improving the website or other aspects of the digital services with which the user is connected is also important. This is called the user interface. 90 percent of the department heads, including one of the workers of Adobe, said that in their company, Increasing the number of UI designers is a key priority, while 73% of users were planning to hire one more UI designer over the next 5 years.

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What is this skill?

UI and UX are both important aspects of any digital production. UI design focuses on the design of any digital product, like a website or app, including colors and various elements to make it look easy, fun, and attractive, while UX design focuses on the users of this product having to present the problems they face and their solutions through their design. For this, one has to understand the mind of the users and prepare the design according to them.

How do we differentiate from web design?

While web designers focus on the aesthetics, usability and standing of the website and make it according to different devices, UI and UX designers work not only on the website but also on digital products or services like up chat boxes. Aesthetic Design: He keeps in mind better user experiences He also does user research.

Skill

Practical training is necessary

Must-Do Tech Skills boot camp are useful for individuals who want to start a career in a specific field or want to expand their skills. Such beauty in UI and UX design are completed in 9 to 40 weeks. It can be done it can help in creating a professional portfolio with practical training in design prototyping, etc. If there is another technical scale, then it can be done after 10th as well.

Where will you get work?

This is the scale of global opportunities. You can also do freelance work in healthcare centers, banking industries, educational online courses, social media platforms, e-commerce portals, media, or entertainment. You will find opportunities on government online platforms. Design Assistant, Senior UX Designer, Lead UX Designer, UI and UX Designer Work is available in positions like engineering. Starting salaries in India can range from Rs. 15,000 to Rs. 20,000 per month.

By Upskilling

After passing 12th in any stream, you can do a short-term online or offline course in Ax or UI design. In such a situation, you will have to teach programming languages like HTML and understand graphic design.

Alternative to traditional degree

To pursue a fresh degree course, a Bachelor of Design with UI and UX specialization can pursue a degree in Computer Science, Graphic Design or Web Programming. B.Tech. graduates from this school can pursue this scale with great support. UG in UI or UX Design and There are also options for PG Diploma. Many renowned government institutes of the country offer this course. Most of the institutes have entrance exam for admission, like Pearl Academy, MIT Institute of Design, Symbiosis Institute of Design, NIFT Delhi, etc.

Learn the Skill of Designing Digital Products: This news from IIT Bombay is worth considering that there is a shortage of big jobs in the world. Although the campus placement period runs from December to May, if we look at the figures till now, 36 percent of the students passed out from IIT Bombay this year.

The job is not secure. If we talk in numbers, about 2000 students had applied for campus placement, but 712 of them have not yet been offered a job by any company. Many critics have expressed concern about this topic, but if compared with previous years, the situation does not look very worrying.

Skill

Skill of Designing Digital Products

The number of people who have not yet found a job is 2.8 percent higher than last year. The first argument of the business is that the condition of the world economy is not good, that is why proposals for big jobs are not coming forward. Should we be too worried about these figures coming from an IIT?

Learn the Skill of Designing Digital Products: In fact, only those people will be worried who will not do comparative studies. Yes, it is true that there is a side effect of the recession on the world economy. The developed economies of the world are going through stress but this does not mean that engineering students coming out of IITs will remain unemployed. The best option for this is to get information about UI and US, do the best course, and start your practice as soon as possible, or go to some company and reduce it.

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चुनावी बांड: सियासी चंदे की दुनिया में विवाद और वफादारी

चुनावी बांड: सियासी चंदे की दुनिया में विवाद और वफादारी

चुनावी बांड

चुनावी बांड: दुनिया भर के लगभग सभी लोकतंत्र में राजनीति में पैसे की बढ़ती भूमिका और इससे जुड़ी समस्याएं समाचारों में आती रहती हैंI आजकल भारत में भी चर्चा है इलेक्टोरल बांड को लेकर रोज़ कोई ना कोई खुलासा सामने आ रहा है आंकड़ों का अध्ययन करें तो अभी भी जारी है कि खासकर बड़े कॉर्पोरेट पर नजर है और यह देखा जा रहा है कि कौन किसका वफादार है क्या हम आने वाले समय में चांदी की व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं?

भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि एक से अधिक बार चुनावी बांड खरीदने वाला अधिकांश कंपनियां किसी एक पार्टी के प्रति वफादार नहीं है भारतीय जनता पार्टी के पास 43 वफादार कॉर्पोरेट जान दानदाता है जो दूसरी पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक थे भाजपा के बाद ममता बनर्जी की अखिल भारतीय ट्राईमुर्ग कांग्रेस के पास 16 वरदान देता हैयह विश्लेषण वफादार दानदाताओं को उन कंपनियों के रूप में परिभाषित करता हैI

जिन्होंने एक से अधिक बार दान दिया है और हर बार एक ही पार्टी को दिया है ऐसे दानदाताओं में सबसे अधिक खरीदारी करने वाली कंपनी कोलकाता स्थित रिप्ले और कंपनीऔर हैंडलिंग प्राइवेट लिमिटेड थी जिसके सावधान त्रिमूल का दौरान बनाई गईमूल्य के हिसाब से डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स द्वारा भाजपा को दिए गए पांच दम शीर्ष पर हैं जिन की कीमत 130 करोड रुपए हैI

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चुनावी बांड: एक से अधिक बार चुनावी बाद खरीदने वाली 91 कंपनियों ने एक ही पार्टी को कई बार चुनावी बांड चंदा दिया था चुनाव आयोग की ओर से जारी चुनावी बांध के आंकड़ों का विश्लेषण अभी भी जारी हैगौर करने की बात है कि 263 कंपनियों ने कई बार चुनौती है विश्लेषण के अनुसार 762 कॉर्पोरेट दानदाताओं में से 263 ने निर्धारित समय सीमा के भीतर एक से अधिक बार चुनावी बाद खरीदे हैं मेगा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे अधिक बार बंद खरीदने वाली कंपनियां छत्तीसगढ़ बैंड खरीदे हैं और नौ अलग-अलग पार्टियों को चंदा दिया हैI

भाजपा सबसे बड़ी लाभार्थी (चुनावी बांड)

सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा को 362 अलग-अलग कॉर्पोरेट दानदाताओं ने चंदा दिया था जिसमें से 43 वफादार दानदाता थे इसके बाद कांग्रेस को 177 दानदाताओं ने चंदा दिया पर केवल आठ दानदाताओं ने ही बार-बार चंदा दियाI

बड़ी पार्टी के साथ ही सत्ताधारी पार्टी को भी इलेक्टोरल बांड के मामले में फायदा हुआअपने देश में अभी भाजपा अकेली पार्टी जिसके पास सारे 300 से ज्यादा दानदाता है इसके बाद कांग्रेस बरस तृणमूल का स्थान हैइन प्रमुख चार परियों के पास ही 100 से ज्यादा कॉर्पोरेट दानदाता है कॉर्पोरेट उन पार्टियों को जी देते हैं जो सत्ता में है इन कंपनियों की नीति को सहज ही समझाया जा सकता है I

चुनावी बांड: हालांकि कॉर्पोरेट की ओर से किए जाने वाले दान अक्षर विवाद में भी रहता हैऔर जिन पार्टियों को दान मिलता है वह निशाने पर रहती हैं अपने यहां प्रदर्शित का यह स्टार नहीं है जैसा होना चाहिए हम यह देख पा रहे हैं कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग ने आखिरी जारी करके पारदर्शिता सुनिश्चित करने की कोशिश की है पर राजनीतिक पार्टी ने सुप्रीम से इस दिशा में कुछ भी नहीं दिया है दरअसल अपने देश में कोई भी राजनीतिक पार्टी ऐसी नहीं है जो अपने खजाने में पूरी तरह से सफेद धन होने का दावा कर सके|

चुनावी बांड

क्या सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में राजनीतिक चंदा (चुनावी बांड) पारदर्शी है?

अमेरिका ने अपने अनुभव से सीखा है हालांकि वहां भी चंदा पूरी तरह से पारदर्शी नहीं है वहां यदि आप सीधे किसी उम्मीदवार के अभियान के लिए $50 से अधिक कोई रसीदान करते हैं तो अभियान को डाटा की पहचान और राज के बारे में संघीय चुनाव आयोग को बताना पड़ता है कमी वहां है जहां गैर लाभकारी संगठन दानदाताओं का खुलासा किए बिना पैसे खर्च कर सकते हैं अमेरिका ने साल 2020 के चुनाव में अनुमान लगाया थकीला धन एक अरब डॉलर से अधिक का था

सियासी चंदे (चुनावी बांड) से दुनिया के ज्यादातर लोकतंत्रों पर पड़ा असर

राजनीति के लिए धन की जरूरत है और ज्यादातर देशों में यह चुनावी धन व्यवस्था पर असर डालता है उदाहरण के लिए जापान में भर्ती घोटाला या ब्रिटेन में सनसनी के वेस्ट मिस्टर घोटाला अमेरिका में प्रसिद्ध वॉटर गेट घोटाला ब्राजील में चुनावी भुगतान से संबंधित घोटाले की श्रृंखला हमेशा याद आती है लगभग सभी लोकतंत्र में वित्त की समस्या चिंताजनक है चुनाव आधारित राजनीतिक भ्रष्टाचार ने कई यूरोपीय लोकतंत्र जैसी इटली ग्रीस फ्रांस स्पेन और बेल्जियम को भी प्रभावित किया हैI

कंपनियां भी पसंद के हिसाब (चुनावी बांड) से चुनती है पार्टी

ध्यान देने की बात किया है कि इलेक्टरल बांध के अब तक के आंकड़ों के अनुसार 11 कंपनियों ने पार्टियों बदली है एक बार एक पार्टी को चंदा देने के बाद 11 कंपनियों ने अगली बार दूसरी पार्टी को दान देने का फैसला किया है इनमें से एक कंपनी अरबिंदो फार्मा भी है जिसकी खूब चर्चा हो रही है इन 11 मामलों में पांच मित्र अनमोल कांग्रेस लाभार्थी रही है भाजपा को केवल तीन मामलों में ही लाभ पहुंचा है कोई भी कंपनी किसी भी डाल से संबंध खराब नहीं करना चाहती है इसलिए भीएक अधिक दलों को दान देता हैI

चुनावी बांड

अमेरिका में (चुनावी बांड) क्या होता है?

अमेरिका भले ही दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र हो पर यह दुनिया का सबसे महंगा लोकतंत्र भी है यदि आप अमेरिका में राष्ट्रपति या कांग्रेस का चुनाव लड़ना चाहते हैं तो श्रेष्ठ धन संचय करता बनने के लिए तैयार रहे पारदर्शिता मां डंडों को पूरा करने के लिए कुलसी के अनुरूप एक खाता ऑडिट और कानूनी टीम होनी चाहिए अमेरिका में हर लेन-देन पर कड़ी नजर रहती है और स्थापित व्यवस्था के तहत लोगों को फंडिंग संबंधी जरूरी सूचनाओं मिलती रहती हैं I

किसी भी लोकतंत्र में राजनीतिक फंडिंग के सवाल पर सीता जवाब दे ही स्वतंत्रता के कई सिद्धांतों और अपेक्षाकृत समान अवसर के बीच एक संतुलन की भी जरूरत होती है विशेष रूप से अमेरिकी न्यायपालिका नेअपने इतिहास और समझसे सीखा है ताकि राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने की संवैधानिक गारंटी के साथ राजनीतिक वित्त को संभाल जा सकेI

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Electoral Bonds: Controversy and loyalty in the world of political donations

Electoral Bonds: Controversy and loyalty in the world of political donations

Electoral Bonds

Electoral Bonds: In almost all the democracies around the world, the increasing role of money in politics and the problems related to it keep appearing in the news. Nowadays, there is discussion in India too. Every day, some or another revelation is coming out regarding electoral bonds.

If we study the figures, then it is still going on. Especially big corporations are being monitored, and it is being seen who is loyal to whom. Can we improve the silver system in the coming years?

Analysis of data released by the Election Commission of India shows that most corporations that purchase electoral bonds more than once are not loyal to any one party. The Bharatiya Janata Party has 43 loyal corporate donors, which is the highest compared to other parties.

Mamata Banerjee’s All India Trimurga gives 16 boons to Congress after BJP This analysis defines loyal donors as companies that have donated more than once and to the same party each time. Such donors include. The biggest buyer was Kolkata-based Ripley and Company and Handling Pvt Ltd, which was topped in value by the five properties given to BJP by DLF Commercial Developers worth Rs 130 crore.

91 companies that bought after the elections more than once had donated to the same party multiple times. The analysis of the election data released by the Election Commission is still going on. It is worth noting that 263 companies have challenged the analysis several times.

According to the report, out of 762 corporate donors, 263 have bought post-poll funds more than once within the stipulated time frame. Mega Engineering & Infrastructure companies buying the most frequently have bought the Chhattisgarh band and donated to nine different parties.

Electoral Bonds: BJP is the biggest beneficiary

The biggest beneficiary was the BJP, which was donated by 362 different corporate donors, out of which 43 were loyal donors, followed by 177 donors to the Congress, but only eight donors donated repeatedly.

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The big party as well as the ruling party also benefited in the matter of electoral bonds. Currently, BJP is the only party in our country with more than 300 donors, followed by Congress and Trinamool. These four major parties alone have more than 100 corporate donors. Corporates give life to those parties.

The policy of these companies can be easily explained to those who are in power, however, the very nature of donations made by corporations remains in dispute and the parties who receive donations remain on target.

We are able to see that the State Bank of India, the Supreme Court, and the Election Commission have tried to ensure transparency by issuing the final, but the political party has not given anything in this direction from the Supreme; in fact, there is no political party in our country. The party is not like that and can claim to have completely white money in its coffers.

Is political donation (Electoral Bonds) transparent in America, the oldest democracy?

The United States has learned from its experience, however, that even there, donations are not completely transparent. If you donate more than $50 directly to a candidate’s campaign, the campaign must report identifying data and secrets to the Federal Election Commission.

The problem lies in how non-profit organizations can spend money without disclosing donors. The US estimated that spent money in the 2020 election was more than a billion dollars.

Electoral Bonds

Most of the world’s democracies are affected by political donations (Electoral Bonds)

Money is needed for politics, and in most countries, it impacts the election funding system. For example, in the recruitment scam in Japan, the Sensation’s Waste Mister scam in the UK, and the famous Water Gate scam in America, there are always a series of scams related to election payments. Recall that the problem of finances is worrying in almost all democracies. Election-based political corruption has also affected many European democracies, like Italy, Greece, France, Spain, and Belgium.

Companies also choose (electoral bond) parties as per their choice

It is worth noting that, according to the electoral data so far, 11 companies have changed parties. After donating to one party once, 11 companies have decided to donate to another party next time.

One of these companies is Aurobindo. There is also pharma, which is being discussed a lot. In these 11 cases, five friends have been the beneficiaries. Anmol Congress has been the beneficiary. The BJP has benefited in only three cases. No company wants to spoil its relations with any branch; hence, it donates to more parties.

Electoral Bonds

What happens in America (Electoral Bonds)?

America may be the oldest democracy in the world, but it is also the most expensive democracy in the world. If you want to contest the presidential or congressional elections in America, then be prepared to become the best fundraiser. Accordingly, there should be an account audit and a legal team. In America, every transaction is closely monitored, and under the established system, people keep getting necessary information related to funding.

In any democracy, only Sita’s answer to the question of political funding will lead to many freedoms. A balance is also needed between principles and relatively equal opportunity, particularly as the US judiciary has learned from its history and understanding to handle political finance while maintaining constitutional guarantees of participation in the political process.

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अंतर्राष्ट्रीय कानून की परिभाषा और अवधारणा

अंतर्राष्ट्रीय कानून

अंतर्राष्ट्रीय कानून: अंतर्राष्ट्रीय विधि को आरंभ में राष्ट्रोंकी विधि कहा जाता था के किंतु राष्ट्रों के आपसी संबंधों को विनियमित करने वाले नियमों को राष्ट्रों की विधि कहना भ्रामक लगता था क्योंकि इस शब्द से ऐसा आभास होता था कि कई राष्ट्रों की विधि का अध्ययन किया जाता है इसी कारण सर्वप्रथम बेंथम ने सन 1789 में इस शब्द के स्थान परअंतर्राष्ट्रीय विधि शब्द का प्रयोग किया और तभी से यह नाम प्रचलित है

अंतर्राष्ट्रीय कानून: अधिकांश परंपरागत न्यायाधीशों ने अंतर्राष्ट्रीय विधि को एक ऐसी विधि के रूप में माना है जो राष्ट्रों की पारस्परिक संबंधों को विनियमित करती है और इसी अर्थ में इसको परिभाषित भी करती है ओपनहाइम के अनुसार राष्ट्रों की विधि या अंतर्राष्ट्रीय विधि उन रूढ़िजन्य ने तथा संधीबद्ध नियमों के समूह कानाम है जिन्हें राज्यों द्वारा पारस्परिक संबंधों में वेद रूप से बाध्यकारी माना जाता है

अंतर्राष्ट्रीय कानून: इस परिभाषा में महत्वपूर्ण तत्व निहित है प्रथम अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्यों के मध्य संबंधों को शासित करने वाले नियमों के समूह से संबंधित है संबंधों शब्द काअभिप्राय ऐसे संबंधों से है जो राष्ट्रों द्वारा अपने विदेशी कार्यायलयों या विदेशी मामलों की विभागों के मध्य में बनाए जाते हैंअंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम राज्यों की लगभग सभी क्रियाकलापों को शासित करता है इसके नियम समुद्र के उपयोगबाहरी अंतरिक्ष तथा अल्टरनेटिका को शासित करते हैं तथा अंतरराष्ट्रीय संवाद वहां डाक सेवाएं और अंतरराष्ट्रीय वायु यातायात से संबंधित नियम भी शासित होते हैंI

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अंतर्राष्ट्रीय कानून: अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम राष्ट्रीयता अनुदेशीय प्रत्यर्पण मानव अधिकार पर्यावरण की संरक्षण से भी संबंधित है यह कहना अनुचित न होगा कि राज्यों की मध्य की शायद ही कोई ऐसी गतिविधि होगी जो अंतर्राष्ट्रीय विधि से शासित ना होगीयह राज्यों द्वारा इन पारस्परिक संबंधों की नियमों को अपने ऊपर बाधिकारी माना जाता है अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम राज्यों के ऊपर वेद रूप से लागू होते हैं ना कि केवल नैतिकता के आधार परजब इराक ने कुवैत पर 1990 में आक्रमण किया या संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस इराक पर 2003 में आक्रमण किया तब विश्व के अधिकतर राज्य ने ऐसी कृतियों को अनैतिक ना कह कर अवैध कहा तृतीय ऐसे नियम वीडियो और संधियों से बने हैंI

अंतर्राष्ट्रीय कानून

ओपेनहेम की नई परिभाषा

अंतर्राष्ट्रीय कानून: ओपनहइम अंतर्राष्ट्रीय विधि की उपयुक्त परिभाषा 1955 में प्रकाशित पुस्तक इंटरनेशनल लॉ के आठवीं संस्करण में दी थी इसके पश्चात अंतर्राष्ट्रीय विधि में मूलभूत परिवर्तन हुए जिसके कारण उपयुक्त परिभाषा आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि के संदर्भ में असंगत हो गईऔर उसे संकीर्ण मन जाने लगा यह परिभाषा आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि पर समुचित रूप से लागू नहीं होती I

अंतर्राष्ट्रीय कानून: इसी कारण करअर्बन ट्रेनिंग और सर अर्थ द्वारा संपादित ओपनहइम की 1992 में प्रकाशित पुस्तक इंटरनेशनल लॉ की नवी संस्करण मेंअंतर्राष्ट्रीय विधि की उपयुक्त परिभाषाकी कमियों को दूर करते हुए नई परिभाषा दी गई नियमों का वह समूह है जो राज्यों के पारस्परिक संबंधों में उन पर अवधकर है यह नियम प्राथमिक रूप से वे नियम है जो राज्यों के संबंध को शासित करते हैं किंतु केवल राज्योंकी अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय में नहीं अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा कुछ हद तक व्यक्त भी अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा प्रदकअधिकारों तथा अधिरोपित कर्तव्य के विषय हो सकते हैं

अंतर्राष्ट्रीय कानून: यह परिभाषा इस अर्थ में पहले वाली परिभाषा से अधिक व्यापक हैं क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा व्यक्तियों को भी अपने में सम्मिलित करती है जो अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों द्वारा शासित होते हैं फिर भी इस परिभाषा की आलोचना इस आधार पर की जा सकती है कि ओपन है ने अपनी परिभाषा में अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा व्यक्तियों को अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय माना लेकिन ये नहीं कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा व्यक्तियों पर आबंध हैं इस कारण ओपन है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि की नई परिभाषा भी समुचित रूप से आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि के रूप में अनुरूप नहीं है

अंतर्राष्ट्रीय कानून: स्टार्क की अंतर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा इस क्षेत्र में ओपन हम की परिवर्तित परिभाषा की तरह ही व्यापक है उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि व समूह है जिसका अधिकांश भाग आचरण के उन सिद्धांतों तथा नियमों से बना है जिनका अनुपालन करने के लिए राज्य अपने को मध्य अनुभव करते हैं अतः वे अपने पारस्परिक संबंधों में इसका समानता अनुपालन करते हैं तथा इसमें यह भी सम्मिलित है कि-

अंतर्राष्ट्रीय कानून

1-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं या संगठनों की कार्य प्रणाली और उनके पारस्परिक संबंध तथा राज्य एवं युवतियों के संबंधों की वैधानिक नियमI

2-कुछ वैधानिक नियम जो व्यक्तियों तथा गैर राज्य इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित हैंI

अंतर्राष्ट्रीय विधि की उत्तर परिभाषा परंपरागत परिभाषाओं से भिन्न है जहां परंपरागत परिभाषाएं केवल राज्यों को अपनी सीमा में रखती है वहीं स्टार्क ने उनके क्षेत्र को विस्तार करते हुए कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्यों के साथ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं या संगठनों व्यक्तियों तथा अन्य गैर्य राज्य इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों को भी विनियमित करती हैं यह इकाइयां अंतर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में अंतर्गत विकास केफलस्वरूप आई हैं|

जो वर्तमान शताब्दी के आरंभ में विशेष कर संयुक्त राष्ट्र संघ के बनने के बाद हुए हैं किंतु स्टार्क इसको स्वीकार करते हैं कि प्राथमिक रूप सेयह राज्यों के पारस्परिक अधिकारों तथा कर्तव्यों को ही वनी नियमित करती है सही अर्थ में स्टार्क ने अपनी परिभाषा में विभिन्न इकाइयों के नाम का उल्लेख किया हैI

जिनके अधिकार तथा कर्तव्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों द्वारा विनियमित किया जाने लगते हैं किंतु ऐसी कोई इकाई जो स्टॉक द्वारा उल्लेखित नहीं है यदि समय के अंतराल के साथ अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आ जाती हैतथा यदि उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों के अंतर्राष्ट्रीय विधि के वी नियमों द्वारा विनियमित किया जाने लगता है तो परिभाषा पुनः आलोचना का विषय बन जाएगी इस प्रकार यह परिभाषा आने वाले सभी विषयों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है भविष्य में जब कोई नई इकाई अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व को अर्जित करेगी तथा वह परिभाषा संकीर्ण हो जाएगीI

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International Law: Definition and Concept

International Law

International law was initially called the law of nations, but it seemed misleading to call the rules regulating the mutual relations of nations. This law is called the law of nations because this term gives the impression that the law of many nations was studied. That is why, in the first place, Bentham used the word international law in place of this word in 1789, and since then this name has been prevalent.

Most traditional judges have considered international law to be a law that regulates the mutual relations of states and also defines it in this sense. According to Oppenheim, the law of states is the set of rules and regulations made by those people. Stereotypes are laws that are considered legally binding by states in their mutual relations.

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An important element lies in this definition. First, this law is related to the set of rules governing relations between states. The term relations refers to the relations that are maintained by the states between their foreign offices or departments of foreign affairs.

The rules govern almost all the activities of states. Its rules govern the use of the ocean, outer space, and international communication. There are also rules governing postal services and international air traffic. Rules of this law, nationality, extradition, human rights, and the environment. It is also related to protection. It would not be unfair to say that there would hardly be any activity between states that would not be governed by international law.

International Law

The states consider the rules of these mutual relations as their authority. The rules of this law are binding on the states. They are applied strictly and not just on the basis of morality. When Iraq invaded Kuwait in 1990 or the United States invaded Iraq in 2003, most of the states in the world called such acts illegal rather than immoral. Third, such rules are made from videos and treaties.

New Definition Of Oppenheim

Oppenheim had given the appropriate definition of this law in the eighth edition of the book International Law, published in 1955. After this, there were fundamental changes in international law, due to which the appropriate definition became inconsistent with the context of modern international law and started being considered narrow-minded.

That is why it is not implemented properly. In the new edition of Oppenheim’s book International Law, published in 1992 and edited by Urban Training and Sir Arth, a new definition has been given to overcome the shortcomings of the appropriate definition of international law. It is a set of rules that govern the mutual relations of states. These rules are primarily those that govern the relations of states, but not only the international law of states; they may also be the subject of international organizations and, to some extent, express rights and duties imposed by this law.

This definition is broader than the previous one in the sense that it also includes international organizations and individuals who are governed by the rules of this law, yet this definition can be criticized on the basis that it is open In its definition, it has considered international organizations and individuals as the subject of international law but has not said that the rules of this law are binding on international organizations and individuals; hence, it is open that the new definition of this law can also be appropriately considered as modern international law. doesn’t fit in.

Stark’s definition of this law is as broad as Open Hum’s modified definition in this area. According to him, international law is a set of principles and rules of conduct that states feel themselves bound to follow. Therefore, they follow it equally in their mutual relations, and this also includes:

International Law

1. The functioning of international institutions or organizations, their mutual relations, and the legal rules of relations between the state and women.

2. Maintain legal rules that relate to international issues regarding the rights and duties of individuals and non-state entities.

Answer: The definition of international law is different from the traditional definitions, where traditional definitions keep only the states within their limits, whereas Stark has expanded their scope and said that international law deals with the rights of international institutions or organizations, individuals and other non-state entities along with states.

These units have come about as a result of developments in the field of international law that have taken place at the beginning of the present century, especially after the formation of the United Nations, but Stark accepts that they primarily deal with the mutual rights of states.

In the true sense, Stark has mentioned the names of various units in his definition whose rights and duties come to be regulated by the rules of international law, but any such unit that is not mentioned by stock will, with time, come under international law, and if their rights and duties start to be regulated by the rules of international law, then the definition will again become a subject of criticism. Thus, this definition may not be suitable for all the subjects. In the future, when a new entity acquires international personality and that definition becomes narrower.

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