उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उमर अब्दुल्ला एक ऐसा नाम है, जो न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान रखता है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में, उमर ने अपने नेतृत्व, बुद्धिमत्ता और जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की क्षमता के कारण व्यापक लोकप्रियता हासिल की है। यह लेख उनके जीवन, राजनीतिक करियर, और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उनके योगदान पर एक विस्तृत नजर डालता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
उमर अब्दुल्ला का जन्म 10 मार्च 1970 को यूनाइटेड किंगडम के रोचडेल में हुआ था। वे जम्मू-कश्मीर की राजनीति के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक के वारिस हैं। उनके दादा, शेख अब्दुल्ला, जिन्हें “शेर-ए-कश्मीर” के नाम से जाना जाता है, ने 1932 में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी, जो बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस बनी। उमर के पिता, फारूक अब्दुल्ला, भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस तरह, उमर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसका राजनीति से गहरा नाता था।
उमर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल और देहरादून के द दून स्कूल में पूरी की। इसके बाद, उन्होंने मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बी.कॉम की डिग्री हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल राजनीतिक समझ प्रदान की, बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण भी दिया, जो बाद में उनके नेतृत्व में दिखाई दिया।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
उमर अब्दुल्ला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1998 में की, जब वे श्रीनगर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए। उस समय उनकी उम्र मात्र 28 वर्ष थी, और वे भारत के सबसे युवा सांसदों में से एक थे। 1999 में, वे दोबारा श्रीनगर से सांसद चुने गए और अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में विदेश मामलों के राज्य मंत्री बने। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, क्योंकि इतनी कम उम्र में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी।
2001 में, उमर को नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया, जब उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने पार्टी की कमान उन्हें सौंपी। यह उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस उस समय जम्मू-कश्मीर की सबसे प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टियों में से एक थी। उमर ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल
उमर अब्दुल्ला का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक योगदान 2009 से 2015 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा सकता है। 2008 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाई। 5 जनवरी 2009 को, उमर ने 38 वर्ष की उम्र में जम्मू-कश्मीर के 11वें और सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
उनके कार्यकाल के दौरान, उमर ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में विकास और शांति को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। उनके प्रशासन ने बुनियादी ढांचे, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। इसके अलावा, उन्होंने युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न पहल कीं। हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से भी मुक्त नहीं रहा। 2010 में कश्मीर घाटी में हुए विरोध प्रदर्शनों ने उनके प्रशासन के सामने कई चुनौतियां खड़ी कीं। फिर भी, उमर ने संयम और संवाद के माध्यम से स्थिति को संभालने की कोशिश की।
अनुच्छेद 370 और उसके बाद
2019 में, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, उमर अब्दुल्ला ने इसका पुरजोर विरोध किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस फैसले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों पर हमला करार दिया। इस दौरान, उमर को कई महीनों तक नजरबंद रखा गया, जो उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए एक कठिन समय था।
हालांकि, 2024 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के बाद उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने 48 सीटें जीतीं, और उमर 16 अक्टूबर 2024 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने। इस जीत को उन्होंने जनता के विश्वास और लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा।

व्यक्तिगत जीवन और विवाद
उमर अब्दुल्ला का व्यक्तिगत जीवन भी चर्चा का विषय रहा है। उन्होंने 1994 में पायल नाथ से शादी की, लेकिन 2011 में दोनों अलग हो गए। उनके दो बेटे, जाहिर और जामिर, हैं। हाल के वर्षों में, उनके निजी जीवन को लेकर कई अफवाहें और चर्चाएं सामने आईं, लेकिन उमर ने हमेशा अपनी निजता को बनाए रखने की कोशिश की।
राजनीतिक रूप से, उमर को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा। 2024 में, गांदरबल आतंकी हमले के बाद उनके द्वारा आतंकवादियों के लिए “उग्रवादी” शब्द का इस्तेमाल करने पर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना हुई। इसके अलावा, उनकी कुछ टिप्पणियों, जैसे कि इंडिया गठबंधन की आंतरिक एकता पर सवाल उठाना, ने भी विवाद को जन्म दिया।
जम्मू-कश्मीर के लिए उनकी दृष्टि
उमर अब्दुल्ला ने हमेशा जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास, और समावेशी राजनीति की वकालत की है। वे मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग जरूरी है। उन्होंने बार-बार राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है और इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों के संवैधानिक अधिकारों की बहाली के रूप में देखा है।
उमर ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार केंद्र के साथ मिलकर काम करेगी ताकि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे, पर्यटन, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके। 2025 में, उन्होंने जेड-मोर्ह टनल के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की और इसे क्षेत्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं, जो युवा ऊर्जा, अनुभव, और दूरदर्शिता का मिश्रण है। उनके नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनता के साथ जुड़ाव ने उन्हें एक मजबूत नेता बनाया है। चाहे वह अनुच्छेद 370 का मुद्दा हो, राज्य के दर्जे की बहाली हो, या जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की बात हो, उमर ने हमेशा अपने विचारों को स्पष्टता और दृढ़ता के साथ रखा है।
आज, जब वे एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक है। उनके सामने चुनौतियां कई हैं, लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता के प्रति समर्पण को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।