Operation Sindoor: बदला पूरा! आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर भारतीय हवाई हमलों में ढेर

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Operation Sindoor: बदला पूरा! आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर भारतीय हवाई हमलों में ढेर

अब्दुल रऊफ अजहर

7- 8 मई 2025 को भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर था, जब भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए। इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के डिप्टी चीफ और कुख्यात आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर के मारे जाने की खबर ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। यह ब्लॉग पोस्ट अब्दुल रऊफ अजहर के आतंकी इतिहास, ऑपरेशन सिंदूर, और इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करता है।

अब्दुल रऊफ अजहर: आतंक का पर्याय

अब्दुल रऊफ अजहर, जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर का छोटा भाई, एक ऐसा नाम था जिसने भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया। वह 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान IC-814 के अपहरण का मास्टरमाइंड था, जिसके परिणामस्वरूप मसूद अजहर सहित तीन आतंकियों को रिहा करना पड़ा था। इसके अलावा, वह 2001 के भारतीय संसद हमले, 2005 के अयोध्या मंदिर हमले, 2016 के पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमले, और 2019 के पुलवामा हमले में शामिल था, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे।

अब्दुल रऊफ अजहर का आतंकी नेटवर्क तालिबान, अल-कायदा, लश्कर-ए-तैयबा, और हक्कानी नेटवर्क जैसे संगठनों से जुड़ा था। वह न केवल हमलों की योजना बनाता था, बल्कि आतंकियों को प्रशिक्षण और संसाधन भी प्रदान करता था। अब्दुल रऊफ अजहर ने पाकिस्तान के बहावलपुर और मुरिदके में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों को संचालित किया, जहां आतंकियों को भारत के खिलाफ हमलों के लिए तैयार किया जाता था।

पहलगाम हमला: ऑपरेशन सिंदूर का ट्रिगर

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत को निर्णायक कार्रवाई के लिए मजबूर किया। इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर हिंदू पर्यटक थे। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने खुलासा किया कि इस हमले के पीछे द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) था, जो लश्कर-ए-तैयबा का एक मोर्चा है। इस हमले ने भारत को यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक है।

अब्दुल रऊफ अजहर

7 मई की रात को शुरू हुए “ऑपरेशन सिंदूर” में भारतीय वायुसेना ने 24 सटीक मिसाइलों के साथ पाकिस्तान के बहावलपुर, मुरिदके, सियालकोट, और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के मुजफ्फराबाद, कोटली, और भिंबर जैसे क्षेत्रों में नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। इन हमलों में 70-80 आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई, जिसमें अब्दुल रऊफ अजहर भी शामिल था।

ऑपरेशन सिंदूर: एक सटीक और गैर-उत्तेजक कार्रवाई

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने ऑपरेशन सिंदूर को “सटीक, मापा गया, और गैर-उत्तेजक” करार दिया। इस ऑपरेशन में पाकिस्तानी सैन्य सुविधाओं को निशाना नहीं बनाया गया, बल्कि केवल आतंकी ठिकानों पर हमला किया गया। भारतीय सेना ने रात 1:05 बजे से 1:30 बजे तक 25 मिनट के भीतर यह कार्रवाई पूरी की। बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय, जामिया मस्जिद सुभान अल्लाह, पूरी तरह नष्ट हो गया, जहां मसूद अजहर के 10 परिवार वालों और चार सहयोगियों की भी मौत हुई।

मुरिदके में लश्कर-ए-तैयबा के मार्कज तैबा को भी निशाना बनाया गया, जहां हाफिज अब्दुल मलिक जैसे हाई-वैल्यू आतंकी मारे गए। भारतीय सेना की इस कार्रवाई में सैटेलाइट इमेज और ड्रोन फुटेज का उपयोग किया गया, जिसने हमलों की सटीकता को सुनिश्चित किया।

अब्दुल रऊफ अजहर की मौत: इस्लामिक आतंक को एक बड़ा झटका

अब्दुल रऊफ अजहर की मौत की खबर सबसे पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर सामने आई, जहां कई उपयोगकर्ताओं ने दावा किया कि वह बहावलपुर में भारतीय हमले में मारा गया। बाद में, भारतीय समाचार एजेंसियों जैसे इंडिया टुडे और एनडीटीवी ने इसकी पुष्टि की। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि वह हमले में घायल हुआ था, लेकिन अधिकांश स्रोतों ने उसकी मृत्यु की पुष्टि की।

अब्दुल रऊफ अजहर

रऊफ अजहर की मौत जैश-ए-मोहम्मद के लिए एक बड़ा झटका है। वह संगठन का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नेता था और इसके संचालन में उसकी अहम भूमिका थी। उसकी अनुपस्थिति में जैश का नेतृत्व और संगठन कमजोर होने की संभावना है। इसके अलावा, यह भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति का एक स्पष्ट संदेश है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

पाकिस्तान ने भारतीय हमलों को “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया और जवाबी हमले की धमकी दी। पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि हमलों में 21-31 लोग मारे गए, जिनमें नागरिक और बच्चे शामिल थे। पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलाबारी शुरू की, जिसमें तीन भारतीय नागरिक मारे गए। पाकिस्तान ने यह भी दावा किया कि उसने पांच भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिसे भारत ने खारिज कर दिया।

पाकिस्तानी सेना और जमात-उद-दावा (JuD) के सदस्य मुरिदके में मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए, जिससे पाकिस्तान का आतंकियों के प्रति समर्थन उजागर हुआ। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई और भारत के खिलाफ “मजबूत जवाब” देने की बात कही।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन, रूस, और यूनाइटेड किंगडम ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि “विश्व भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव को बर्दाश्त नहीं कर सकता।” अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पाकिस्तान से आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा। चीन ने भारत के हमलों को “खेदजनक” बताया, जबकि ईरान ने मध्यस्थता की पेशकश की।

अब्दुल रऊफ अजहर

भारत में प्रभाव

भारत में ऑपरेशन सिंदूर को व्यापक समर्थन मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना की प्रशंसा की और इसे “न्याय की जीत” बताया। देशभर में नागरिक सुरक्षा अभ्यास आयोजित किए गए, और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्कूल बंद कर दिए गए। हालांकि, कुछ विपक्षी नेताओं ने सरकार से हमलों के दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करने को कहा।

अब्दुल रऊफ अजहर की मौत भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण जीत है। ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल जैश-ए-मोहम्मद को कमजोर किया है, बल्कि पाकिस्तान को यह संदेश भी दिया है कि भारत आतंकी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। हालांकि, दोनों देशों के बीच तनाव अभी भी बना हुआ है, और आने वाले दिन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होंगे।

यह कार्रवाई भारत की सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ उसकी दृढ़ता को दर्शाती है। लेकिन, साथ ही यह भी सवाल उठता है कि क्या यह तनाव युद्ध में तब्दील होगा, या दोनों देश शांति की दिशा में कदम उठाएंगे। विश्व समुदाय की नजरें अब इस क्षेत्र पर टिकी हैं।

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पहलगाम हमला: PM मोदी ने सेना को दी ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के बाद अगले दिन बुलाई CCS बैठक

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पहलगाम हमला: PM मोदी ने सेना को दी ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के बाद अगले दिन बुलाई CCS बैठक

पहलगाम हमला

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला देश के लिए एक गहरा आघात था। इस हमले में 26 लोग, जिनमें अधिकांश पर्यटक थे, अपनी जान गंवा बैठे। पहलगाम हमला न केवल भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया तनाव भी पैदा करता है।

पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 29 अप्रैल को सेना को “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” दी, जिसका मतलब है कि सेना को हमले का जवाब देने के लिए तरीका, लक्ष्य और समय तय करने की पूरी छूट है। इसके अगले ही दिन, 30 अप्रैल को, पीएम मोदी ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक बुलाई, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस हमले, सरकार की प्रतिक्रिया, और सीसीएस बैठक के महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पहलगाम हमला: एक क्रूर साजिश

पहलगाम, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन के लिए जाना जाता है, 22 अप्रैल को आतंकवादियों के निशाने पर आया। बाइसारन मीडो में पांच से छह आतंकवादियों ने पर्यटकों के एक समूह पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की मौत हो गई। यह हमला जम्मू-कश्मीर में पिछले दो दशकों में नागरिकों पर सबसे घातक हमलों में से एक था। इस हमले की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली, जिसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले को “आतंकवाद के संरक्षकों की हताशा और कायरता” का प्रतीक बताया। अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने कहा कि जब कश्मीर में शांति और समृद्धि लौट रही थी, आतंकवादियों और उनके आकाओं को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस हमले के पीछे की साजिश को बेनकाब किया जाएगा और दोषियों को कठोरतम सजा दी जाएगी।

भारत की त्वरित प्रतिक्रिया

पहलगाम हमला

पहलगाम हमले के तुरंत बाद, भारत सरकार ने कई कड़े कदम उठाए। 23 अप्रैल को सीसीएस की पहली बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ कई गैर-सैन्य उपायों की घोषणा की गई, जिनमें शामिल हैं:

  • इंडस वाटर ट्रीटी का निलंबन: भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की इस संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, जिसे पाकिस्तान ने “युद्ध की कार्रवाई” के रूप में देखा।c6e78344 b83a 47c8 a870 a5b3f337bd03
  • अटारी सीमा बंद करना: भारत और पाकिस्तान के बीच एकमात्र सक्रिय स्थलीय सीमा को बंद कर दिया गया।
  • पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना: भारत में रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए।a4e10521 1bb0 4e30 a98e 97ef669b1c82

पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की, जिसमें भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करना और भारत के साथ सभी व्यापार को निलंबित करना शामिल है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ ने हमले को “झूठा फ्लैग ऑपरेशन” करार देते हुए तटस्थ जांच की पेशकश की, लेकिन भारत ने इन दावों को खारिज कर दिया।

सेना को ‘पूर्ण स्वतंत्रता’

29 अप्रैल को पीएम मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक की। इस बैठक में उन्होंने सेना को “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” देने की घोषणा की। इसका मतलब है कि सेना अब हमले का जवाब देने के लिए समय, स्थान, और तरीके का चयन स्वयं कर सकती है। यह निर्णय 2019 के पुलवामा हमले के बाद की स्थिति की याद दिलाता है, जब भारत ने बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हवाई हमला किया था।

पहलगाम हमला

सूत्रों के अनुसार, पीएम मोदी ने इस बैठक में सेना की पेशेवर क्षमताओं पर पूर्ण विश्वास जताया और आतंकवाद को कुचलने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। यह कदम भारत की “शून्य सहिष्णुता” नीति को दर्शाता है, जो आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्रवाई पर जोर देती है।

सीसीएस बैठक: रणनीति और सुरक्षा पर चर्चा

30 अप्रैल को, पीएम मोदी ने अपने लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर सीसीएस की दूसरी बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शामिल थे। बैठक का मुख्य एजेंडा जम्मू-कश्मीर में समग्र सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करना और पहलगाम हमले के जवाब में संभावित कार्रवाइयों पर विचार-विमर्श करना था।

सीसीएस, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है, ने इस बैठक में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की:

  1. सैन्य रणनीति: सेना को दी गई स्वतंत्रता के तहत संभावित सैन्य कार्रवाइयों की योजना। सूत्रों का कहना है कि सरकार हमले से संबंधित वीडियो और सबूतों को विश्व समुदाय के सामने पेश करने की तैयारी कर रही है।7b7c6ce8 a5bd 4f47 bc57 fec422221ac8
  2. कूटनीतिक कदम: भारत ने पहले ही कई देशों से समर्थन प्राप्त किया है। यूएई, यूके, और फिलिस्तीन जैसे देशों ने हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की।ebb7d615 7795 45eb bec7 abb3d3291ee8
  3. आंतरिक सुरक्षा: गृह मंत्रालय ने दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को ध्वस्त करने और 1,500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार करने की कार्रवाई की गई है।82bfee1b fad7 40c6 ab1c 845a88f5e4bb48d132eb 55f2 43a8 b40a bd55fb53aea8

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

पहलगाम हमले ने देश में व्यापक आक्रोश पैदा किया है। विपक्षी दलों ने सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की है, हालांकि कुछ नेताओं, जैसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, ने सुरक्षा चूक का मुद्दा उठाया और पीएम मोदी की अनुपस्थिति की आलोचना की। दूसरी ओर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सरकार के कदमों का समर्थन किया और पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की बात कही।

सामाजिक स्तर पर, हिंदू दक्षिणपंथी समूहों ने 1 मई को बाजार बंद करने का आह्वान किया है, और लंदन में भारतीय समुदाय ने पाकिस्तान उच्चायोग के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

चुनौतियां और भविष्य

पहलगाम हमला

पहलगाम हमला भारत के लिए कई चुनौतियां पेश करता है। पहली चुनौती है कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने की सरकार की नीति पर पुनर्विचार। 2024 में 35 लाख पर्यटकों ने कश्मीर का दौरा किया था, जिसे सरकार ने सामान्य स्थिति का सबूत बताया था। लेकिन इस हमले ने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दूसरी चुनौती है भारत-पाकिस्तान संबंधों में बढ़ता तनाव। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने भारत की किसी भी कार्रवाई को “सर्व-आउट युद्ध” की चेतावनी दी है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है।

निष्कर्ष

पहलगाम हमला भारत की सुरक्षा और कूटनीति के लिए एक गंभीर चुनौती है। पीएम मोदी द्वारा सेना को दी गई “पूर्ण स्वतंत्रता” और सीसीएस की बैठकें दर्शाती हैं कि सरकार इस हमले का जवाब देने के लिए कटिबद्ध है। यह समय देश के लिए एकजुट होने और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का है। जैसा कि पीएम मोदी ने कहा, “राष्ट्र की एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है।” यह एकता और दृढ़ संकल्प ही भारत को इस संकट से उबार सकता है

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उमर अब्दुल्ला एक ऐसा नाम है, जो न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान रखता है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में, उमर ने अपने नेतृत्व, बुद्धिमत्ता और जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की क्षमता के कारण व्यापक लोकप्रियता हासिल की है। यह लेख उनके जीवन, राजनीतिक करियर, और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उनके योगदान पर एक विस्तृत नजर डालता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

उमर अब्दुल्ला का जन्म 10 मार्च 1970 को यूनाइटेड किंगडम के रोचडेल में हुआ था। वे जम्मू-कश्मीर की राजनीति के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक के वारिस हैं। उनके दादा, शेख अब्दुल्ला, जिन्हें “शेर-ए-कश्मीर” के नाम से जाना जाता है, ने 1932 में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी, जो बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस बनी। उमर के पिता, फारूक अब्दुल्ला, भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस तरह, उमर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसका राजनीति से गहरा नाता था।

उमर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल और देहरादून के द दून स्कूल में पूरी की। इसके बाद, उन्होंने मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बी.कॉम की डिग्री हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल राजनीतिक समझ प्रदान की, बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण भी दिया, जो बाद में उनके नेतृत्व में दिखाई दिया।

राजनीतिक करियर की शुरुआत

उमर अब्दुल्ला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1998 में की, जब वे श्रीनगर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए। उस समय उनकी उम्र मात्र 28 वर्ष थी, और वे भारत के सबसे युवा सांसदों में से एक थे। 1999 में, वे दोबारा श्रीनगर से सांसद चुने गए और अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में विदेश मामलों के राज्य मंत्री बने। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, क्योंकि इतनी कम उम्र में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी।

2001 में, उमर को नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया, जब उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने पार्टी की कमान उन्हें सौंपी। यह उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस उस समय जम्मू-कश्मीर की सबसे प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टियों में से एक थी। उमर ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

उमर अब्दुल्ला का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक योगदान 2009 से 2015 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा सकता है। 2008 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाई। 5 जनवरी 2009 को, उमर ने 38 वर्ष की उम्र में जम्मू-कश्मीर के 11वें और सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

उनके कार्यकाल के दौरान, उमर ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में विकास और शांति को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। उनके प्रशासन ने बुनियादी ढांचे, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। इसके अलावा, उन्होंने युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न पहल कीं। हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से भी मुक्त नहीं रहा। 2010 में कश्मीर घाटी में हुए विरोध प्रदर्शनों ने उनके प्रशासन के सामने कई चुनौतियां खड़ी कीं। फिर भी, उमर ने संयम और संवाद के माध्यम से स्थिति को संभालने की कोशिश की।

अनुच्छेद 370 और उसके बाद

2019 में, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, उमर अब्दुल्ला ने इसका पुरजोर विरोध किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस फैसले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों पर हमला करार दिया। इस दौरान, उमर को कई महीनों तक नजरबंद रखा गया, जो उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए एक कठिन समय था।

हालांकि, 2024 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के बाद उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने 48 सीटें जीतीं, और उमर 16 अक्टूबर 2024 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने। इस जीत को उन्होंने जनता के विश्वास और लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा।

उमर अब्दुल्ला

व्यक्तिगत जीवन और विवाद

उमर अब्दुल्ला का व्यक्तिगत जीवन भी चर्चा का विषय रहा है। उन्होंने 1994 में पायल नाथ से शादी की, लेकिन 2011 में दोनों अलग हो गए। उनके दो बेटे, जाहिर और जामिर, हैं। हाल के वर्षों में, उनके निजी जीवन को लेकर कई अफवाहें और चर्चाएं सामने आईं, लेकिन उमर ने हमेशा अपनी निजता को बनाए रखने की कोशिश की।

राजनीतिक रूप से, उमर को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा। 2024 में, गांदरबल आतंकी हमले के बाद उनके द्वारा आतंकवादियों के लिए “उग्रवादी” शब्द का इस्तेमाल करने पर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना हुई। इसके अलावा, उनकी कुछ टिप्पणियों, जैसे कि इंडिया गठबंधन की आंतरिक एकता पर सवाल उठाना, ने भी विवाद को जन्म दिया।

जम्मू-कश्मीर के लिए उनकी दृष्टि

उमर अब्दुल्ला ने हमेशा जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास, और समावेशी राजनीति की वकालत की है। वे मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग जरूरी है। उन्होंने बार-बार राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है और इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों के संवैधानिक अधिकारों की बहाली के रूप में देखा है।

उमर ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार केंद्र के साथ मिलकर काम करेगी ताकि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे, पर्यटन, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके। 2025 में, उन्होंने जेड-मोर्ह टनल के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की और इसे क्षेत्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं, जो युवा ऊर्जा, अनुभव, और दूरदर्शिता का मिश्रण है। उनके नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनता के साथ जुड़ाव ने उन्हें एक मजबूत नेता बनाया है। चाहे वह अनुच्छेद 370 का मुद्दा हो, राज्य के दर्जे की बहाली हो, या जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की बात हो, उमर ने हमेशा अपने विचारों को स्पष्टता और दृढ़ता के साथ रखा है।

आज, जब वे एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक है। उनके सामने चुनौतियां कई हैं, लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता के प्रति समर्पण को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।