पहलगाम हमला: PM मोदी ने सेना को दी ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के बाद अगले दिन बुलाई CCS बैठक

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पहलगाम हमला: PM मोदी ने सेना को दी ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ के बाद अगले दिन बुलाई CCS बैठक

पहलगाम हमला

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला देश के लिए एक गहरा आघात था। इस हमले में 26 लोग, जिनमें अधिकांश पर्यटक थे, अपनी जान गंवा बैठे। पहलगाम हमला न केवल भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया तनाव भी पैदा करता है।

पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 29 अप्रैल को सेना को “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” दी, जिसका मतलब है कि सेना को हमले का जवाब देने के लिए तरीका, लक्ष्य और समय तय करने की पूरी छूट है। इसके अगले ही दिन, 30 अप्रैल को, पीएम मोदी ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक बुलाई, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस हमले, सरकार की प्रतिक्रिया, और सीसीएस बैठक के महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पहलगाम हमला: एक क्रूर साजिश

पहलगाम, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन के लिए जाना जाता है, 22 अप्रैल को आतंकवादियों के निशाने पर आया। बाइसारन मीडो में पांच से छह आतंकवादियों ने पर्यटकों के एक समूह पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की मौत हो गई। यह हमला जम्मू-कश्मीर में पिछले दो दशकों में नागरिकों पर सबसे घातक हमलों में से एक था। इस हमले की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली, जिसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले को “आतंकवाद के संरक्षकों की हताशा और कायरता” का प्रतीक बताया। अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने कहा कि जब कश्मीर में शांति और समृद्धि लौट रही थी, आतंकवादियों और उनके आकाओं को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस हमले के पीछे की साजिश को बेनकाब किया जाएगा और दोषियों को कठोरतम सजा दी जाएगी।

भारत की त्वरित प्रतिक्रिया

पहलगाम हमला

पहलगाम हमले के तुरंत बाद, भारत सरकार ने कई कड़े कदम उठाए। 23 अप्रैल को सीसीएस की पहली बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ कई गैर-सैन्य उपायों की घोषणा की गई, जिनमें शामिल हैं:

  • इंडस वाटर ट्रीटी का निलंबन: भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 की इस संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, जिसे पाकिस्तान ने “युद्ध की कार्रवाई” के रूप में देखा।c6e78344 b83a 47c8 a870 a5b3f337bd03
  • अटारी सीमा बंद करना: भारत और पाकिस्तान के बीच एकमात्र सक्रिय स्थलीय सीमा को बंद कर दिया गया।
  • पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना: भारत में रह रहे सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए।a4e10521 1bb0 4e30 a98e 97ef669b1c82

पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की, जिसमें भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करना और भारत के साथ सभी व्यापार को निलंबित करना शामिल है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ ने हमले को “झूठा फ्लैग ऑपरेशन” करार देते हुए तटस्थ जांच की पेशकश की, लेकिन भारत ने इन दावों को खारिज कर दिया।

सेना को ‘पूर्ण स्वतंत्रता’

29 अप्रैल को पीएम मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक की। इस बैठक में उन्होंने सेना को “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” देने की घोषणा की। इसका मतलब है कि सेना अब हमले का जवाब देने के लिए समय, स्थान, और तरीके का चयन स्वयं कर सकती है। यह निर्णय 2019 के पुलवामा हमले के बाद की स्थिति की याद दिलाता है, जब भारत ने बालाकोट में आतंकी शिविरों पर हवाई हमला किया था।

पहलगाम हमला

सूत्रों के अनुसार, पीएम मोदी ने इस बैठक में सेना की पेशेवर क्षमताओं पर पूर्ण विश्वास जताया और आतंकवाद को कुचलने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। यह कदम भारत की “शून्य सहिष्णुता” नीति को दर्शाता है, जो आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्रवाई पर जोर देती है।

सीसीएस बैठक: रणनीति और सुरक्षा पर चर्चा

30 अप्रैल को, पीएम मोदी ने अपने लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर सीसीएस की दूसरी बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शामिल थे। बैठक का मुख्य एजेंडा जम्मू-कश्मीर में समग्र सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करना और पहलगाम हमले के जवाब में संभावित कार्रवाइयों पर विचार-विमर्श करना था।

सीसीएस, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है, ने इस बैठक में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की:

  1. सैन्य रणनीति: सेना को दी गई स्वतंत्रता के तहत संभावित सैन्य कार्रवाइयों की योजना। सूत्रों का कहना है कि सरकार हमले से संबंधित वीडियो और सबूतों को विश्व समुदाय के सामने पेश करने की तैयारी कर रही है।7b7c6ce8 a5bd 4f47 bc57 fec422221ac8
  2. कूटनीतिक कदम: भारत ने पहले ही कई देशों से समर्थन प्राप्त किया है। यूएई, यूके, और फिलिस्तीन जैसे देशों ने हमले की निंदा की और भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की।ebb7d615 7795 45eb bec7 abb3d3291ee8
  3. आंतरिक सुरक्षा: गृह मंत्रालय ने दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में सुरक्षा बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को ध्वस्त करने और 1,500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार करने की कार्रवाई की गई है।82bfee1b fad7 40c6 ab1c 845a88f5e4bb48d132eb 55f2 43a8 b40a bd55fb53aea8

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

पहलगाम हमले ने देश में व्यापक आक्रोश पैदा किया है। विपक्षी दलों ने सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की है, हालांकि कुछ नेताओं, जैसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, ने सुरक्षा चूक का मुद्दा उठाया और पीएम मोदी की अनुपस्थिति की आलोचना की। दूसरी ओर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सरकार के कदमों का समर्थन किया और पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की बात कही।

सामाजिक स्तर पर, हिंदू दक्षिणपंथी समूहों ने 1 मई को बाजार बंद करने का आह्वान किया है, और लंदन में भारतीय समुदाय ने पाकिस्तान उच्चायोग के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

चुनौतियां और भविष्य

पहलगाम हमला

पहलगाम हमला भारत के लिए कई चुनौतियां पेश करता है। पहली चुनौती है कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने की सरकार की नीति पर पुनर्विचार। 2024 में 35 लाख पर्यटकों ने कश्मीर का दौरा किया था, जिसे सरकार ने सामान्य स्थिति का सबूत बताया था। लेकिन इस हमले ने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दूसरी चुनौती है भारत-पाकिस्तान संबंधों में बढ़ता तनाव। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने भारत की किसी भी कार्रवाई को “सर्व-आउट युद्ध” की चेतावनी दी है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है।

निष्कर्ष

पहलगाम हमला भारत की सुरक्षा और कूटनीति के लिए एक गंभीर चुनौती है। पीएम मोदी द्वारा सेना को दी गई “पूर्ण स्वतंत्रता” और सीसीएस की बैठकें दर्शाती हैं कि सरकार इस हमले का जवाब देने के लिए कटिबद्ध है। यह समय देश के लिए एकजुट होने और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का है। जैसा कि पीएम मोदी ने कहा, “राष्ट्र की एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है।” यह एकता और दृढ़ संकल्प ही भारत को इस संकट से उबार सकता है

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक चमकता सितारा

उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उमर अब्दुल्ला एक ऐसा नाम है, जो न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान रखता है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में, उमर ने अपने नेतृत्व, बुद्धिमत्ता और जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की क्षमता के कारण व्यापक लोकप्रियता हासिल की है। यह लेख उनके जीवन, राजनीतिक करियर, और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में उनके योगदान पर एक विस्तृत नजर डालता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

उमर अब्दुल्ला का जन्म 10 मार्च 1970 को यूनाइटेड किंगडम के रोचडेल में हुआ था। वे जम्मू-कश्मीर की राजनीति के सबसे प्रभावशाली परिवारों में से एक के वारिस हैं। उनके दादा, शेख अब्दुल्ला, जिन्हें “शेर-ए-कश्मीर” के नाम से जाना जाता है, ने 1932 में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी, जो बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस बनी। उमर के पिता, फारूक अब्दुल्ला, भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस तरह, उमर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसका राजनीति से गहरा नाता था।

उमर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल और देहरादून के द दून स्कूल में पूरी की। इसके बाद, उन्होंने मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बी.कॉम की डिग्री हासिल की। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल राजनीतिक समझ प्रदान की, बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण भी दिया, जो बाद में उनके नेतृत्व में दिखाई दिया।

राजनीतिक करियर की शुरुआत

उमर अब्दुल्ला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1998 में की, जब वे श्रीनगर लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए। उस समय उनकी उम्र मात्र 28 वर्ष थी, और वे भारत के सबसे युवा सांसदों में से एक थे। 1999 में, वे दोबारा श्रीनगर से सांसद चुने गए और अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में विदेश मामलों के राज्य मंत्री बने। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, क्योंकि इतनी कम उम्र में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी।

2001 में, उमर को नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया, जब उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने पार्टी की कमान उन्हें सौंपी। यह उनके लिए एक बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस उस समय जम्मू-कश्मीर की सबसे प्रभावशाली क्षेत्रीय पार्टियों में से एक थी। उमर ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

उमर अब्दुल्ला का सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक योगदान 2009 से 2015 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा सकता है। 2008 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाई। 5 जनवरी 2009 को, उमर ने 38 वर्ष की उम्र में जम्मू-कश्मीर के 11वें और सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

उनके कार्यकाल के दौरान, उमर ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में विकास और शांति को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। उनके प्रशासन ने बुनियादी ढांचे, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। इसके अलावा, उन्होंने युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न पहल कीं। हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से भी मुक्त नहीं रहा। 2010 में कश्मीर घाटी में हुए विरोध प्रदर्शनों ने उनके प्रशासन के सामने कई चुनौतियां खड़ी कीं। फिर भी, उमर ने संयम और संवाद के माध्यम से स्थिति को संभालने की कोशिश की।

अनुच्छेद 370 और उसके बाद

2019 में, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, उमर अब्दुल्ला ने इसका पुरजोर विरोध किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस फैसले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों पर हमला करार दिया। इस दौरान, उमर को कई महीनों तक नजरबंद रखा गया, जो उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए एक कठिन समय था।

हालांकि, 2024 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के बाद उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने 48 सीटें जीतीं, और उमर 16 अक्टूबर 2024 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने। इस जीत को उन्होंने जनता के विश्वास और लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा।

उमर अब्दुल्ला

व्यक्तिगत जीवन और विवाद

उमर अब्दुल्ला का व्यक्तिगत जीवन भी चर्चा का विषय रहा है। उन्होंने 1994 में पायल नाथ से शादी की, लेकिन 2011 में दोनों अलग हो गए। उनके दो बेटे, जाहिर और जामिर, हैं। हाल के वर्षों में, उनके निजी जीवन को लेकर कई अफवाहें और चर्चाएं सामने आईं, लेकिन उमर ने हमेशा अपनी निजता को बनाए रखने की कोशिश की।

राजनीतिक रूप से, उमर को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा। 2024 में, गांदरबल आतंकी हमले के बाद उनके द्वारा आतंकवादियों के लिए “उग्रवादी” शब्द का इस्तेमाल करने पर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना हुई। इसके अलावा, उनकी कुछ टिप्पणियों, जैसे कि इंडिया गठबंधन की आंतरिक एकता पर सवाल उठाना, ने भी विवाद को जन्म दिया।

जम्मू-कश्मीर के लिए उनकी दृष्टि

उमर अब्दुल्ला ने हमेशा जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास, और समावेशी राजनीति की वकालत की है। वे मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का विश्वास जीतने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग जरूरी है। उन्होंने बार-बार राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की है और इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों के संवैधानिक अधिकारों की बहाली के रूप में देखा है।

उमर ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार केंद्र के साथ मिलकर काम करेगी ताकि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे, पर्यटन, और रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके। 2025 में, उन्होंने जेड-मोर्ह टनल के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की और इसे क्षेत्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक ऐसा चेहरा हैं, जो युवा ऊर्जा, अनुभव, और दूरदर्शिता का मिश्रण है। उनके नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनता के साथ जुड़ाव ने उन्हें एक मजबूत नेता बनाया है। चाहे वह अनुच्छेद 370 का मुद्दा हो, राज्य के दर्जे की बहाली हो, या जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की बात हो, उमर ने हमेशा अपने विचारों को स्पष्टता और दृढ़ता के साथ रखा है।

आज, जब वे एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक है। उनके सामने चुनौतियां कई हैं, लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता के प्रति समर्पण को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

What! Pakistan Behind Pahalgam Attack: Shocking Analysis

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What! Pakistan Behind Pahalgam Attack: Shocking Analysis

Pakistan Behind Pahalgam

Pahalgam, often referred to as the “Mini Switzerland” of Jammu and Kashmir, is renowned for its natural beauty and tranquillity. However, the terrorist attack on April 22, 2025, in this paradise-like destination shook not only India but the entire world. The attack claimed the lives of 26 innocent people, mostly tourists, and left several others injured.

The terrorist organisation “The Resistance Front” (TRF), linked to Lashkar-e-Taiba, claimed responsibility for the attack. Yet, the truth behind this attack and its connections to Pakistan have once again strained India-Pakistan relations. In this blog post, we will explore the various aspects of the attack, Pakistan’s role, and its consequences in detail.

Pakistan Behind Pahalgam: The Horrific Face of the Pahalgam Attack

The terrorist attack in Pahalgam’s Baisaran Valley was a chilling assault on Hindus and humanity. The terrorists targeted Hindu tourists who had come to enjoy the scenic beauty of this valley. According to eyewitnesses, the attackers first checked the religious identities of the tourists and then selectively targeted Hindus. Some victims were asked to recite the “Kalma,” and those who couldn’t were shot dead. The brutality of this attack made it clear that it was not just a terrorist act but a meticulously planned massacre aimed at disrupting Kashmir’s peace and creating religious divisions.

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Among the victims of the “Pakistan Behind Pahalgam” attack were two foreign tourists (from the United Arab Emirates and Nepal), which brought the incident into the international spotlight. In response, the Indian government took swift and stringent measures, including suspending the 1960 Indus Water Treaty, closing the Attari-Wagah border post, and cancelling visa services for Pakistani citizens. These steps underscored India’s firm stance, but the question remains: will these measures provide a lasting solution to this issue?

Pakistan Behind Pahalgam: Facts and Evidence

Pakistan’s history of supporting terrorism is no secret. Several pieces of evidence point to Pakistan’s involvement in the Pahalgam attack. According to intelligence sources, three of the five to six terrorists involved in the attack were Pakistani nationals who had recently infiltrated Kashmir. Additionally, two local Kashmiri terrorists, who had travelled to Pakistan in 2018, were also part of the attack. This indicates that Pakistan not only trains and arms terrorists but also facilitates their infiltration into India.

Pakistan Behind Pahalgam

The Pakistani military and its intelligence agency, the ISI, have long-standing ties with terrorist organisations like Lashkar-e-Taiba and Jaish-e-Mohammed. Just days before the Pahalgam attack, Pakistan’s Army Chief General Asim Munir described Kashmir as Pakistan’s “jugular vein” and emphasised promoting the “two-nation theory.” Many analysts viewed his statement as a signal to terrorist groups, following which this attack occurred.

Moreover, in “Pakistan Behind Pahalgam”, the weapons used in the attack, such as American M4 rifles sourced from Afghanistan through the Taliban, further expose Pakistan’s role in supporting terrorism. The timing and execution of the attack also suggest a deliberate attempt to target Kashmir’s economic progress and peace. In 2024, over 5 lakh pilgrims participated in the Amarnath Yatra, and Pahalgam became a major tourist destination. The attack’s timing and method aimed to derail this progress.

Pakistan Behind Pahalgam: India’s Response and Diplomatic Measures

Following the Pahalgam attack, India not only took tough diplomatic steps but also reinforced its commitment to combating terrorism. Prime Minister Narendra Modi shortened his visit to Saudi Arabia to return to Delhi and review the security situation. Union Home Minister Amit Shah visited Pahalgam and met with the victims’ families. India implemented five major measures against Pakistan after the cowardly attack “Pakistan Behind Pahalgam”:

  1. Suspension of the Indus Water Treaty: The 1960 treaty was suspended immediately, a significant blow to Pakistan, which relies heavily on the Indus River’s waters.
  2. Closure of the Attari-Wagah Border: The only active land border between the two nations was shut down.
  3. Cancellation of Visas for Pakistani Citizens: India terminated visa services for Pakistani nationals and ordered Pakistanis in India to leave by May 1.
  4. Reduction in Diplomatic Ties: India further limited its diplomatic relations with Pakistan.
  5. Intensified Search for Terrorists: The Jammu and Kashmir Police released sketches of three terrorists involved in the attack and announced a reward of ₹20 lakh for information on each.

Pakistan Behind Pahalgam

These measures strengthened India’s strategy to isolate Pakistan on the international stage. However, some opposition parties, such as Shiv Sena (UBT), labelled the attack a “failure of intelligence” and questioned why no prior warning of such a large-scale attack was received.

Pakistan Behind Pahalgam: International Response and the Path Ahead

The Pahalgam attack was condemned worldwide. Countries like Saudi Arabia and the United Kingdom described it as a crime against humanity. However, Pakistan denied any responsibility, labelling it an internal issue for India. This stance once again proved that Pakistan is not serious about combating terrorism.

The attack has posed several challenges for India. The first is to restore tourism and peace in Kashmir. The second is to strengthen border security to prevent terrorist infiltration. The third, and most significant, challenge is to hold Pakistan accountable for supporting terrorism.

Pakistan Behind Pahalgam: Conclusion

Pakistan Behind Pahalgam

The Pahalgam attack was not just a terrorist incident but a consequence of Pakistan’s decades-long policy of destabilising Kashmir, so we can also call this cowardly attack “Pakistan Behind Pahalgam”. It not only claimed innocent lives but also targeted Kashmir’s peace and prosperity. India’s strong response has made it clear that it will not compromise in its fight against terrorism. However, a permanent solution to this issue is possible only if Pakistan abandons its terrorism-supporting policies.

In “Pakistan Behind Pahalgam Attack,” the blood spilt in the beautiful valleys of Pahalgam reminds us of the heavy price of peace. It is the responsibility of all of us to unite against terrorism and restore Kashmir as the paradise it has always been.